नीरज सिसौदिया, बरेली
उत्तर प्रदेश की सियासत इन दिनों एक नया रूप दिखा रही है. कहीं शक्ति स्वरूपा नारी की साड़ी उतारी जा रही तो कहीं पुलिस के सामने से प्रत्याशी के अपहरण का प्रयास किया जा रहा है. एसपी सिटी जैसे अधिकारी को थप्पड़ जड़ा जाता है और कहा जाता है कि कानून व्यवस्था ठीक है. पत्रकार भी सुरक्षित नहीं रह गए हैं. क्या वाकई यूपी में लोकतंत्र नंगा हो रहा है?
वर्ष 2017 में जब यूपी में सत्ता परिवर्तन हुआ था और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए थे तो जनता में सुशासन की एक आस जगी थी. योगी आदित्य नाथ ने जिस तरह से माफिया नेटवर्क ध्वस्त करने के लिए एक के बाद एक अपराधियों के एनकाउंटर करवाए थे उससे यह लगने लगा था कि प्रदेश में भुखमरी, बेरोजगारी दूर हो या न हो पर कानून व्यवस्था पटरी पर लौट आएगी. कुछ दिन सब कुछ ठीक रहा. लेकिन त्रि स्तरीय पंचायत चुनाव ने योगी सरकार के चार साल के कार्यकाल की उपलब्धियों पर पानी फेर दिया. कल फतेहपुर, कन्नौज, उन्नाव और लखीमपुर खीरी में जो हुआ वह बेहद शर्मसार करने वाला था. फतेहपुर में खुलेआम पुलिस के सामने तमंचे के बल पर प्रत्याशी के अपहरण की कोशिश की गई और पुलिस मूकदर्शक बनी रही. मास्टर माइंड गिरफ्तार नहीं किया गया. लखीमपुर खीरी में महिला की साड़ी खींचकर उसे सरेराह अर्धनग्न कर दिया गया और उन्नाव में एक पत्रकार को आईएएस अधिकारी ने गुंडों की तरह पीट दिया. इससे पहले जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में भी धांधली के आरोप लगे. पैसे और धमकियों के बल पर सत्ता पक्ष ने चुनाव जीता.
सवाल सिर्फ चुनाव जीतने या हारने का नहीं है, सवाल यह उठता है कि जिस योगीराज को अब तक गुंडाराज विरोधी माना जा रहा था, अब वही योगीराज लोकतंत्र को नंगा करने पर उतारू हो गया है. सत्ताधारी दल के लोग खुलेआम गुंडागर्दी का नंगा नाच दिखा रहे हैं और सरकारी नुमाइंदे मूकदर्शक बने हुए हैं. अब यह साबित हो गया है कि यूपी में सिर्फ चेहरे बदले हैं, हालात नहीं बदले. कल तक बसपा और सपा के बाहुबली जोर आजमाइश करते थे और आज भाजपा वाले कर रहे हैं. जब ऐसे ही चुनाव जीतना था तो फिर पिछली सरकारों से योगी सरकार अलग कैसे हुई? इनमें फर्क कहां रह गया. प्रदेश की जनता ने भाजपा सरकार को इसलिए तो बिल्कुल भी नहीं चुना था कि इस सरकार के कार्यकाल में उनकी बहू बेटियों की सरेआम इज्जत उतारी जाएगी. सरेआम उनके कपड़े उतारे जाएंगे और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकारों पर सरेआम लाठियां बरसाई जाएंगी. कभी मुलायम सिंह के दौर में भी पत्रकार ऐसे ही पीटे गए थे. तब पूरा देश आंदोलित हो उठा था. पिछली सरकारों ने जो किया अब वही योगी सरकार के नुमाइंदे भी कर रहे हैं तो फर्क कहां रह गया.
इन घटनाओं के लिए कहीं न कहीं विपक्ष की निष्क्रियता भी जिम्मेदार है. विपक्ष सत्ता परिवर्तन के साथ ही पंगु बना रहा और सत्ताधारियों पर अंकुश लगाने में नाकाम साबित हुआ. इसके कई कारण भी रहे. कुछ विपक्षी खुद ही अपराध और भ्रष्टाचार में लिप्त रहे इसलिए सत्ता से लड़ना उनके बूते की बात नहीं थी. लेकिन जो विपक्षी लड़ने में सक्षम भी थे उन्हें हाईकमान की जंजीरों ने बांधे रखा. जब नेतृत्व ही कमजोर हो जाए तो सेना को हौसला कहां से मिलेगा. यूपी में विपक्ष के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. चौधरी चरण सिंह और मुलायम सिंह यादव जैसा नेतृत्व अब नहीं रहा. 80 के दशक में जब माया त्यागी हत्याकांड हुआ था तो पूरे प्रदेश में जेल भरो आंदोलन होने लगे थे और सरकार की चूलें हिल गई थीं. मगर आज विपक्ष आंदोलन के लिए शुभ मुहूर्त का इंतजार कर रहा है. समाजवादी पार्टी के मुखिया खुद डरे हुए हैं कि कहीं सरकार उन्हें भी आजम खां की तरह जेल में न डाल दे. सपा ने अब 15 जुलाई से तहसील स्तर पर विरोध प्रदर्शन करने का ऐलान किया है लेकिन इनका आंदोलन कितना सफल हो पाएगा इस पर संशय है.
योगी सरकार इस आंदोलन को रोकने का हरसंभव प्रयास करेगी. फिलहाल लोकतंत्र पर हिंसा हावी होती नजर आ रही है. शर्म का पर्दा हटने लगा है और लोकतंत्र नंगा होता जा रहा है. प्रदेश के भविष्य के लिए यह स्थिति अच्छी नहीं है. जिस दिन जनता के सब्र का बांध टूटा उस दिन एक ऐसा सैलाब आएगा जो सब कुछ तबाह कर देगा. उस दिन यूपी की धरती में सिर्फ आंदोलनकारी और अपराधी ही जन्म लेंगे. हिंसा और छल से जीती गई सत्ता बस कुछ दिनों की ही मेहमान होती है. इसलिए योगी सरकार को सत्ता का गुमान नहीं करना चाहिए. ये पब्लिक है सब देख रही है. जिसने साठ साल राज करने वाली कांग्रेस को उखाड़ फेंका तो आपकी बिसात ही क्या है?