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अता उर रहमान की मुश्किलें बढ़ा रहे नसीम अहमद, लखनऊ में बिछाई बिसात, अब आए किसानों के साथ, बहेड़ी बंद से खुलेंगे विधानसभा के रास्ते

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नीरज सिसौदिया, बरेली
कभी समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेताओं में शुमार पूर्व मंत्री और बहेड़ी के पूर्व मंत्री अता उर रहमान की कुंडली में समाजवादी पार्टी के नेता और बहेड़ी विधानसभा सीट के पूर्व प्रत्याशी नसीम अहमद ग्रहण बनकर बैठ गए हैं. गांव की पगडंडियों से लेकर लखनऊ के सियासी गलियारों तक नसीम अहमद ने जो सियासी जाल बिछाया है उससे पूर्व मंत्री अता उर रहमान का सियासी कद धीरे-धीरे कम होने लगा है. ऐसे में बहेड़ी विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी का टिकट इस बार किसे मिलेगा यह देखना दिलचस्प होगा.
दरअसल, नसीम अहमद ने जिस दिन से नौकरी से वीआरएस लिया था उसी दिन से अता उर रहमान के सियासी सफर की उल्टी गिनती शुरू हो गई थी. उस दौर में अता उर रहमान मजबूत थे और अखिलेश यादव भी उन पर मेहरबान थे. उस वक्त नसीम अहमद ने बहुजन समाज पार्टी का दामन थाम लिया और बहेड़ी सीट से टिकट भी ले आए. पहली बार चुनावी मैदान में उतरे नसीम अहमद के सामने दो-दो बड़ी चुनौतियां थीं. पहली यह कि वह बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी थे जो अपना सियासी वजूद खोती जा रही थी और दूसरी यह कि प्रदेश में मोदी लहर थी.

इन दोनों विपरीत परिस्थितियों के बावजूद नसीम अहमद ने दम दिखाया और अता उर रहमान को तीन हजार वोटों से पीछे धकेल कर यह साबित कर दिया कि वह राजनीति में नए जरूर हैं पर दिग्गजों को धूल चटाना अच्छी तरह जानते हैं. सियासत में बाजी कैसे मारी जाती है यह बात नसीम अहमद ने वर्ष 2017 में ही नगर पालिका के चुनाव में सबको समझा दी. नसीम अहमद के परिवार के लिए यह दूसरा चुनाव था. पहले चुनाव में मिली हार के बाद नसीम अहमद खुद को जीत के लिए तैयार करने में जुटे थे. महज 6-7 माह की तैयारी में नसीम अहमद ने अपनी पत्नी को मैदान में उतारा और अबकी बार सिर्फ अता उर रहमान के समर्थकों को ही नहीं बल्कि भाजपा को भी धूल चटा दी. वर्ष 2017 में चेयरमैन का चुनाव जीतने के बाद भी नसीम अहमद खामोश नहीं बैठे. चूंकि उनका निशाना विधानसभा पर था इसलिए वह उसी तरह तैयारी करते रहे जिस तरह कोई नया दावेदार करता है. पिछले पांच साल से नसीम अहमद लगातार तैयारी करते रहे और अता उर रहमान को सियासी रूप से कमजोर करते रहे. कोरोना काल और नगर पालिका की चेयरमैनी नसीम अहमद के सियासी भविष्य के लिए वरदान साबित हुई. एक तरफ जहां विरोधियों ने कोरोना काल में घर से बाहर निकलना भी मुनासिब नहीं समझा वहीं नसीम अहमद इस दौरान गांव-गांव, शहर-शहर सेवा करते नजर आए. नतीजा यह हुआ कि जब त्रि स्तरीय पंचायत चुनाव हुए तो अता उर रहमान अपने भाई का ब्लॉक प्रमुख पद के लिए नामांकन तक नहीं करवा सके और नसीम अहमद जिला पंचायत सदस्य से लेकर ग्राम प्रधान संघ के अध्यक्ष पद पर भी अपने समर्थक को बैठाने में कामयाब हो गए.
जमीनी स्तर पर नसीम अहमद अपनी पहचान स्थापित कर चुके थे और अता उर रहमान को कमजोर कर रहे थे. वक्त के साथ लखनऊ स्तर पर भी अता उर रहमान का कद कुछ कम होने लगा था. नगर पालिका की जमीन पर अवैध कब्जा करने, भूमाफिया और आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को संरक्षण देने संबंधी अता उर रहमान की शिकायतें अखिलेश यादव के दरबार में पहुंच चुकी थीं. नसीम अहमद ने अब अता उर रहमान के किले में सेंध लगा ली थी. वह सपा में शामिल होने की तैयारी करने लगे थे लेकिन उनकी पहली कोशिश नाकाम हो गई थी. नसीम अहमद ने फिर भी हार नहीं मानी और अंतत: अता उर रहमान का सियासी किला भेदने में वह सफल हो गए. पार्टी के आला नेता अब नसीम अहमद के साथ खड़े हो चुके थे और अता उर रहमान की लाख कोशिशों के बावजूद नसीम अहमद को खुद अखिलेश यादव ने पार्टी में शामिल कराया. नसीम अहमद के सपा में शामिल होते ही अता उर रहमान का सियासी सूरज ढलने लगा. अखिलेश यादव भी फिलवक्त अता उर रहमान से नाराज बताए जा रहे हैं. पार्टी सूत्र बताते हैं कि अखिलेश यादव ऐसे किसी भी नेता को पसंद नहीं कर रहे हैं जिसके नाम पर जिले में राजनीतिक गुट बन गए हैं. ऐसे नेताओं में अता उर रहमान भी शामिल हैं. अता उर रहमान और भगवत सरन गंगवार के दो अलग-अलग खेमे चल रहे हैं. जिला अध्यक्ष जहां अता उर रहमान के गुट के बताए जा रहे हैं वहीं महानगर अध्यक्ष भगवत सरन खेमे के. अखिलेश यादव यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि गुटबाजी सिर्फ नुकसान ही देती है इसलिए वह उन दिग्गजों से किनारा करने की तैयारी कर रहे हैं जिनके नाम पर जिले में गुट बने हुए हैं. विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव नई हवा है, नई सपा है के अपने नारे पर चलने की तैयारी में हैं. ऐसे में ज्यादातर नए चेहरे ही मैदान में नजर आ सकते हैं. इन चेहरों में एक चेहरा नसीम अहमद का भी हो सकता है.
वहीं कुछ दिन पहले ही लखनऊ से लौटे नसीम अहमद वहां सियासी बिसात बिछा कर आए हैं.

किसानों के समर्थन में मांगपत्र सौंपते नसीम अहमद

हाईकमान के आदेश पर वापस लौटते ही उन्होंने किसानों को अपना हथियार बनाया और हाल ही में बहेड़ी मंडी में आंदोलन पर डटे किसानों के धरने में पहुंचकर उनके समर्थन में धरने पर बैठ गए. इतना ही नहीं नसीम अहमद ने किसानों को न्याय दिलाने के लिए आगामी 27 सितंबर को किसानों के समर्थन में बहेड़ी बंद का ऐलान भी कर दिया है. नसीम अहमद पहले ऐसे सपा नेता हैं जिन्होंने किसानों के समर्थन में अपने स्तर पर बहेड़ी बंद का ऐलान करने की हिम्मत जुटाई है. साफ सुथरी छवि के कारण ही वह ऐसा कर सके हैं. बहेड़ी बंद के जरिये किसानों की समस्याओं का समाधान हो या न हो मगर नसीम अहमद किसानों के नेता के रूप में भी स्थापित जरूर हो जाएंगे. इसी बंद से नसीम अहमद के लिए विधानसभा के रास्ते भी खुल जाएंगे. बहरहाल, बहेड़ी विधानसभा क्षेत्र में जिस तेजी के साथ नसीम अहमद का राजनीतिक कद बढ़ता जा रहा है उसने अता उर रहमान की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.

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