नीरज सिसौदिया, बरेली
यूपी की सियासत में इस बार ब्राह्मणों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण नजर आ रही है। विपक्ष जहां भाजपा सरकार को ब्राह्मण विरोधी करार देते हुए इस वर्ग को अपने पाले में करने की कवायद में जुटा है तो वहीं भारतीय जनता पार्टी ब्राह्मणों का विश्वास पुन: हासिल करने का हर संभव प्रयास करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। प्रदेशभर में आयोजित किए जा रहे बौद्धिक सम्मेलन इसका जीता जागता उदाहरण हैं। यही वजह है कि भाजपा को हर जिले में एक ऐसे ब्राह्मण चेहरे की तलाश है जो ब्राह्मणों को एक मंच पर जुटाने में सक्षम हो। बरेली के मेयर डा. उमेश गौतम एक ऐसा ही ब्राह्मण चेहरा हैं जो जिले में ही नहीं बल्कि मंडल स्तर पर भाजपा में ब्राह्मण चेहरे के रिक्त स्थान को भरने में सफल हो सकते हैं।
बरेली जिले में भाजपा को ब्राह्मण चेहरे की आवश्यकता क्यों है, इसके लिए यहां की स्थानीय राजनीति को बेहद करीब से जानने की जरूरत है।
दरअसल, प्रदेश में ब्राह्मण वोट बैंक लगभग 14 फीसदी है। प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से 110 सीटों पर ब्राह्मण मतदाता निर्णायक भूमिका में है। वहीं कई सीटें ऐसी हैं जिनमें ब्राह्मण मतदाता अपने दम पर प्रत्याशी को जिताने का दम भले ही न रखता हो लेकिन अगर वह भाजपा से टूटता है तो समाजवादी पार्टी की जीत सुनिश्चित हो सकती है यानि भाजपा का खेल बिगड़ सकता है। यही वजह है कि इस बार हर पार्टी ने सौ-सौ सीटों पर ब्राह्मण उम्मीदवार उतारने का प्रारंभिक ऐलान भी कर दिया है। बरेली जिला भी एक ऐसा ही जिला है जहां ब्राह्मण मतदाता इस स्थिति में है कि अगर वह भाजपा से टूटता है तो सपा की राह आसान हो जाएगी। बरेली जिले में मेयर उमेश गौतम को छोड़कर फिलहाल भाजपा के पास कोई ऐसा ब्राह्मण चेहरा नहीं है जो ब्राह्मण वोटों का ध्रुवीकरण करने में सक्षम हो। हालांकि, ब्राह्मण नेताओं की भाजपा में कमी नहीं है लेकिन ये नेता जाति से तो ब्राह्मण हैं मगर उनकी पहचान ब्राह्मण नेता की बजाय किन्हीं अन्य कारणों से ही है। उदाहरण के तौर पर बिथरी चैनपुर विधायक राजेश मिश्रा उर्फ पप्पू भरतौल को ही ले लें, कहने को तो वह जाति से ब्राह्मण हैं लेकिन उन्हें ब्राह्मण नेता की जगह दबंग नेता के तौर पर अधिक जाना जाता है।
उमेश गौतम पर नजरें इसलिए भी टिकती हैं क्योंकि वह हाल ही में बरेली में संतों का सम्मान करके चर्चा में आए हैं। साथ ही इस सम्मान समारोह में यतींद्र गिरिजी महाराज का आशीर्वाद भी उन्हें मिल चुका है। इससे पूर्व भी वह कई जगहों पर ब्राह्मण सम्मेलन करा चुके हैं। जिस तेजी के साथ उमेश गौतम ने पिछले कुछ वर्षों में ब्राह्मणों को अपने साथ जोड़ने का काम किया है उसने यह साबित कर दिया है कि उमेश गौतम खुद को भाजपा का ब्राह्मण चेहरा बनाने की कवायद में जुटे हुए हैं। सही मायनों में बरेली जिले में भाजपा को उमेश गौतम जैसे ब्राह्मण चेहरे की जरूरत भी है क्योंकि समाजवादी पार्टी के नेता ब्राह्मणों के महत्व को भली भांति समझ चुके हैं। यही वजह से कि बरेली में सपा के टिकट के दावेदारों में सबसे लंबी कतार ब्राह्मणों की ही है। पूर्व मंत्री साधना मिश्रा, जिला सहकारी संघ के तीन बार चेयरमैन रहे महेश पांडेय, जिला सचिव नूतन शर्मा, महिला नेत्री एवं राष्ट्रीय सचिव नीरज तिवारी, विष्णु शर्मा, समर्थ मिश्रा जैसे कई नेता सपा से टिकट की कतार में खड़े हैं। इतना ही नहीं समाजवादी पार्टी की नजरें उमेश गौतम पर भी हैं। ऐसे में भाजपा अगर जिले में कोई बड़ा ब्राह्मण चेहरा प्रोजेक्ट नहीं करती है तो उसे आगामी विधानसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ सकता है।
लखनऊ, वाराणसी, चंदौली, बहराइच, रायबरेली, उन्नाव, अमेठी, शाहजहांपुर, सीतापुर, लखीमपुर खीरी, कानपुर, सुल्तानपुर, भदोही, जौनपुर, मिर्जापुर, प्रयागराज के अतिरिक्त भी ब्राह्मणों के दबदबे से इनकार नहीं किया जा सकता। अब देखना यह है कि भाजपा ब्राह्मणों को किस तरह मैनेज करती है। क्या उमेश गौतम को ब्राह्मण चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाएगा? अगर ऐसा हुआ तो बरेली जिले में ही नहीं मंडल स्तर पर समाजवादी पार्टी का ब्राह्मण कार्ड नहीं चल जाएगा क्योंकि बरेली, बदायूं, पीलीभीत लेकर शाहजहांपुर तक उमेश गौतम और उनके पिता का अच्छा प्रभुत्व है। ऐसे में संभावना है कि ब्राह्मणों के बिखराव को रोकने के लिए भाजपा उमेश गौतम को बरेली जिले में ब्राह्मण चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट कर सकती है। अगर ऐसा हुआ तो पप्पू भरतौल ही नहीं कैंट विधानसभा सीट के दावेदारों की भी मुश्किलें बढ़ सकती हैं क्योंकि उमेश गौतम कैंट से ही चुनाव लड़ना चाहते हैं। साथ ही पप्पू भरतौल की मुश्किलें इसलिये भी बढ़ सकती हैं क्योंकि भाजपा जिले में सिर्फ एक सीट पर ही ब्राह्मण पर दांव खेलेगी। संभव है कि मेयर को बिथरी से ही मैदान में उतारा जाए।
बहरहाल, उमेश गौतम भाजपा में ब्राह्मण चेहरे के रूप में जगह बना पाते हैं अथवा नहीं इसका फैसला जल्द ही हो जाएगा।
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