नीरज सिसौदिया, बरेली
वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों का विपक्ष के साथ ही सत्ता पक्ष को भी बेसब्री से इंतजार है. अबकी बार का सियासी घमासान बरेली में बेहद दिलचस्प होने जा रहा है. खास तौर पर बरेली कैंट विधानसभा सीट पर टिकट बंटवारे को लेकर भारतीय जनता पार्टी में बड़ा सियासी उलटफेर देखने को मिल सकता है. इसकी मुख्य वजह यह है कि अबकी बार भाजपा उक्त सीट से नए चेहरा उतारने की तैयारी कर रही है. कैंट विधानसभा सीट से लगातार जीत दर्ज कराते आ रहे पूर्व मंत्री और विधायक राजेश अग्रवाल को भी टिकट मिलने की उम्मीद नजर नहीं आ रही.
दरअसल, संगठन में मजबूत पकड़ रखने वाले राजेश अग्रवाल पर उम्र हावी होती जा रही है. बताया जाता है कि वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव तक वह 75+ की कैटेगरी में शामिल हो चुके होंगे. अभिलेखों के अनुसार राजेश अग्रवाल का जन्म वर्ष 1943 में बताया जाता है. इस लिहाज से देखा जाए तो वर्ष 2022 तक उनकी उम्र 79 के आसपास होगी. ऐसे में वह वर्तमान में ही 75+ के क्लब में शामिल हो चुके हैं. योगी सरकार में मंत्री रहे राजेश अग्रवाल को कुछ समय पूर्व ही मंत्री पद से हटाकर राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष जैसी अहम जिम्मेदारी संगठन ने सौंपी है. इसके पीछे भी यही वजह मानी जा रही है कि अब राजेश अग्रवाल दोबारा विधानसभा की सियासी जंग का हिस्सा प्रत्यक्ष तौर पर नहीं बन सकेंगे.
दरअसल, लोकसभा चुनाव से पूर्व भाजपा ने लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गज नेताओं की उम्र का हवाला देते हुए उन्हें मार्गदर्शक मंडल का हिस्सा बना दिया था. ऐसे में ये दोनों नेता 75+ की कैटेगरी में होने के कारण चुनाव नहीं लड़ सके थे. वर्तमान में यही नियम विधानसभा चुनाव पर भी लागू होता है. अगर भाजपा इस नियम पर विधानसभा चुनाव में सख्ती से अमल नहीं करती है तो उसे बड़ी फजीहत झेलनी पड़ेगी और उसका चेहरा बेनकाब हो जाएगा. वहीं, अगर भाजपा इस पर अमल करती है तो राजेश अग्रवाल चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. सियासी जानकार बताते हैं कि इस बार राजेश अग्रवाल की तरह कई भाजपा नेता 75+ के क्लब में शामिल हो चुके हैं. इनमें कुछ सिटिंग विधायक भी हैं. ऐसे में भाजपा को नए चेहरों को आगे लाने का यह सुनहरा मौका भी है. खास तौर पर विधानसभा चुनाव में अगर भाजपा नए चेहरों पर दांव खेलती है तो वह अपनी साख को और मजबूत कर सकती है लेकिन उसे यह भी ध्यान रखना होगा कि ये नए चेहरे पुराने चेहरों के परिवार से न हों. चूंकि अगर पार्टी इन नेताओं के बच्चों को मैदान में उतारती है जो उसके हाथ से यूपी विधानसभा का वह सबसे बड़ा सियासी हथियार निकल जाएगा जिसके दम पर वह कांग्रेस और सपा को परिवार की पार्टी करार देती है. वंशवाद को बढ़ावा न देने का दंभ भरने वाली भाजपा अगर खुद ही नेताओं के बच्चों को मैदान में उतारती है तो उसकी फजीहत तय है. ऐसे में राजेश अग्रवाल के बेटे की किस्मत का सियासी सितारा भी फिलहाल चमकता नजर नहीं आ रहा है.
कुछ ऐसा ही हाल शहर विधायक अरुण कुमार का भी हो सकता है. हालांकि अरुण कुमार अभी 75+ के क्लब में शामिल नहीं हुए हैं. हाल ही में उन्होंने अपना 73वां जन्मदिन भी मनाया है और 2022 में वह अपना 75वां जन्मदिन मनाएंगे. ऐसे में माना जा रहा है कि अरुण कुमार का पत्ता भी साफ होने जा रहा है.
नियमानुसार तो विधानसभा चुनाव तक अरुण कुमार 75+ की श्रेणी में तो शामिल नहीं होंगे पर 75वां जन्मदिन जरूर मनाएंगे. ऐसे में पार्टी उन्हें एक और मौका देना चाहेगी, इस पर संशय है. बात अगर उनके सियासी उत्तराधिकारी की करें तो उनके सुपुत्र डॉक्टर हैं और राजनीति से ज्यादातर दूरी ही बनाकर रखते हैं. सबसे दिलचस्प बात यह है कि शहर विधानसभा सीट पर कई दमदार नेता मौजूद हैं जो लगातार पार्षद बनते आ रहे हैं और अब विधानसभा की सीढ़ियां चढ़ना चाहते हैं. ये लोग सक्रिय भी हैं और ईनाम के हकदार भी. सतीश चंद्र सक्सेना मम्मा कातिब जैसे कुछ नेता पहले से ही शहर विधानसभा सीट से टिकट की दौड़ में सबसे आगे नज़र आ रहे हैं. वहीं कैंट सीट पर तो चुनाव लड़ चुके उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार मंडल के प्रांतीय महामंत्री राजेंद्र गुप्ता भी चुनाव लड़ने की उम्मीद पाले बैठे हैं. इनकी दावेदारी को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. ऐसे में तय है कि आगामी विधानसभा चुनाव में कैंट और शहर दोनों विधानसभा सीटों पर नए चेहरे ही सियासी जंग लड़ते नजर आएंगे. ये चेहरे किसके होंगे यह तो आने वाला वक्त ही तय करेगा.