दिवाकर, पटना
बाढ़ और कोरोना महामारी के बढ़ते खतरे को देखते हुए ‘युवा हल्ला बोल’ की एक टीम ने उत्तरी बिहार के प्रभावित इलाकों का दौरा किया। अलग-अलग जिलों में जाकर ज़मीनी हालात का जायज़ा लेने से पाया गया कि बाढ़ की स्थिति अत्यंत गंभीर है। ‘युवा हल्ला बोल’ इन परिस्थितियों को देखते हुए “सहयोग भी, सवाल भी” नाम से विशेष अभियान चला रहा है। वैसे तो बिहार हमेशा से ग़रीबी, भूखमरी और बेरोज़गारी का दंश झेलता रहा है। पर अभी जो स्थिति बनी है, वह अभूतपूर्व और चिंताजनक है। एक तरफ बाढ़ की त्रासदी है तो दूसरी तरफ वैश्विक महामारी कोरोना का कोप। एक तरफ वायरस का संक्रमण बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ़ नदियों का जलस्तर बढ़ रहा है। आज इन दो बड़े संकटों से जूझता बिहार मदद के लिए हर तरफ देख रहा है। राज्य और केंद्र सरकार की तमाम कोशिशें नाकाफ़ी साबित हो रही हैं। ऐसे में ज़मीनी हक़ीक़त का जायजा लेकर लौटे युवा हल्ला बोल ने सरकार से पूछा ‘ बाढ़ में बिहार, कहाँ है सरकार?’
बाढ़ का बिहार पर प्रभाव
‘युवा हल्ला बोल’ टीम के अतुल झा ने बताया कि बिहार के ज़्यादातर प्रवासी मजदूर बाढ़ प्रभावित जिलों के निवासी हैं। कोरोना के कारण वो अन्य राज्यों से अपना रोजगार छोड़ खाली हाथ अपने घर लौटे थे। लेकिन अब उन्हें बाढ़ के कारण एक तरफ जहाँ अपने घर से निकल सड़कों पर समय बिताना पड़ रहा, वहीं दुबारा हुए लॉकडाउन के कारण रोजगार के छोटे-मोटे अवसर से भी वंचित हैं। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में तो मनरेगा का काम भी बंद है।
बाढ़ के कारण पशुओं को हरा चारा नहीं मिल रहा, ‘युवा हल्ला बोल’ की टीम ने जिन इलाकों का दौरा किया कहीं भी फॉडर को लेकर कोई सरकारी इंतज़ाम नहीं दिखा।
बाढ़ प्रभावित निवासी बाज़ार के काम से सूखे इलाके में रोजमर्रा की वस्तुएं, नदवा इत्यादि लेने भूखे-प्यासे निकलते हैं। घर वापिस लौटते लौटते उन्हें दोपहर हो चुका होता है। लेकिन नाव के लिए घंटों नदी किनारे इंतज़ार करना पड़ता है। ‘युवा हल्ला बोल’ की टीम ने देखा कि बीमार बच्चें, महिलायें, बुज़ुर्ग इत्यादि घंटों कड़ाके की धूप व मूसलाधार बारिश में नाव के इंतज़ार में बिना किसी शेड के बैठते हैं। ‘युवा हल्ला बोल’ का कहना है कि इस समस्या को देखते हुए बिहार सरकार को अविलंब शेड्स की व्यवस्था करनी चाहिए।
सरकार ने ‘बोट अधिनियम’ के तहत कहा है कि हर नाव पर 2 व्यक्ति पर कम से कम 1 लाइफ जैकेट होना अनिवार्य है। लेकिन ‘युवा हल्ला बोल’ की टीम को ऐसा कुछ कहीं नहीं दिखा। साथ ही 25 आदमी के बैठने वाले नाव में बिहार सरकार ने 38 लोगों को बैठने की अनुमति दे रखी है। इस तरह के नियम हादसे को निमंत्रण देना है।
कोरोना महामारी में 12 फीट की नाव में अगर 38 लोग बैठेंगे तो ‘शारीरिक दूरी’ का पालन कैसे हो पायेगा? साथ ही, नावों पर सैनेटाइजेशन के लिए कोई सरकारी इंतज़ाम तो दूर दूर तक होता न दिखा। ‘युवा हल्ला बोल’ ने कहा कि सरकार का ध्यान इस ओर भी होना चाहिए।
कोरोनावायरस के संक्रमण से बचाव के लिए स्कूल बंद पड़े हैं। सरकार का दावा है कि छात्रों को मध्याहन भोजन के बदले अनाज व पैसे दिए जा रहे हैं। ‘युवा हल्ला बोल’ की टीम ने डूबे क्षेत्रों में जब इसकी तहकीकात की तो बच्चों व माता-पिता ने बताया कि उनके बच्चों को ऐसा कुछ भी नहीं मिला।
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बारिश के कारण जलस्तर में लगातार वृद्धि हो रही है, ऐसे में धान रोपण करने वाले किसानों को एक ही फसल के लिए कई बार रोपाई करना पड़ रहा है। हमारी टीम को स्थानीय किसानों ने बताया कि हमनें दो-तीन बार फसल को रोपा लेकिन जलस्तर में वृद्धि होने से खेतों से बीज गायब हो गया। सरकार से मदद के सवाल पर प्रभावित लोगों ने बताया कि कोई ठोस मदद नहीं मिली। ‘युवा हल्ला बोल’ ने सुझाव दिया कि अगर जल संसाधन मंत्री ट्विटर पर जलस्तर की सूचना देने के साथ किसानों तक सूचना पहुँचाने के लिए ढ़ोल, स्पीकर इत्यादि का सहारा लें तो बेहतर होगा।
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में लोग अपने परिवार व माल-जाल के साथ सड़कों व तटबंधों पर रहने को विवश हैं। जबकि करोड़ों की लागत से बनाए गए ‘आश्रय केंद्र’ में ताला लटक रहा। ‘युवा हल्ला बोल’ की टीम को बाढ़ प्रभावित सहरसा जिले के काशिपुर और बकौर में ‘बाढ़ आश्रय केंद्र’ खाली मिले। यही हाल सुपौल में बने बाढ़ आश्रय केंद्रों का रहा जहाँ इन केंद्रों में पशु विचरण करते मिले। सहरसा और सुपौल में टीम को एक भी सामुदायिक रसोईघर नहीं मिला। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पूरे राज्य में इस वक्त 17 राहत शिविर चल रहे हैं जिसमें 17,916 लोगों को आश्रय मिला है।
‘युवा हल्ला बोल’ का नेतृत्व कर रहे अनुपम ने बिहार सरकार से मांग किया है कि सरकार जल्द से जल्द इन सवालों और सुझावों का संज्ञान लेकर बाढ़ प्रभावित लोगों का सहयोग करे.