नीरज सिसौदिया, बरेली
रजऊपरसपुर में सॉलिड वेस्ट प्लांट की नगर निगम की भूमि पर इनवर्टिस यूनिवर्सिटी द्वारा अवैध कब्जे का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. विवादित जमीन की पैमाइश में लाखों रुपए का खेल किया गया था. सूत्र बताते हैं कि पैमाइश के लिए तत्कालीन फरीदपुर तहसीलदार को दबाव में लेकर विगत 29 जून 2019 को एक पैमाइश कराई गई थी. यह पैमाइश बिना नगर आयुक्त और मंडलायुक्त रणवीर प्रसाद के संज्ञान में डाले की गई थी. यानि जिस विभाग की जमीन के लिए पैमाइश की गई उसी के अधिकारी को बताने की जरूरत महसूस नहीं की गई और चार अधिकारियों के हस्ताक्षर कर रिपोर्ट भेज दी गई. दिलचस्प बात यह रही कि इस रिपोर्ट में कहा गया कि नगर निगम की जमीन पर कोई कब्जा नहीं है बल्कि इनवर्टिस यूनिवर्सिटी की जमीन पर नगर निगम ने कब्जा किया हुआ है. जब मंडलायुक्त और नगर आयुक्त को इसका पता चला तो अगले ही दिन यानि तीस जून 2006 को दोबारा से पैमाइश कराई गई. इसमें उसी तहलीलदार ने अपनी रिपोर्ट मेें कहा कि नगर निगम की भूमि कागजातों में उल्लिखित भूमि से कम पाई गई है. और इस पर इनवर्टिस यूनिवर्सिटी की बाउंड्रीवॉल प्रतीत होती है. हैरानी की बात है कि आला अधिकारियों के निर्देश पर की गई जांच की रिपोर्ट में भी तहसीलदार को बाउंड्रीवॉल सिर्फ प्रतीत ही हुई, वह सुनिश्चित नहीं कर सके कि वाकई बाउंड्रीवॉल बनी है या नहीं. ऐसे में स्पष्ट है कि तहसीलदार की दोनों रिपोर्ट गलत हैं और किसी लालच या दबाव में बनाई गई हैं. इन्हीं झूठी रिपोर्ट्स को लेकर मेयर कल अपर मुख्य सचिव सूचना नवनीत सहगल से भी मिले थे और मीडिया को भी यही दस्तावेज उपलब्ध कराए हैं. पूर्व पार्षद राजेश तिवारी इससे संबंधित एक अन्य मामले को न्यायालय ले जा चुके हैं. अब सवाल यह उठता है जिस तहसीलदार की रिपोर्ट 24 घंटे में बदल जाए और रिपोर्ट में भी घालमेल हुआ हो तो उसे ऑथेंटिक कैसे माना जा सकता है . सूूत्र बताते हैं कि अगर सही तरीके से जांच कराई जाए तो जितनी जमीन कब्जाने की बात नगर आयुक्त ने अपनी रिपोर्ट में कही है उससे भी डेढ़ गुना ज्यादा जमीन पर इनवर्टिस यूनिवर्सिटी का अवैध कब्जा सामने आ जाएगा. वहीं मेयर उमेश गौतम ने इसे एक अधिकारी की साजिश करार दिया है. वह कहते हैं कि विपक्ष के साथ मिलकर अधिकारी उनकी छवि धूमिल करने का प्रयास कर रहा है.
सवालों के घेरे में तहसीलदार, फंस सकते हैं कानूनी शिकंजे में
नगर निगम की जमीन पर अवैध कब्जे की आधी अधूरी और गलत रिपोर्ट देने के मामले में मेयर के साथ ही तत्कालीन फरीदपुर तहसीलदार पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं. तहसीलदार ने पहली बार झूठी रिपोर्ट बना डाली और दूसरी बार आधी अधूरी रिपोर्ट बनाकर मामले को पेचीदा बना दिया. तहसीलदार ने यह काम भूलवश किया या रिश्वत अथवा किसी दबाव के चलते यह जांच का विषय है. तहसीलदार को मामले में निलंबित कर सख्ती से पूछताछ की जानी चाहिए ताकि सारी सच्चाई सामने आ सके.
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