बादल वर्षा मे निहित अन्न
जल का राज है।
इसी से धरा सिंचित और
पैदा होता अनाज है।।
यह फसल की उपज और
नदी नाले सब कुछ।
मेघराज तेरे यह सब ही
मोहताज़ है।।
बारिश से ही जन जीवन
रहता सुरक्षित है।
फसल नष्ट यदि भू भाग
जल वंचित है।।
मेघराज तुम्हारा करते हैं
हम सब ही स्वागत।
तुमसे धरती तले जल होता
संचित है।।
गर्मी वायु लू उमस से वर्षा
ही तो राहत है।
कृषक को रहती सदैव
वर्षा की चाहत है।।
आर्थिक स्थिति टिकी है
मानसून चौमासे पर।
बारिश का रिश्ता हर
किसीके बाबत है।।
ऊपर आसमान में मेघराज
तुम्हारा स्वागत है।
झूम झूम उठता मन जब
होता आगत है।।
तुझसे ही बुझती प्यास
पावन धरती धरा की।
तुझसे ही निकले किसान
की रोजी रोटी लागत है।।
रचयिता – एस के कपूर “श्री हंस”, बरेली