विचार

स्मृति शेष: बहुमुखी प्रतिभा के धनी महामानव श्रीकांत जिचकर

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देश में यों तो बहुत बड़े-बड़े विद्वान और शिक्षाशास्त्री हुए हैं। लेकिन श्रीकान्त जिचकर जैसा योग्य, प्रतिभाशाली मिलना बहुत मुश्किल है। जिचकर का नाम भारत के ‘सबसे योग्य व्यक्ति’ के रूप में लिम्का और गिनीज़ बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज है। आज भी वह सबसे शिक्षित भारतीय कहलाए जाते हैं. उनके पास 2 या 4 नहीं बल्कि 20 बड़ी डिग्र‌ियां थीं। 1954 को नागपुर में जन्में डॉ. श्रीकांत जिचकर ने कई विषयों में रिसर्च की।जिचकर ने कृषि के साथ ही राजनीति, थिएटर, जर्नलिज्म में भी रिसर्च की।

उन्होंने सबसे पहले एमबीबीएस की डिग्री ली. इसके बाद उन्होंने एमएस की पढ़ाई को बीच में ही छोड़ दिया. इसके बाद वो कानून की पढ़ाई की तरफ मुड़ गए। डॉ. श्रीकांत जिचकर ने एलएलबी की पढ़ाई के बाद ।एलएलएम (अंतर्राष्ट्रीय कानून) की पढ़ाई करने लगे. इसके बाद उन्होंने एमबीए की डिग्री ली।
1973 से 1990 के बीच श्रीकांत ने 42 यूनिवर्सिटीज के एग्‍जाम दिए, जिनमें से 20 में वे पास हुए. यही नहीं, ज्‍यादातर में वे फर्स्‍ट डिवीजन से पास हुए और उन्‍हें कई गोल्‍ड मेडल भी मिले। जिचकर ने आईपीएस का एग्‍जाम भी पास किया।लेकिन जल्‍द ही त्‍यागपत्र दे दिया. उन्‍होंने आईएएस का एग्‍जाम भी पास किया।चार माह बाद उन्‍होंने त्‍यागपत्र दिया।यह कितनी अजूबी बात है देश की सर्वोच्च परीक्षा पास करके फिर उसे छोड़ देना।यह अद्भुत, अकल्पनीय, अविश्वसनीय महामानव डॉक्टर भी रहा, बैरिस्टर भी रहा,
IPS अधिकारी ,IAS अधिकारी , विधायक, मंत्री, सांसद भी रहा,चित्रकार, फोटोग्राफर मोटिवेशनल स्पीकर भी रहा, पत्रकार भी रहा ,कुलपति भी रहा , संस्कृत, गणित का विद्वान रहा, इतिहासकार ,समाजशास्री, अर्थशास्त्रीका भी रहा हो,जिसने काव्य रचना भी की हो ! इतना बड़ा भंडार एक व्यक्ति में कितने आश्चर्य की बात है।
लगता है हम एक व्यक्ति की बात नहीं कर रहे किसी संस्थान की बात कर रहे। भारतवर्ष में ऐसा एक ही व्यक्ति हुआ जिसने मात्र 49 वर्ष की अल्पायु में यह करिश्मा कर दिखाया। अपने देश में कुछ ही प्रतिभायें हुईं हैं जिन्होंने कम समय में इस धरती पर रहकर वह कर दिखाया जो लोग जीवन भर कड़ी मेहनत करके नहीं कर पाते हैं। उनमें से ऐसी ही प्रतिभा थे श्रीकांत।
श्रीकान्त 1978 बैच के आई.पी.एस. व 1980 बैच के आईएएस अधिकारी भी रहे. 1981 में महाराष्ट्र में विधायक बने।1992 से लेकर 1998 तक राज्यसभा सांसद रहे। 1999 में उनके कैंसर की बीमारी का डायग्नोज अंतिम (लास्ट) स्टेज में हुआ, डाक्टर ने कहा कि उनके पास जीवन का मात्र एक महीना शेष बचा है !
वो अस्पताल में मृत्यु-शैया पर पड़े हुए थे, लेकिन आध्यात्मिक विचारों के धनी श्रीकांत जिचकर ने जाने की आस नहीं छोड़ी। बताते हैं कि उसी दौरान कोई सन्यासी अस्पताल में उनसे मिलने आया, और उसने श्रीकांत को ढांढस बंधाई; उनको संस्कृत भाषा, शास्त्रों का अध्ययन करने के लिए प्रेरित करते हुए कहा “तुम अभी नहीं मर सकते…अभी तुम्हें बहुत काम करने हैं..!” और चमत्कारिक तौर से श्रीकांत जिचकर पूर्ण रुप से स्वस्थ हो गए।
स्वस्थ होते ही सर्व प्रथम श्रीकांत ने राजनीति से सन्यास लेकर संस्कृत भाषा में डी.लिट. की उपाधि अर्जित की!उनका कहना था”संस्कृत भाषा के अध्ययन के बाद मेरा जीवन ही परिवर्तित हो गया है! मेरी ज्ञान पिपासा अब पूर्ण हो गई है!”श्रीकांत ने पुणे में संदीपनी स्कूल की स्थापना की।
नागपुर में कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना की, और जिसके वे प्रथम कुलपति भी बने!उनका पुस्तकालय किसी व्यक्ति का निजी सबसे बड़ा पुस्तकालय था, जिसमें 52000 के लगभग पुस्तकें संग्रह की हुई थी।
उनका एक ही सपना बन गया था, भारत के प्रत्येक घर में कम से कम एक संस्कृत भाषा का विद्वान हो तथा कोई भी परिवार मधुमेह जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का शिकार न हो!
ऐसी असाधारण प्रतिभा के लोग आयु के मामले में निर्धन ही देखे गए हैं ।अति मेधावी, अति प्रतिभाशाली व्यक्तियों का जीवन ज्यादा लंबा नहीं होता है, ये वैश्विक सच्चाई है।
2 जून 2004 को नागपुर से 60 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र में ही एक स्थान पर एक भयंकर सड़क हादसे में श्रीकांत जिचकर का निधन हो गया।
विभिन्न व्यक्तियों की जयंती को उत्सव के रूप में मनाया जाता है लेकिन विडम्बना है कि वास्तव में देश के लिये काम करने वाले गुणी व्यक्ति को कोई जानता तक नहीं है, जिसके जीवन से कितने ही युवाओं को प्रेरणा मिल सकती है। ऐसे महामानव को शत-शत नमन।
प्रस्तुति – सुरेन्द्र बीनू सिन्हा, (वरिष्ठ पत्रकार)

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