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अब तक कोई नहीं तोड़ पाया भाजपा नेत्री माया सक्सेना की जीत का रिकॉर्ड, बस एक बार ही लड़ीं चुनाव, अब भाजपा में निभा रही हैं ये जिम्मेदारी

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नीरज सिसौदिया, बरेली
‘माया सक्सेना’, 90 के दशक में राजनीति करने वाले इस नाम से भली-भांति परिचित होंगे। हों भी क्यों न? यह वही नाम है जो न सिर्फ बरेली बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में रोशन हुआ था। उस दौर में पहली बार चुनावी मैदाान में उतरी माया सक्सेना ने जीत का जो रिकॉर्ड बनाया था उसे आज तक कोई नहीं तोड़ सका। खुद उनके पति भी आज तक उनकी बराबरी नहीं कर सके।
इंडिया टाइम 24 से खास बातचीत में माया ने बताया, ‘वर्ष 1995 की बात है। पहली बार नगर निगम चुनाव होने जा रहे थे। हमारा वार्ड महिला आरक्षित हो गया था। मेरे पति सतीश कुमार मम्मा इसी वार्ड से पार्षद रह चुके थे। इस बार सीट महिला आरक्षित हो चुकी थी। समाजसेवा के क्षेत्र में मैं पहले से ही सक्रिय भूमिका निभाती रहती थी। पति के साथ उनके चुनाव में मैंने कदम से कदम मिलाकर उनका साथ दिया था। अब चूंकि वार्ड महिला आरक्षित हो चुका था इसलिए पति अब चुनाव नहीं लड़ सकते थे। लोगों के कहने पर उन्होंने मुझे चुनाव मैदान में उतार दिया। मेरा यह पहला चुनाव था। पति ने मुझे चुनाव में तो उतार दिया था पर आगे का सफर मुझे अकेले ही तय करना था। पति ने मुझे मोरल सपोर्ट तो दिया पर बात जब कैंपेनिंग की आती थी तो वह दूरी बना लेते थे। वो चाहते थे कि कल को अगर मैं चुनाव जीतूं तो कोई यह न कह सके कि पति की मेहरबानी की वजह से मैंने यह मुकाम हासिल किया है। मैं कुछ घबराई हुई तो थी मगर एक मौका भी था खुद को साबित करने का। मुझे यहां के मुस्लिम समुदाय का पूरा साथ मिला।’ माया बताती हैं, ‘जब मुझे भाजपा प्रत्याशी घोषित किया गया था तो मैं समझ नहीं पा रही थी कि यह सफर कैसे तय कर पाऊंगी। मेरे प्रत्याशी घोषित होते ही मुस्लिम समुदाय के लोगों ने एक मीटिंग की। जिसमें यह निर्णय लिया गया कि मेरे विरोध में कोई भी मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा नहीं होगा। उसी साल वार्ड का भी विभाजन हो चुका था। पहले जहां हमारे वाार्ड में 38 हजार वोटर थे, वहीं अब मात्र 12 हजार ही रह गए थे। मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा नहीं होने का नतीजा यह हुआ कि मैं 52 सौ से भी अधिक वोटों से चुनाव जीत गई।’

जानकारी देतीं माया सक्सेना

रिकॉर्ड तोड़ जीत हासिल करने के बाद दोबारा कभी चुनावी मैदान में न उतरने का कारण पूछने पर माया बताती हैं, ‘दोबारा चुनाव लड़ने की इच्छा तो हुई पर पार्टी ने मौका ही नहीं दिया। इसलिए पार्टी ने जिसे चुना मैंने उसी को जिताने का पूरा प्रयास किया। एक बार मेयर की सीट महिला आरक्षित हुई तो मन हुआ चुनाव लड़ने का लेकिन उस वक्त भाजपा ने संजना जैन पर भरोसा जताया। मैं पार्टी के निर्णय के खिलाफ कैसे जा सकती थी। ऐसे में मैंने संजना जी की जीत सुनिश्चित कराने का प्रयास किया।’
माया सक्सेना वर्तमान में संगठन में अहम भूमिका निभा रही हैं। पूछने पर कहती हैं, ‘पार्टी ने भले ही मुझे दोबारा चुनाव लड़ने का मौका न दिया हो लेकिन सम्मान पूरा दिया। मैं आभारी हूं कि पार्टी ने मुझे एक बार चुनाव में उतारा और मैं जीत का रिकॉर्ड बनाने में सफल रही। मैं बीडीए की सदस्य भी रही। अब महिला माोर्चा में महानगर मंत्री पद की जिम्मेदारी निभा रही हूं। भविष्य में पार्टी मौका देगी तो जरूर चुनाव लड़ूंगी। ‘

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