नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
राजस्थान में सत्ता का संकट गहराने लगा है. विधायकों की खरीद फरोख्त के मामले में राजस्थान पुलिस की एसओजी का नोटिस मिलने के बाद तो सचिन पायलट का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया है. अब वह गहलोत को अपनी ताकत का एहसास कराने का मूड बना चुके हैं. लेकिन इंदिरा गांधी और संजय गांधी के करीबियों में शुमार रहे गहलोत भी सियासत के महारथी हैं. वह पहले ही साफ कर चुके हैं कि जिसे जहां जाना है जाए उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं है. लेकिन राजस्थान कांग्रेस के इन दो सियासी दिग्गजों की जंग दम तोड़ रही कांग्रेस के भविष्य के लिए नुकसानदायक साबित होगी. दिल्ली मेंंइस पर मंथन चल रहा है और जयपुर मेें विधायक दल की बैठक हो रही हैै.
दरअसल, गहलोत ने राजस्थान की राजनीति में जमीनी स्तर से शीर्ष का सफर तय किया है. गहलोत का परिवार माली समाज से आता है. इनका परिवार किसी जमाने में जादूगरी का करतब दिखाता था. गहलोत ने राजस्थान ही नहीं, बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी कांग्रेस की नैया पार लगाने में भरपूर मदद की है. गुजरात के प्रभारी के तौर पर उन्होंने वहां की युवा तिकड़ी हार्दिक-अल्पेश-जिग्नेश को कांग्रेस के साथ खड़ाकर पार्टी को जीत की दहलीज पर ला खड़ा किया था और आज की तारीख में अशोक गहलोत पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व में अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के सबसे करीब हैं.
अशोक गहलोत को 70 के दशक में कांग्रेस में शामिल होने का मौका मिला था, जब पू्र्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय पार्टी में संजय गांधी की चलती थी. जब संजय गांधी के करीबियों ने उन्हें अशोक गहलोत के बारे में बताया तो उन्होंने गहलोत को राजस्थान में पार्टी के छात्र संगठन एनएसयूआई का अध्यक्ष बनाया.
कुछ लोगों का मानना है कि अशोक गहलोत पर सबसे पहले स्वयं इंदिरा गांधी की नजर पड़ी थी. जब पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में विद्रोह के बाद पूर्वोत्तर में शरणार्थी संकट खड़ा हो गया था. गहलोत की उम्र उस वक्त 20 साल थी और इंदिरा ने उन्हें राजनीति में आने का न्योता दिया. जिसके बाद गहलोत ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के इंदौर सम्मेलन में हिस्सा लिया और यहीं उनकी मुलाकात संजय गांधी से हुई.
अशोक गहलोत की सरलता और सादगी उन्हें राजनीति में काफी ऊपर ले गई. एक समय था जब दिल्ली के बड़े नेता अहमद पटेल और गुलाम नबी आजाद के सामने गहलोत को जगह नहीं मिलती थी और आज वे इनके बराबरी में खड़े हैं. अपने स्वभाव और साधारण पृष्ठभूमि के अनुरूप अशोक गहलोत राजस्थान में लो प्रोफाइल रहते हुए काम करते रहे. लेकिन संजय गांधी की विमान हादसे में मौत के बाद जब पार्टी में राजीव गांधी को अहम रोल मिला, तब उन्होंने गहलोत के नाम की सिफारिश इंदिरा गांधी की कैबिनेट में राज्यमंत्री के तौर पर की. इस दौरान राजस्थान में कांग्रेस के दो बड़े नेता पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी और शिवचरण माथुर का बोलबाला था. लेकिन गहलोत को राजीव गांधी का भरोसा हासिल था.
वहीं पायलट राजस्थान की सियासत का बड़ा युवा चेहरा होने के साथ ही जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला के दामाद भी हैं. पायलट प्रदेश के उपमुख्यमंत्री होने के साथ-साथ पार्टी के प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी हैं. उनकी बातों पर गौर करें तो पहले ही वे साफ कर चुके हैं कि जो लोग पार्टी में शामिल हुए हैं वो बिना किसी इनाम की इच्छा से कांग्रेस पार्टी में आए हैं. इसलिए कांग्रेस के पुराने कार्यकर्ताओं और नेताओं को प्राथमिकता मिलनी चाहिए. लेकिन अब यह नाराजगी बढ़ गई है और हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि पायलट ने खुलेआम कह दिया कि गहलोत सरकार अल्पमत में है. लिहाजा, माना जा सकता है कि पायलट खेमा ज्यों ही हटेगा, गहलोत की सरकार कभी भी गिर सकती है.
राजस्थान की राजनीति में सचिन पायलट बनाम अशोक गहलोत के समीकरण विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत के बाद से ही सामने आने लगे थे. राजनीतिक विश्लेषकों और कार्यकर्ताओं का मानना था कि सचिन पायलट ने जमीनी स्तर पर मेहनत करके पूरे राज्य में वसुंधरा सरकार के खिलाफ माहौल बनाया था. हालांकि, अशोक गहलोत को केंदीय नेतृत्व के करीबी और वरिष्ठ होने की वजह से वरीयता दी गई. जिस समय कांग्रेस ने राजस्थान में जीत हासिल की, वह जीत न केवल इस राज्य में कांग्रेस के लिए बल्कि पूरे देश में विपक्ष के लिए अहम थी. उसी समय मध्य प्रदेश में भी युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया पर वरिष्ठ नेता कमलनाथ को तरजीह देकर मुख्यमंत्री बनाया गया था. राजस्थान में भी कुर्सी को लेकर पायलट और गहलोत दोनों गुटों में अनबन चल रही थी, लेकिन राहुल गांधी ने तब दोनों को समझाकर सत्ता गहलोत को तो संगठन की कमान पायलट को सौंप दी थी. हालांकि, दोनों के बीच की दरार भरने की बजाए धीरे-धीरे चौड़ी ही होती चली गई.
सचिन पायलट राजनीति में रचे-पके नेता हैं. उनके निजी जिंदगी की बात करें तो उन्होंने शादी से पहले राजनीति में कदम रखने के बारे में कभी नहीं सोचा था. लेकिन पिता राजेश पायलट के निधन के बाद उन्हें राजनीति में आना पड़ा. जिस समय सचिन पायलट ने राजनीति के मैदान में कदम रखा उस समय उनकी उम्र महज 26 साल थी. सचिन ने 2004 के लोकसभा चुनावों में दौसा (राजस्थान) से बड़ी जीत हासिल की थी. पायलट का जन्म 7 सितंबर 1977 को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में कांग्रेस नेता राजेश पायलट के घर हुआ था. सचिन ने नई दिल्ली के एयर फोर्स बाल भारती स्कूल से पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफंस कॉलेज से बीए की डिग्री हासिल की और गाजियाबाद के आई.एम.टी से मार्केटिंग में डिप्लोमा हासिल किया. आगे की पढ़ाई करने के लिए सचिन अमेरिका चले गए और उन्होंने वहां की पेनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी से एमबीए की पढ़ाई की.
सचिन पायलट ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला की बेटी और उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्दुल्लाह से शादी की है. सचिन जहां हिंदू परिवार से आते हैं वहीं सारा मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखती हैं. इसके साथ ही दोनों राजनीतिक घरानों से आते हैं.