यूपी

भाजपा पार्षद सतीश कातिब मम्मा और पूर्व उप सभापति अतुल कपूर ने कामचोर व लापरवाह अफसरों की नाक में किया दम, पढ़ें क्या है पूरा मामला?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
नगर निगम के अधिकारियों की कामचोरी और लापरवाही के खिलाफ भाजपा पार्षद सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा और पूर्व उपसभापति अतुल कपूर लगातार आवाज बुलंद कर रहे हैं. दोनों भाजपा नेताओं ने ऐसे अधिकारियों की नाक में दम कर दिया है. हाल ही में हुई बोर्ड की बैठक में भी इन्हीं दोनों पार्षदों ने अपनी सरकार होने के बावजूद कामचोर कर्मचारियों और अधिकारियों के खिलाफ मोर्चा खोले रखा. जब उक्त नेताओं का हल्ला बोल होता है तो अफसर लाइन पर आ जाते हैं और जनता के काम चुटकियों में होने लगते हैं. जब जनता के काम होते हैं तो सारा क्रेडिट इन्हीं दोनों पार्षदों को जाता है.
दरअसल, सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा और अतुल कपूर दोनों ही शहर विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं. ऐसे में नगर निगम के अधिकारियों की कामचोरी और लापरवाही उक्त दोनों नेताओं को सुर्खियां बटोरने का मौका देती है. वैसे तो यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि सत्ता पक्ष के पार्षदों को निगम सदन में इसलिए हंगामा और धरना प्रदर्शन करना पड़ता है कि अफसर उनके वार्ड के काम नहीं करते. जो पार्षद शोर न मचाए, हंगामा न करे उसका काम नहीं होगा. मम्मा और अतुल कपूर अपने-अपने वार्ड में दिन रात सक्रिय रहते हैं. मम्मा एकमात्र ऐसे पार्षद हैं जो अपने वार्ड की हर छोटी बड़ी समस्या के बारे में निगम कमिश्नर तक को लिखित रूप से अवगत कराते हैं, इसके बावजूद अधिकारियों की बेरुखी जान-बूझ कर पार्टी और पार्टी नेताओं की छवि खराब करती प्रतीत होती है. अतुल कपूर ऐसे पार्षद हैं जिन्हें स्थानीय लोग दिल्ली जाने के बाद भी फोन करते हैं तो वह उन लोगों की समस्याएं हल कराने उनके घर पहुंच जाते हैं यानि मकान मालिक दिल्ली में होता है और अतुल कपूर उनके घर के बाहर के नालियां साफ करवाते नजर आते हैं. मम्मा के तो कहने ही क्या. डेयरी वाले गोबर डालकर नालियां जाम करते रहते हैं और मम्मा निगम अधिकारियों से लड़-लड़ कर नालियां साफ कराते हैं. अब सवाल यह उठता है कि नगर निगम में ऐसी अव्यवस्था क्यों है? इसका जिम्मेदार कौन है? मेयर, निगम कमिश्नर या फिर कामचोर और लापरवाह अधिकारी? सरकार ने क्या इन अधिकारियों को सिर्फ वेतन देने के लिए रखा है? अगर नहीं तो फिर काम में लापरवाही बरतने पर इनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जाती? नगर आयुक्त इन्हें संरक्षण क्यों दे रहे हैं? क्यों मम्मा और अतुल कपूर जैसे नेताओं को इन अधिकारियों के खिलाफ बीच सदन में धरने पर बैठना पड़ रहा है. यह स्थिति शहरवासियों के लिए अच्छी नहीं है. निर्वाचित प्रतिनिधियों की बातों को गंभीरता से न लेना निश्चित तौर पर अपराध की श्रेणी में आता है. ऐसे अधिकारियों को अपने पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है. अगर मम्मा और अतुल कपूर जैसे पार्षद और मेयर डा. उमेश गौतम जैसे जनप्रतिनिधि ऐसे अधिकारियों पर नकेल न कसें तो ये लोग बेलगाम हो जाएंगे और जनता त्राहि त्राहि करने लगेगी. मेयर को भी इस मामले को गंभीरता से लेकर इसका समाधान करना होगा वरना आगामी विधानसभा चुनाव में विरोधी इसे भाजपा के खिलाफ बड़े हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं.

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