दिल्ली

इनसे सीखें : 41 दिन से रोजाना सैकड़ों जरूरतमंदों का पेट भर रहे नईम मलिक, पढ़ें समर्पण की कहानी…

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नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
कोरोना काल में जहां अपने भी अपनों से दूरी बना रहे हैं, कहीं ऑक्सीजन और दवाओं की कालाबाजारी हो रही है तो कहीं अस्पतालों में लूट खसोट की खबरें आ रही हैं, ऐसे में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मानवता की मिसाल पेश कर रहे हैं. उनके दर से कोई भी जरूरतमंद खाली हाथ नहीं लौटता. वह न तो अंबानी हैं और न ही अडाणी. वह अरबों की संपत्ति के मालिक भी नहीं हैं, फिर भी रोजाना सैकड़ों जरूरतमंदों को दो वक्त की रोटी दे रहे हैं. यह उनकी सेवा का जज्बा ही है जो पिछले 41दिनों से दिल्ली के जरूरतमंद लोगों का पेट भर रहा है. इस शख्स का नाम नईम मलिक है. वह न तो विधायक हैं, न सांसद और न ही मंत्री या मेयर अथवा पार्षद. फिर भी अपने दम पर लोगों से कुछ मदद लेकर हर रोज जरूरतमंद लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था करते हैं.
नईम मलिक मटियामहल विधानसभा क्षेत्र के रहने वाले हैं. वह आम आदमी पार्टी ट्रेड विंग के पदाधिकारी भी हैं. लगभग डेढ़ माह पहले जब राजधानी में कोरोना की दूसरी लहर रफ्तार पकड़ने लगी थी तो सरकार की ओर से लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई. प्रतिष्ठान बंद हुए और कामकाज ठप हुए तो उनमें काम कर गुजारा करने वाले सड़क पर आ गए. हालात इतने बदतर हो चुके थे कि रोज मांगकर पेट भरने वाले बदनसीब भी दाने-दाने को मोहताज हो गए. इन बेबसों की हालत जब नईम मलिक से देखी नहीं गई तो उन्होंने इनकी मदद करने की ठानी. पहले सौ-डेढ़ सौ लोगों को खाना बांटा. फिर संख्या पांच सौ हुई और वर्तमान में यह आंकड़ा एक हजार के पार जा पहुंचा है. इस सेवा के कार्य में नईम मलिक को अपने साथियों और पार्टी विधायकों एवं अन्य जनप्रतिनिधियों का भी पूरा सहयोग मिल रहा है. एक दिन पूर्व अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन जाकिर खान की सरपरस्ती में भोजन वितरण का कार्य किया गया.


नईम मलिक बताते हैं, ‘लॉकडाउन में लोगों का रोजगार छिन गया. जो सक्षम थे उनका गुजारा तो जैसे-तैसे चल रहा है पर जो रोज कमाने खाने वाले थे वे दाने-दाने को मोहताज हो गए. ऐसे लोगों की मदद के उद्देश्य से ही हमने भोजन वितरण का कार्य शुरू किया है. इसके तहत रोजाना आठ सौ से हजार लोगों को भोजन वितरित किया जाता है. साथ ही लोगों को ऑक्सीजन, दवाएं, राशन आदि जरूरत के सामान भी मुहैया कराए जाते हैं. पिछले 41 दिन से सेवा का यह कार्य किया जा रहा है. सभी लोगों का इसमें पूरा सहयोग मिल रहा है. स्थानीय विधायक से लेकर मंत्री तक ने हमारे कार्य को सराहा है. कोशिश है कि जब तक कोरोना संकट पूरी तरह से खत्म नहीं होता तब तक जरूरतमंदों को रोटी का संकट न झेलना पड़े.’


नईम मलिक वैसे तो मुस्लिम हैं लेकिन बात जब सेवा की आती है तो वह धर्म को किसी कोने में रख देते हैं. वह भोजन बांटते समय हिन्दू और मुस्लिम नहीं देखते. वह कहते हैं, ‘हिन्दू हो या मुस्लिम, भूख सभी को लगती है. हिन्दू का पेट भी उसी रोटी से भरता है जिस रोटी से मुस्लिम का पेट भरता है. जब बनाने वाले ने हममें कोई भेद नहीं किया तो फिर हम कौन होते हैं उसके बंदों में भेद करने वाले. हमारा सिर्फ एक ही धर्म है और वह है समाजसेवा. जो समाजसेवा धर्म देखकर की जाए वह समाजसेवा नहीं बल्कि दिखावा है. अल्लाह हमें इसकी इजाजत नहीं देता.’


बहरहाल, नईम मलिक का सेवा का यह जज्बा दुनिया के लिए एक मिसाल है. अगर समाज का हर संपन्न और सक्षम नागरिक नईम मलिक की तरह सोचने लगे तो निश्चित तौर पर हिन्दुस्तान में न तो कभी हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर दंगे होंगे और न कोई भी इंसान भूखा सोने को मजबूर होगा.

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