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पर्यावरण संरक्षण में भारतीय रेल का अप्रतिम योगदान

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इस भागती दौड़ती जिंदगी में व्यस्त लोग अपनी आधुनिक जीवन शैली मे मशगूल थे तभी अचानक एक वैश्विक महामारी अपने पाँव पसारते हुए भारत मे भी दस्तक दी और सब कुछ थम सा गया। वातानुकूलित कमरों मे निश्चिंत बैठे लोगों के माथे पर पसीने की बुँदे टपकने लगी, एयर कन्डिशनर्स जो आक्सिजन का पर्याय माने जाने लगा था उसे छोड़ लोग शुद्ध हवा की तलाश करने लगे, शायद अब पर्यावरण संरक्षण का महत्व भी समझ आने लगा था। परंतु इससे पूर्व भी जब प्रदूषण का जिक्र होता था हमारे सामने कुछ चित्र उभरने लगते, जैसे की गाड़ियों से निकलता हुआ धुँआ चाहे वो मोटरसाइकिल, कार, ट्रक से निकलता हुआ धुँआ हो या फिर ट्रेन के डीजल इंजन से निकलता हुआ। बेहतर एवं तेज कम्यूनिकेशन/ यातायात व्यवस्था की बिना किसी भी सभ्यता का विकास संभव नहीं है ऐसे मे जो यातायात के साधन देश की तरक्की के लिए उपयोग किए जा रहे हैं वो पर्यावरण मित्रवत हों इसका ध्यान भी रखना चाहिए। इस दिशा मे एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए रेल मंत्रालय द्वारा भारतीय रेल पर स्थित सभी बड़ी लाइनों को विद्युतीकृत करने का निर्णय लिया गया और अब मिशन मोड मे कार्य करते हुए ‘भारतीय रेल’ दुनिया की सबसे बड़ी हरित रेल बनने की ओर अग्रसर है तथा इसको सन 2030 तक ‘ज़ीरो कार्बन उत्सर्जक’ बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। भारतीय रेल के इस महत्वाकांक्षी कदम को सफल बनाने के लिए कभी ‘छोटी लाइन’ के नाम से प्रसिद्द पूर्वोत्तर रेलवे पर वर्ष 2014 -15 के पूर्व मात्र 24 रूट किमी रेल खंड ही विद्युतीकृत हो पाया था वहाँ वर्तमान मे 2287 रूट किमी रेल खंड को विद्युतीकृत कर लिया गया है जोकि पूर्वोत्तर रेलवे पर अवस्थित कुल बड़ी लाइन (रूट किमी) का 73 प्रतिशत है। विगत दो वित्त वर्षों 2019-20 एवं 2020-21 मे पूर्वोत्तर रेलवे विधयुतिकरण कार्य मे सम्पूर्ण भारतीय रेल पर द्वितीय स्थान पर रही है जिसके फलस्वरूप सभी प्रमुख रेल मार्गों पर इलेक्ट्रिक ट्रेनें दौड़ रही हैं इससे जहां एक ओर डीजल इंजन हटने से कार्बन उत्सर्जन घटा है तथा पर्यावरण प्रदूषण कम हुआ है वहीं दूसरी ओर डीजल पर निर्भरता कम होने से रेल राजस्व की बचत हुई है। रेलवे बोर्ड द्वारा भारतीय रेल की सभी बड़ी लाइनों को विद्युतीकृत करने का लक्ष्य दिसम्बर 2023 रखा गया है जिसे पूर्वोत्तर रेलवे समय से प्राप्त कर लेगा। इन कार्यों को तेजी से पूर्ण करने के लिए बड़े साइज़ के इंजीनियरिंग प्रोक्योरमेंट एवं कन्स्ट्रक्शन (इपीसी) कान्ट्रैक्ट किए गए, बेहतर मॉनिट्रिंग की व्यवस्था बनाई गई तथा इस दौरान फंड की उपलब्धता सुनिश्चित की गई । विद्युतीकरण से कई लाभ हुए हैं जैसे की इंपोर्टेड डीजल पर निर्भरता कम होने से विदेशी मुद्रा की बचत, कार्बन उत्सर्जन मे कमी, ट्रेन परिचालन की लागत मे कमी, डीजल ट्रैक्शन से इलेक्ट्रिक ट्रैक्शन मे बदलने से होने वाले देरी समाप्त होने से लाइन क्षमता मे बढ़ोत्तरी तथा इलेक्ट्रिक इंजन की परिचालनिक एवं अनुरक्षण लागत कम होने से भी रेल राजस्व की बचत हो रही है। पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिए हर स्तर पर प्रयास किया जा रहा है जिनमे से एक है ‘हेड ऑन जेनरेशन’ (एच.ओ.जी.) व्यवस्था जिसके अंतर्गत कोचों मे बिजली की सप्लाइ, ओवरहेड इक्विप्मन्ट से इलेक्ट्रिक लोकमोटिव के माध्यम से की जा रही है जिसके फलस्वरूप डीजल से चलने वाले पावर कार उपयोगिता समाप्त हो गई है। पूर्वोत्तर रेलवे से कुल 34 ट्रेनों को एच. ओ. जी. युक्त कर चलाया जा रहा है जिससे गत वित्त वर्ष 2020-21 मे लगभग रु 21 करोड़ के ईधन की बचत हुई है तथा कार्बन उत्सर्जन मे भी कमी आई है।
‘स्वच्छता’ पर्यावरण संरक्षण का एक प्रमुख अंग है जिसे ध्यान मे रखते हुए ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के अंतर्गत भारतीय रेल द्वारा लगभग सभी ट्रेनों मे बायो-टॉयलेट लगाया गया जिससे अब कोचों से गंदगी (मल-मूत्र) पटरियों पर नहीं गिरता है। इन प्रयासों से रेल की पटरियों पर प्रतिदिन गिरने वाले 2 लाख 74 हजार लीटर गंदगी को रोका जा सका जिससे स्वच्छता मे उल्लेखनीय सुधार होने के साथ इस गंदगी से पटरियों एवं उनकी फिटिंग का क्षरण भी रोका जा सका है जिससे सम्पूर्ण भारतीय रेल पर लगभग रु 400 करोड़ की बचत प्रतिवर्ष हो रही है। पूर्वोत्तर रेलवे पर 3355 कोचों मे बायो-टॉयलेट लगाया गया है, शेष बचे 14 डबल डेकर कोच मे से 5 कोचों मे बायो-टॉयलेट लगा दिया गया है बाकी कोचों मे भी कार्य प्रगति पर है। स्वच्छता कार्यक्रम के अंतर्गत पूर्वोत्तर रेलवे द्वारा वर्ष 2020-21 मे रिकार्ड स्क्रैप निस्तारण कर सम्पूर्ण भारतीय रेल पर प्रथम स्थान पर रहा।
पर्यावरण संरक्षण के अंतर्गत अन्य महत्वपूर्ण विषयों जैसे की ऊर्जा संरक्षण एवं जल संरक्षण के क्षेत्र मे भी रेलवे द्वारा विशेष कार्य किया जा रहा है, पूर्वोत्तर रेलवे के कार्यालय भवनों एवं स्टेशनों पर सौर ऊर्जा के पैनल लगाए गए हैं जिससे लगभग 25 लाख यूनिट सौर ऊर्जा का उत्पादन किया गया जिसके फलस्वरूप लगभग रु 1 करोड़ की बचत हुई है। इसी प्रकार जल संरक्षण की लिए ऐसे सभी भवन जहां छत का क्षेत्रफल 200 वर्ग मीटर से ज्यादा है वहाँ ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम’ लगाया जा रहा है, रेलवे के ज्यादातर भवनों मे यह व्यवस्था क्रियाशील है।
पूर्वोत्तर रेलवे पर हर वर्ष वृक्षरोपण का कार्यक्रम योजनाबद्ध तरीके से किया जाता है, वर्ष 2020-21 मे कुल 9 लाख पौधे लगाए गए हैं इस वर्ष भी 8 लाख पौधों को लगाए जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है जिसका शुभारंभ 5 जून यानि कि पर्यावरण दिवस के अवसर से किया जाएगा। रेलवे पर वृक्षारोपण कोई कार्य नहीं अपितु जीवन शैली है, जब भी कोई भी निरीक्षण हो अथवा कोई भी कार्यक्रम हो उसमे वृक्षारोपण एक अभिन्न हिस्सा की तरह सम्मिलित होता है। इसकी बानगी रेलवे के कार्यालयों एवं कॉलोनियों से साफ परिलक्षित होती है, रेलवे के सरकारी आवासों मे रहने वाले रेलकर्मी स्वयं अपने आवासों मे पौधरोपण कर उसको पोषित करते हैं। पौधों के बेहतर रख रखाव के लिए नवप्रयोग के तौर पर पौधे के साथ उसे लगाने वाले अधिकारी/कर्मचारी का नेम प्लेट भी लगा दिया जाता है। पूर्वोत्तर रेलवे के तीनों मंडलों मे रेलपथ के किनारे खाली पड़ी भूमि पर तीन-तीन ग्रीन नर्सरियाँ भी विकसित की गई हैं।
वर्तमान परिवेश में भारतीय रेल सबसे संरक्षित, सुरक्षित, गतिमान, हरित एवं पर्यावरण मित्रवत यातायात साधन बन कर उभरी है।

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