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सरकारी खजाने को करोड़ों के जीएसटी की चपत लगाने में जुटा नगर निगम, पार्किंग के नाम पर चौपट कर रहे कारोबार, विधानसभा चुनाव में भाजपा को होगा डुबाने की तैयारी कर रहे अधिकारी 

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नीरज सिसौदिया, बरेली
शहर का अनियोजित विकास और रेवेन्यू प्लानिंग में नाकाम नगर निगम के अधिकारी व्यापारियों के लिए मुसीबत का सबब बन गए हैं. 25 रुपये की पार्किंग के चक्कर में करोड़ों रुपये का कारोबार तो चौपट कर ही रहे हैं, साथ ही जीएसटी विभाग को भी करोड़ों रुपये की चपत लगाने की तैयारी में जुटे हैं.
दरअसल, शहर के मुख्य बाजारों में यातायात जाम की समस्या विकराल होती जा रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह बेतरतीब तरीके से वाहनों की पार्किंग भी है. इससे निजात दिलाने का दबाव जब नगर निगम पर पड़ा तो निगम कमिश्नर और अन्य अधिकारियों को पार्किंग बनाने की सुध आई. बिना किसी तैयारी और गहन अध्ययन के प्री पेड पार्किंग बना दी गई और निजी लोगों को पार्किंग के ठेके भी दे दिए गए. तर्क यह दिया गया कि पार्किंग ठेके पर देने से जाम की समस्या से तो निजात मिलेगी ही, निगम को रेवेन्यू भी मिलेगा. दो जगह प्री पेड पार्किंग शुरू भी कर दी गईं. पार्किंग शुल्क कार के लिए 50 रुपये, तीन पहिया वाहन के लिए तीस रुपये, दोपहिया के लिए दस रुपये और साइकिल के लिए तीन रुपये रखा गया है. एलन क्लब और सिविल लाइन की पार्किंग में वसूली के लिए बाउंसर लगा दिए गए. आधे अधूरे होमवर्क के साथ शुरू की गई इस व्यवस्था ने व्यापारियों की मुसीबतें बढ़ा दीं. यह व्यवस्था लागू करने से पूर्व व्यापारियों से कोई बात नहीं की गई. निगम के अल्पबुद्धि अधिकारियों और सियासतदानों ने यह भी नहीं सोचा कि अपने छोटे से रेवेन्यू को बढ़ाने के चक्कर में वह करोड़ों रुपये के जीएसटी की चपत सरकार को लगाने जा रहे हैं. इस बात को समझना तो दूर उल्टा पूरे शहर में पार्किंग ठेके दे दिए.
उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार मंडल के प्रांतीय महामंत्री राजेंद्र गुप्ता और चेयरमैन दर्शन लाल भाटिया पहले ही निगम के इस फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं. निगम में विपक्ष के नेता राजेश अग्रवाल ने भी इस पर आपत्ति जताई है. व्यापारियों का कहना है कि निगम पार्किंग बनाए लेकिन शुल्क वसूल न करे. उन्होंने कहा कि हम नगर निगम को कई तरह के शुल्क विभिन्न रूपों में अदा करते हैं. जब से प्री पेड पार्किंग बनी है तब से ग्राहकों का आना कम हो गया. पहले ग्राहक आता था तो अपनी गाड़ी खड़ी कर एक-एक दुकान में जाकर सामान देखता है. इस देखने दिखाने के दौरान 90 फीसदी ग्राहक कुछ न कुछ सामान लेकर ही जाते थे. इनमें ज्यादातर ग्राहक ऐसे होते थे जो घर से खरीदारी करने के इरादे से नहीं निकलते थे लेकिन सामान पसंद आने पर खरीदारी कर लेते थे. अब चूंकि उन्हें यहां गाड़ी खड़ी करने के लिए पार्किंग फीस अदा करनी पड़ती है तो न तो ग्राहक आता है और न ही बिक्री होती है. सिर्फ वही गिने-चुने ग्राहक ही दुकानों पर आते हैं जो घर से खरीदारी करने के इरादे से ही निकलते हैं और पार्किंग शुल्क देने में उन्हें कोई एतराज भी नहीं. वहीं 90 फीसदी ग्राहक उन दुकानों का रुख करता जा रहा है जहां उसे वाहन खड़ा करने के लिए पार्किंग फीस अदा नहीं करनी पड़ती. ऐसे में कारोबार पूरी तरह से चौपट होता जा रहा है. अब जब कारोबार ही नहीं होगा तो व्यापारी टैक्स कैसे भरेगा. जब ग्राहक नहीं आएगा तो वाहन पार्किंग से रेवेन्यू वसूलने का निगम केे ठेकेदारों का सपना भी चकनाचूर हो जाएगा. ऐसे में निगम को भले ही ठेकेदारों से आमदनी हो जाए पर सरकार को करोड़ों रुपये के जीएसटी की चपत जरूर लगेगी. निगम का रेवेन्यू बढ़ाने का यह सपना उसी वक्त साकार हो सकता है जब शहर के सभी बाजारों में प्री पेड पार्किंग बनाई जाए और ग्राहक किसी भी बाजार में जाए तो उसे पार्किंग फीस अदा करनी ही पड़े. जब तक यह व्यवस्था सभी बाजारों में लागू नहीं होती तब तक निगम को किसी भी जगह प्री पेड पार्किंग नहीं बनानी चाहिए. ऐसे में उन व्यापारियों का कारोबार पूरी तरह से चौपट हो जाएगा जिनकी दुकानों के सामने प्री पेड पार्किंग बनाई गई है. क्योंकि पार्किंग शुल्क बचाने के चक्कर में ग्राहक वैकल्पिक बाजारों का रुख करेगा.
बहरहाल, नगर निगम की यह नीति पूरी तरह से व्यापारी और आमजन विरोधी है क्योंकि एक तरफ जहां व्यापारियों का कारोबार चौपट होगा वहीं जनता की जेब पर भी दोहरी मार पड़ेगी. क्योंकि आम आदमी जितने भी बाजारों में खरीदारी करने जाएगा उसे उतनी ही जगह वाहन पार्क करने के लिए शुल्क देना पड़ेगा.
हालांकि, मेयर उमेश गौतम इस मुद्दे पर नरम नजर आ रहे हैं. उनका कहना है कि व्यापारियों के हितों की अनदेखी नहीं की जाएगी. एक-दो दिन में समस्या का समाधान कर लिया जाएगा.अगर यह जनविरोधी निर्णय वापस नहीं लिया गया तो आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.

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