नीरज सिसौदिया, बरेली
कोरोना काल में दिन-रात एक कर जनता की सेवा में जुटने वाले वार्ड 23 के भाजपा पार्षद और बरेली विकास प्राधिकरण के सदस्य सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा को उनकी अविस्मरणीय सेवा के लिए कोरोना वॉरियर अवार्ड से नवाजा गया है. यह पुरस्कार उन्हें श्री श्री 1008 निरंजन पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि जी महाराज और रजनीश सक्सेना की ओर से दिया गया है. उन्हें सम्मान स्वरूप कैलाशानंद गिरि जी महाराज द्वारा हस्ताक्षरित प्रमाण पत्र भी दिया गया है.
बता दें कि कोरोना महामारी ने हजारों जिंदगियां निगल लीं. मौत के खौफ ने लोगों को घरों में कैद रहने पर मजबूर कर दिया. मौत की महामारी ने मंत्री और विधायकों को भी निगल लिया. कई पार्षद और समाजसेवी भी इसकी चपेट में आने के बाद घरों पर बैठ गए. इस सबके बावजूद वार्ड 23 के पार्षद और बरेली विकास प्राधिकरण के सदस्य सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा लगभग एक साल से लगातार कोरोना जांच कैंप लगा रहे हैं. साथ ही सैनेटाइजेशन से लेकर जरूरतमंदों की मदद तक का काम कर रहे हैं. मम्मा समाजसेवा में उल्लेखनीय योगदान के लिए जाने जाते हैं. बात जब जनहित की आती है तो वह अपनी पार्टी के नेताओं का विरोध करने से भी पीछे नहीं हटते. पिछले साल जब कोरोना महामारी ने कहर बरपाना शुरू किया तो मम्मा ने अपने मित्र एवं वार्ड 50 के सभासद आरेंद्र अरोड़ा कुक्की और समाजसेवी संजय डंग के साथ मिलकर अप्रैल माह में जनकपुरी से कैंप की शुरुआत की. कभी सुबह आठ बजे से तो कभी नौ बजे से कैंप शुरू हो जाता था. सर्दी हो, गर्मी हो या बरसात, कैंप का सिलसिला चलता रहा. बीच में लगभग एक माह तक कुछ कारणों से कैंप का आयोजन नहीं किया जा सका था पर उसके बाद से लगातार कैंप लगाया जा रहा है.
कैंप के आयोजन स्थल को लेकर कई बार उन्हें आपत्तियों का सामना भी करना पड़ा.

जनकपुरी में कुछ समय कैंप लगाने के बाद हमने महावीर होटल के सामने कैंप लगाया. चूंकि कोरोना का प्रसार रोकने के लिए ट्रेसिंग सबसे जरूरी है जो बिना कैंप के संभव नहीं है. महावीर होटल के सामने कुछ समय तक तो सब ठीक रहा. लोग रोजाना जांच कराने भी आते थे लेकिन कुछ समय बाद लोगों ने वहां शिविर लगाने पर आपत्ति जताई. इसके बाद हमने मनोहर भूषण इंटर कॉलेज के बाहर शिविर लगाना शुरू कर दिया. कोरोना संक्रमितों की ट्रेसिंग का सिलसिला चलता रहा. मनोहर भूषण इंटर कॉलेज के बाहर कोरोना की दूसरी लहर में भी जांच चलती रही. कुछ समय बाद यहां अभिभावकों ने आपत्ति जताई तो कैंप स्थल फिर से बदलना पड़ा और वर्तमान में पिछले करीब एक माह से शील अस्पताल के पास कैंप का आयोजन किया जा रहा है.
कैंप के आयोजन के दौरान कोरोना की दूसरी लहर में मम्मा की तबीयत अचानक ज्यादा बिगड़ गई थी. वह 15 दिन तक बिस्तर पर रहे लेकिन उनका जज्बा कम नहीं हुआ. वह फोन पर ही लोगों को कैंप में जाने के लिए प्रेरित करते और नगर निगम के अधिकारियों से बात कर संक्रमितों के इलाके सैनेटाइज करवाते थे. फिर जैसे ही मम्मा की तबीयत ठीक हुई वह वापस कैंप में आने लगे.
कोरोना जांच शिविर के चलते वार्ड में मरीजों की ट्रेसिंग हो पाई और कोरोना उतना विकराल रूप नहीं ले सका जितना कि अन्य इलाकों में ले चुका था. मम्मा का प्रयास सिर्फ कोरोना जांच तक ही सीमित नहीं रहा.
मम्मा बताते हैं कि जहां संक्रमित निकलते थे वहां नगर निगम के अधिकारियों से कहकर वह सैनेटाइजेशन कराते थे. जिस इलाके को कंटेनमेंट जोन घोषित किया जाता था वहां भी सतर्कता का पूरा ख्याल रखा जाता था. फिलहाल इलाके में कोरोना की चेन टूट चुकी है. जो होम आइसोलेशन से ही आसानी से ठीक हो जाते हैं. संक्रमितों को जरूरी दवाओं और उचित परामर्श की व्यवस्था भी कराई जाती है.
बहरहाल, जिस तरह से सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा लगातार अपनी जान की परवाह किए बिना कोरोना काल में सेवा कार्य में जुटे रहे उसके लिए वह कोरोना वॉरियर अवार्ड के वास्तविक हकदार हैं. यही वजह कि कि आज उन्हें इस अवार्ड से नवाजा गया. आज वह बरेली के समाजसेवियों और नेताओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं.