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तीस साल में एक बार भी नहीं हारे निगम चुनाव, अब लड़ेंगे विधानसभा चुनाव, पार्षद सतीश चंद्र सक्सेना मम्मा ने खुलकर कही दिल की बात, पढ़ें मम्मा का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

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सतीश चंद्र सक्सेना ‘मम्मा’ कातिब बरेली की सियासत का जाना पहचाना चेहरा हैं. अपने राजनीतिक करियर में वह एक बार भी स्थानीय निकाय चुनाव में पराजित नहीं हुए. मम्मा की काबिलियत का लोहा विपक्षी भी मानते हैं. उन्होंने सियासत को अपनी जिंदगी के तीस बेशकीमती साल दिये हैं. क्या अब मम्मा विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं? वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में वह किस सीट से दावेदारी जता रहे हैं? अपने अब तक के सफर और शहर के विकास को वह किस नजरिये से देखते हैं? मम्मा ने अपने वार्ड के 19 पार्कों का सौंदर्यीकरण केसरिया रंग में कराया है. ऐसा करके वह क्या संदेश देना चाहते हैं. ऐसे ही कई दिलचस्प मुद्दों पर मम्मा ने इंडिया टाइम 24 के प्रधान संपादक नीरज सिसौदिया से खुलकर बात की. पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश…
सवाल : क्या आप राजनीतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि से हैं?
जवाब : जी नहीं, मेरी कोई राजनीतिक पृष्ठ भूमि नहीं थी. मेरे पिता कातिब थे. मेरे दोनों भाई भी यही व्यवसाय करते थे और मैंने भी इसी व्यवसाय को अपनाया. समाजसेवा का जज्बा मुझे जरूर अपने पिता स्व. श्री कृष्ण स्वरूप कातिब जी से विरासत में मिला था.
सवाल : फिर राजनीति में कैसे आना हुआ?
जवाब : बात 1989 की है. 17 साल के लंबे इंतजार के बाद बरेली महानगर पालिका के चुनाव होने जा रहे थे. समाज सेवा के क्षेत्र में सक्रिय रहने के कारण तत्कालीन विधायक दिनेश जौहरी का हमारे घर आना-जाना था. उस वक्त उन्होंने मुझसे चुनाव लड़ने को कहा. साथ ही भारतीय जनता पार्टी से टिकट दिलवाने का भी वादा किया. मैं राजनीति में कभी नहीं आना चाहता था. यही वजह थी कि जब जौहरी जी ने मुझसे चुनाव लड़ने को कहा तो दो बार तो मैंने साफ इनकार कर दिया था. लेकिन जब वह तीसरी बार मेरे घर पर आए तो मैं इनकार नहीं कर सका. हालांकि मुझे उम्मीद नहीं थी कि पार्टी मुझे टिकट देगी. फिर टिकट बंटवारे का वक्त भी आ गया. उस वक्त महानगर पालिका में तीस वार्ड हुआ करते थे और प्रत्येक वार्ड में दो सभासद होते थे. भाजपा ने मुझे टिकट नहीं दिया और मेरे तत्कालीन वार्ड नंबर 18(वर्तमान में 41 नंबर वार्ड) से रामगोपाल मिश्रा और उमेशनंदन भटनागर को मैदान में उतार दिया. मैं चुनाव की तैयारियां कर चुका था. इसलिए निर्दलीय ही मैदान में उतर गया. उस वक्त मेरे वार्ड में 38 हजार वोटर थे और जगाती मोहल्ला, पंजाब पुरा, गुलाम मोहल्ला आदि इलाके मेरे वार्ड में आते थे. जब चुनाव परिणाम घोषित हुए तो मैं 1457 वोटों से चुनाव जीत गया. इस तरह से मैं पहली बार चुनाव लड़ा और पहली बार में ही सभासद बन गया.
सवाल : पहली बार सभासद बनने के बाद आगे का सफर कैसा रहा?
जवाब : समाज सेवा के क्षेत्र में मैं पहले से ही एक्टिव रहता था. चुनाव जीतने के बाद मुझे एक प्लेटफार्म भी मिल गया तो जनसेवा में तेजी आई. 1989 के बाद वर्ष 1995 में बरेली नगर निगम बन गया. अब तक वार्डों का विभाजन हो चुका था. अब तीस की जगह साठ वार्ड हो गए थे. मेरा वार्ड महिला आरक्षित हो गया. मैं पहला नगर निगम चुनाव नहीं लड़ सका तो पत्नी को मैदान में उतारा. इस चुनाव में पत्नी ने रिकॉर्ड 52 सौ से भी अधिक वोटों से जीत हासिल कर पूरे प्रदेश में सबसे अधिक वोटों से जीतने का रिकॉर्ड बनाया जिसे आज तक कोई नहीं तोड़ पाया. मैं खुद भी इस इतिहास को नहीं दोहरा सका. पहले हम जगाती मोहल्ले में रहते थे और दो चुनाव हमने वहीं से लड़े. जो वर्तमान में वार्ड 41 के तहत आता है. इसके बाद हम राजेंद्र नगर आ गए. फिर वर्ष 2000 का चुनाव मैंने वार्ड 23 से ही लड़ा. मैंने जिला योजना समिति का चुनाव भी जीता. लोगों का मुझे इतना प्यार मिल रहा है कि मैं 1989 से लेकर आज तक कभी भी सभासद का चुनाव नहीं हारा.

अपने राजनीतिक सफर के बारे में बताते पार्षद मम्मा.

सवाल : आप विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं?
जवाब : जी. मैंने वर्ष 2011-12 का विधानसभा चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की पार्टी जन क्रांति पार्टी से बरेली शहर विधानसभा सीट से लड़ा था. जिसमें मैं भाजपा के डा. अरुण कुमार से पराजित हुआ.
सवाल : आप स्थानीय निकाय का एक भी चुनाव नहीं हारे तो कभी मेयर का चुनाव लड़ने का मन नहीं हुआ?
जवाब : मेयर का चुनाव लड़ने का मेरा मन हुआ था लेकिन तब सीट ओबीसी के लिए आरक्षित थी और चूंकि मैं कायस्थ हूं, सामान्य जाति से आता हूं, इसलिए चुनाव नहीं लड़ सका. जब महिला सीट हुई तो मेरी पत्नी ने दावेदारी की लेकिन पार्टी ने संजना जैन जी को टिकट दिया. चू्ंकि उनके पति स्व. सुधीर जैन जी मेरे पारिवारिक मित्र थे इसलिए मैंने पूरे दमखम से संजना जी का साथ दिया. अब अगर सामान्य सीट रहती है तो देखेंगे.
सवाल : क्या इस बार आप विधानसभा चुनाव लड़ेंगे?
जवाब : मैं विधानसभा चुनाव लड़ूंगा या नहीं इसका निर्णय तो पार्टी को लेना है. फिलहाल मैं महानगर अध्यक्ष माननीय केएम अरोड़ा जी को अपना प्रत्यावेदन दे चुका हूं कि शहर विधानसभा सीट अगर सामान्य रहती है तो मैं इस सीट से चुनाव जरूर लड़ना चाहूंगा. महानगर अध्यक्ष जी से मैं निवेदन कर चुका हूं कि 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए मेरे प्रत्यावेदन को स्वीकार करें और मेरे आवेदन को आगे तक बढ़ाएं.
सवाल : आप वर्ष 1989 से सभासद बनते आ रहे हैं. इतने वर्षों में आपने नगर निगम को देखा और समझा है. आपको क्या लगता है कि क्यों शहर में विकास नहीं हो पा रहा है?
जवाब : विकास के लिए सबसे ज्यादा जरूरत इच्छाशक्ति की होती है. मैं अपने वार्ड का उदाहरण देता हूं. मेरे अपने वार्ड में जलभराव का इतना बुरा हाल था कि सोफे, बर्तन और घरों में रखा सामान बरसात के पानी में तैरते रहते थे. तब भाजपा की ही माया जी पार्षद थीं. एक दिन बरसात में मैंने देखा कि कुछ लोग उन्हें पकड़कर ले जा रहे थे. तो मैंने रोका और कारण पूछा. उसके बाद से मैं माया जी के साथ इस समस्या काे दूर करने का प्रयास करता रहा. वर्ष 2000 में तत्कालीन महानगर अध्यक्ष केवल कृष्ण जी ने मुझे पार्षद का टिकट दिया. मैं पार्षद बना तो उस वक्त आजम खां नगर विकास मंत्री थे. तो मैं नाला निर्माण के लिए आजम खां से दो करोड़ रुपए मांगने गया था. लगातार छह माह तक मैं उनके घर और दफ्तर के चक्कर काटता रहा. आखिरकार आजम खां ने इंद्रा नगर के नाला निर्माण के लिए एक करोड़ रुपए जारी किए. जिससे नाला बना और जलभराव का हल निकला. इसी तरह हमने तत्कालीन नगरायुक्त प्रभास मित्तल से कहकर सीवर लाइन डलवाई. मैंने अपने इलाके में कैंप लगाकर इतना टैक्स जमा करवाया कि उसी पैसे से सीवर लाइन डलवाने को नगरायुक्त को मजबूर कर दिया. कुल मिलाकर अगर इच्छाशक्ति हो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं है.

शहर के विकास के मुद्दे गिनाते मम्मा

सवाल : आपके वार्ड में पार्कों की क्या स्थिति है?
जवाब : मेरे वार्ड में 34 पार्क हैं जिनमें से 19 पार्कों का मैं निर्माण करा चुका हूं. सभी पार्कों में जो भी निर्माण करवाया है वह सभी केसरिया रंग में कराया है. एक संदेश देना चाहता हूं मैं लोगों को. यह रंग शांति का प्रतीक है. पार्कों का सौंदर्यीकरण चल रहा है. आठ पार्कों का टेंडर हो चुका है. मैंने पिछले ढाई वर्षों में अपने वार्ड में 1138 एलईडी भी लगाई हैं. साथ ही अन्य वार्डों से अगर किसी भी कार्यकर्ता को मेरी जरूरत होती है तो मैं जाता हूं और मदद करता हूं.
सवाल : कूड़ा निस्तारण एक बड़ी समस्या है. इसका क्या समाधान है?
जवाब : इसका समाधान है. माननीय महापौर उमेश गौतम ने महापौर बनने से पहले ही नगर निगम को सौ बीघा से अधिक जमीन दान में दी थी कूड़ा निस्तारण के लिए. फरीदपुर के ग्राम सतरखपुर में भी जमीन खरीदी गई है और बहुत ही जल्दी माननीय महापौर के नेतृत्व में यह सपना पूरा होगा. मेरे निवेदन पर माननीय महापौर जी ने मेरे निवेदन को स्वीकार किया था. बाकरगंज की पार्षद हैं शाहजहां बेगम. उन्होंने मुझसे निवेदन किया था और मैंने महापौर से निवेदन किया. जिसे स्वीकार करते हुए उन्होंने डंपिंग ग्राउंड के चारों ओर दीवार बनवाई ताकि कूड़ा सड़क पर न फैले. जल्द ही माननीय महापौर जी के नेतृत्व में बाकरगंज के कूड़े की समस्या हल हो जाएगी.
सवाल : कोरोना काल में लोगों को काफी तकलीफ झेलनी पड़ी. लॉकडाउन में ऐसे गरीब लोगों के लिए आपने क्या किया? क्या आपका किसी ने साथ दिया?
जवाब : लॉकडाउन के दौरान हमने गरीबों तक भोजन पहुंचाने का व्यापक पैमाने पर काम किया. इसमें मेरे मित्र और राष्ट्र व्यापी व्यापार मंडल के महानगर अध्यक्ष सुदेश गुप्ता, राधेश्याम जी आदि लोगों का बहुत सहयोग रहा. मैं आभारी हूं बिथरी विधायक राजेश मिश्रा उर्फ पप्पू भरतौल जी का जिन्होंने गरीबों की मदद की और उनकी प्रेरणा से ही मैं भी आगे बढ़ता गया. साथ ही आभारी हूं महिला मोर्चा की अध्यक्ष इंदू सेठी और मोर्चा की सभी बहनों का जिनकी मदद से हम उन लोगों तक भोजन पहुंचाने में भी सफल रहे जो तीन-तीन दिन से भूखे थे.

सवाल : सियासत आपको विरासत में नहीं मिली थी. आपने अपने दम पर यह मुकाम हासिल किया है. क्या अपने बच्चों को आप ये विरासत देकर जाएंगे?

जवाब : मेरे चार बच्चे हैं जिनमें एक बेटी की शादी हो गई है. दूसरी बेटी फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रही है. बड़ा बेटा ऑस्ट्रेलिया से एमबीए कर रहा है और छोटा बेटा एलएलबी में पढ़ रहा है. राजनीति में फिलहाल मैं और मेरी पत्नी के अलावा हमारे परिवार का कोई सदस्य सक्रिय नहीं है. अब ये बच्चों का मन है कि वे राजनीति में आने का फैसला करते हैं या नहीं.

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