यूपी

वाह रे कमिश्नर, पीसीएस अधिकारी से करा दी आईएएस अफसर नगर आयुक्त के घोटालों की जांच

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नीरज सिसौदिया, बरेली
भ्रष्टााचार को दबाने और घोटालेबाजों को संरक्षण देने में अफसरशाही किस कदर मनमानी पर उतारू है इसका ताजा उदाहरण बरेली के मंडलायुक्त आर रमेश कुमार की कार्यशैली के रूप में देखा जा सकता है। घोटालों के प्रति मंडलायुक्त की सजगता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक आईएएस अधिकारी की भ्रष्टाघचार में संलिप्तता के मामले की जांच एक पीसीएस अधिकारी से करवाकर शासन को रिपोर्ट भी भेज दी है।
दरअसल, डा. अनुपमा राघव ने मिशन मार्केट की दुकानों के मामले में नगर आयुक्त अभिषेक आनंद पर बिल्डिरों से करोड़ों रुपये वसूलकर उन्हें फायदा पहुंचाने के लिए उन्हें आवंटित दुकानें गिराने के नोटिस भेजने सहित कई गंभीर आरोप लगाए थे। इस पर नियुक्ति विभाग के विशेष सचिव की ओर से मंडलायुक्त बरेली को जांच कर आख्या भेजने के निर्देश दिए गए थे। मंडलायुक्त ने विगत आठ मार्च को अपर मंडलायुक्त अरुण कुमार यादव को जांच मार्क कर दी जो कि पीसीएस अधिकारी हैं जबकि नगर आयुक्त अभिषेक आनंद एक आईएएस अफसर हैं। अरुण कुमार द्वारा प्रकरण को नगर निगम भेजा गया और नगर निगम से प्राप्त आख्या के क्रम में शिकायतकर्ता डा. अनुपमा राघव का पक्ष ही नहीं सुना गया। उन्हें सुनवाई का अवसर देना अरुण कुमार यादव ने जरूरी नहीं समझा। अरुण कुमार की इस कार्यशैली पर सपा नेता महेश पांडेय ने मंडलायुक्त और अपर मंडलायुक्त दोनों की कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि प्रकरण में लीपापोती की नीयत से नगर आयुक्त को बचाने के लिए साजिश की गई है जबकि प्रार्थना पत्र में स्पवष्ट रूप से उल्लिखित है कि नगर आयुक्त द्वारा यूपी रेंट कंट्रोल एक्ट, लिमिटेशन एक्ट ऑफ इंडिया एवं नगर निगम अधिनियम में दिए गए प्रावधानों का उल्लंघन कर बिल्डरों अथवा भूमाफिया को फायदा पहुंचाने की कुचेष्टा की गई है। साथ ही माननीय उच्च‍ न्यायालय के आदेशों की भी धज्जियां उड़ाई गई हैं। माननीय उच्च न्या‍यालय द्वारा प्रथम दृष्ट्या अनुपमा राघव को स्थगन आदेश देने के साथ साथ नगर आयुक्त को इनकी किरायेदारी बढ़ाने पर विचार करने के लिए भी आदेशित किया गया था। आरोप है कि इसके बावजूद अरुण कुमार ने जांच कर प्राप्त आख्या को शिकायतकर्ता का पक्ष लिए बिना ही भेज दिया गया जो सरासर गलत है।
बता दें कि नियमानुसार एक आईएएस अधिकारी की जांच कोई पीसीएस अफसर कर ही नहीं सकता है। यह जांच आयुक्त को स्वयं करनी चाहिए थी। समय समय पर इसके आदेश भी शासन की ओर से जारी किए जाते रहे हैं। इसके बावजूद जांच के दौरान इन बिंदुओं का ध्यान नहीं रखा गया। जांच के दौरान पूरी कार्रवाई अवैधानिक रूप से और विधि द्वारा वर्णित प्रक्रिया के विपरीत की गई है।ऐसा करके मंडलायुक्त ने नियमों और कानूनों का खुला मजाक बनाकर रख दिया है। अगर इसी तरह से जांच में गड़बड़झाला होता रहा तो भ्रष्ट अधिकारियों के हौसले और बढ़ते जाएंगे। अब सवाल यह भी उठता है कि अगर मंडलायुक्त शासन के दबाव में खुद मामले की जांच करने को तैयार हो भी जाते हैं तो उनके द्वारा की जाने वाली जांच कितनी निष्पक्ष होगी यह खुद ब खुद समझा जा सकता है। चूंकि पहली ही जांच में गड़बड़ी कर मंडलायुक्त ने अपनी मंशा साफ जाहिर कर दी है। इसलिए ऐसे लापरवाह अधिकारी को निश्चित रूप से मंडलायुक्त जैसे जिम्मेदार पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। इस संबंध में जब मंडलायुक्त और अपर मंडलायुक्त से संंपर्क करने का प्रयास किया गया तो उनसे संपर्क नहीं हो पाया. अगर वह चाहें तो मोबाइल नंबर 7528022520 पर फोन कर अपना पक्ष दे सकते हैं हम उसे भी प्रमुखता से प्रकाशित करेंगे.

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