पंजाब

पर्दे के पीछे :किसानों की आवाज बने सरदार अमरप्रीत सिंह मोंटी, देश के किसानों को कर रहे एकजुट 

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नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
पंजाब और हरियाणा से शुरू होकर अब किसानों का आंदोलन देशभर में पैर पसारने लगा है. इस आंदोलन को देशव्यापी बनाने के लिए जो लोग दिन रात मेहनत कर रहे हैं उनमें से एक पंजाब के जालंधर के रहने वाले सरदार अमरप्रीत सिंह मोंटी भी हैं. सरदार मोंटी की गिनती जालंधर के उन वरिष्ठ अकाली नेताओं में होती है जो आसमान की बुलंदियों को छूने के बावजूद जमीन से जुड़े रहे. नाम, शोहरत, इज्जत और जरूरत भर की दौलत होने के बावजूद सरदार मोंटी गरीबों और असहायों से जुड़े हर छोटे बड़े आंदोलन का हिस्सा बनते रहते हैं. इन आंदोलनों में वह हमेशा एक सच्चे सिपाही की भूमिका में नजर आए हैं. नेताओं की तरह वह न तो कोरी बयानबाजी में विश्वास करते हैं और न ही कभी कोरी शोहरत हासिल करने का प्रयास करते हैं. सरदार मोंटी का दिल इतना बड़ा है कि हर कौम के इंसान की मदद को हर वक्त तैयार रहते हैं. सादगी से बिना ढिंढोरा पीटे किसी इंसान की मदद कैसे की जाती है यह मोंटी से सीखा जा सकता है.मोंटी न तो खुद किसान हैं और न ही किसानों को लेकर राजनीति से उन्हें कोई लाभ होने वाला है. इसके बावजूद जिस तन्मयता से वह पहले ही दिन से किसानों के आंदोलन में कूद पड़े हैं वह वाकई काबिले तारीफ है. मोंटी का किसान आंदोलन सिर्फ हाथों में तख्ती लेकर दो चार नारे लगाकर फोटो खिंचवाने वाला नहीं है बल्कि इस आंदोलन का प्रचार प्रसार सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों से करने में भी वह महत्व पूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.
मोंटी यह सब किसी राजनीतिक या व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं कर रहे. उन्हें फिक्र है पंजाब के उन किसानों की जो पूरे देश का पेट भरते हैं. मोंटी कहते हैं कि जो हमारा पेट भरता है अगर वही भूखा रह जाए तो हमारा जीवन व्यर्थ है. किसानों को पूंजीपतियों का गुलाम नहीं बनाना चाहिए. किसानों को यह हक होना चाहिए कि कानून उनकी सहूलियत को ध्यान में रखकर उन्हें आगे बढ़ाने के लिए बनाया जाए न कि उनकी दुनिया उजाड़ने के लिए.गरीबों और असहायों के प्रति मोंटी का यह लगाव आज से नहीं बल्कि तब से है जब वह अकाली दल का हिस्सा भी नहीं थे. समाजसेवा से उनका गहरा नाता रहा है.
केंद्र सरकार और उसके नुमाइंदों द्वारा कृषि कानूनों को लेकर किसानों द्वारा किए जा रहे आंदोलन को विपक्ष की साजिश करार दिया जा रहा है. उनका कहना है कि जो लोग आंदोलन पर डटे हैं वे किसान हैं ही नहीं. वहीं कुछ लोगों का कहना है कि आंदोलनकारियों में से आधे ही किसान हैं. यह बात एकदम सही है कि आंदोलन पर डटे सभी लोग किसान नहीं हैं. उनमें कुछ लोग सरदार अमरप्रीत सिंह मोंटी जैसे भी हैं जो किसानों के हक की लड़ाई में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं. कुछ ऐसे भी हैं जो बेबस किसानों के लिए रोटी की व्यवस्था कर रहे हैं. अगर ऐसा है तो फिर इसमें गलत क्या है? सरकार को इससे तकलीफ क्यों है? क्या सरदार मोंटी जैसे लोगों को किसानों के हक की लड़ाई नहीं लड़नी चाहिए? ये मोंटी जैसे लोगों के हौसले और समर्थन का ही असर है कि देश का किसान सरकार के खिलाफ इतने बड़े आंदोलन को जन्म दे पाया है वरना जाने कब का किसानों की आवाज को दबा दिया गया होता.
बहरहाल, जब तक इस देश में सरदार मोंटी जैसे लोग रहेंगे, कोई भी गरीबों और बेबसों का हक आसानी से नहीं मार सकेगा.

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