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124 शहर विधानसभा सीट : दो युवा चेहरों पर टिकीं सबकी निगाहें, दिग्‍गजों के भी उड़ा रहे होश, पढ़ें अतुल कपूर और मो. कलीमुद्दीन ने कैसे बनाई अलग पहचान?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
124 बरेली शहर विधानसभा सीट पर इन दिनों दो युवा चेहरे सुर्खियां बटोर रहे हैं। इनमें एक चेहरा भाजपा का है तो दूसरा समाजवादी पार्टी से टिकट का प्रबल दावेदार है। दोनों ही चेहरों के संघर्ष का सफर लगभग एक सा ही है। उम्र में भी दोनों लगभग समान ही हैं और दोनों के ही काम करने का अंदाज कुछ ऐसा है कि दिग्‍गजों को भी उनकी मौजूदगी खटकने लगी है। इनमें पहला नाम चार बार के पार्षद को धूल चटाकर नगर निगम के सदन में धमाकेदार एंट्री करने वाले पूर्व उपसभापति और भाजपा पार्षद अतुल कपूर का है और दूसरा चेहरा भाजपा के किले में सेंध लगाकर सपाई और भाजपाई दिग्‍गजों की भी नींदें हराम करने वाले ओमेगा क्‍लासेज के डायरेक्‍टर मो. कलीमुद्दीन का है।
सबसे पहले बात करते हैं भाजपा से शहर विधानसभा सीट से टिकट के प्रबल दावेदार अतुल कपूर की। अतुल कपूर पहली बार पार्षद बने और पहली ही बार में उपसभापति भी बन गए। इसकी सबसे बड़ी वजह संघ और संगठन के प्रति उनका समर्पण और समाजसेवा में सक्रियता रही। पहले कोरोना काल में टोल प्‍लाजा से लेकर ट्रेनों तक में सफर करने वाले प्रवासी मजदूरों को राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के स्‍वयंसेवकों के साथ मिलकर दिन-रात भोजन उपलब्‍ध कराने में अतुल कपूर की अहम भमिका रही। संघ और संगठन के लगभग 95 फीसदी कार्यक्रमों में उनकी मौजूदगी और तन-मन-धन से सहभागिता ने संगठन में उन्‍हें मजबूती प्रदान की। संगठन में मजबूती के साथ ही जमीनी स्‍तर पर भी अतुल कपूर उसी तन्‍मयता से सक्रिय रहे जिस तरह संगठन में सक्रिय रहते थे। नगर निगम का अतिक्रमण दस्‍ता जब भी किसी गरीब की रोजी का साधन उजाड़ता तो अतुल कपूर एकमात्र ऐसे शख्‍स थे जो उस गरीब के पक्ष में खड़े नजर आते थे। कुछ महीने पहले ऐसे ही एक रेहड़ी पटरी वाले की दुकान नगर निगम ने उजाड़ दी थी तो सदमे में उस बेबस को दिल का दौरा पड़ा और उसकी मासूम बेटी अनाथ हो गई। उस वक्‍त भी उस गरीब बेटी के साथ अतुल कपूर खड़े नजर आए थे। कोरोना की दूसरी लहर में भी अतुल कपूर ने लोगों के घरों तक राशन और भोजन पहुंचाने का काम किया था। अतुल कपूर के ये कार्य उनकी सामाजिक सहभागिता के चंद उदाहरण मात्र हैं। इसी तरह के कार्यों ने उन्‍हें एक बड़े चेहरे के रूप में स्‍थापित किया और आज वह नेताओं की भीड़ से अलग सियासी वजूद स्‍थापित करने में सफल साबित हुए। रही सही कसर खत्री-पंजाबी समाज के समर्थन ने पूरी कर दी। अपने समाज के लोगों का समर्थन मिलने के बाद अतुल कपूर बरेली शहर विधानसभा का इतना बड़ा चेहरा बन चुके हैं कि विरोधी दल भी उन पर डोरे डालते नजर आ रहे हैं। अतुल कपूर ने अपने काम और सेवा भाव के दम पर एक अहम मुकाम हासिल कर लिया है। भाजपा उन्‍हें टिकट दे अथवा न दे लेकिन उनकी दावेदारी पर गंभीरता से विचार जरूर करेगी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच उचित संदेश नहीं जाएगा और फिर कभी कोई भी कार्यकर्ता इस स्‍तर तक संगठन के लिए काम करने की हिम्‍मत नहीं जुटा पाएगा।
कुछ ऐसी ही कहानी मो. कलीमुद्दीन की भी है। नवाबगंज के एक छोटे से गांव से निकलकर बरेली की सियासत में अपनी अलहदा पहचान बनाने वाले मो. कलीमुद्दीन युवा दिलों पर राज करते हैं। मजहबी सियासत से कोसों दूर कलीमुद्दीन जब पहले कोरोना काल में जनता की सेवा को निकले तो कारवां बहुत छोटा था मगर हौसला काफी बड़ा। कलीमुद्दीन के पास जो भी अपना दर्द लेकर पहुंचा वह खाली हाथ नहीं लौटा। ये वह दौर था जब सपा ही नहीं भाजपा के भी बड़े-बड़े दिग्‍गज घरों से बाहर निकलने की हिम्‍मत नहीं जुटा पा रहे थे। नेताओं की अनदेखी कलीमुद्दीन के लिए सुनहरा अवसर बन गई। पहले ही कोरोना काल में कलीमुद्दीन को शहर विधानसभा क्षेत्र का बच्‍चा-बच्‍चा जान गया। इसके बाद कलीमुद्दीन का सफर बढ़ता गया। जो नेता कलीमुद्दीन को नया कहकर उपहास करते नजर आते थे, वही नेता कलीमुद्दीन की शान में कसीदे पढ़ते नजर आए। इसके बाद कोरोना की दूसरी लहर आई तो कलीमुद्दीन दोगुने उत्‍साह से लोगों की मदद में जुट गए। इस दौरान वह खुद भी कोरोना की चपेट में आ गए लेकिन हौसला इतना मजबूत था कि कोरोना को मात देकर वह फिर से जनता की सेवा में जुट गए। इस जज्‍बे को शहर की जनता देख भी रही थी और उन्‍हें सिर आंखों पर बिठाने भी लगी थी। इसके बाद जब हालात सामान्‍य हुए और चुनावी हलचल शुरू हुई तो कलीमुद्दीन वह पहले सपा नेता थे जिन्‍होंने शहर विधानसभा में चुनावी शंखनाद किया और सपा का झंडा बुलंद करते रहे। एक-एक कर हर समाज, जाति और धर्म के लोगों को सपा से जोड़ने में वह सफल रहे। यह कलीमुद्दीन के काम का ही दम था कि जब अखिलेश यादव अन्‍य दावेदारों से मिलना भी पसंद नहीं कर रहे थे उस वक्‍त न सिर्फ कलीमुद्दीन से उन्‍होंने मुलाकात की बल्कि चुनाव पर चर्चा भी की। कलीमुद्दीन एकमात्र बरेली के ऐसे दावेदार थे जिसके साथ अखिलेश यादव ने तस्‍वीर खिंचवाई। इस तस्‍वीर ने विरोधी दावेदारों के होश फाख्‍ता कर दिए। वर्तमान में कलीमुद्दीन अपने काम के दम पर बरेली शहर विधानसभा सीट के सबसे प्रबल दावेदारों में अपनी जगह बना चुके हैं।
बहरहाल, भाजपा और सपा के ये दोनों ही ऐसे चेहरे हैं कि पार्टी अगर इन्‍हें मैदान में उतारती है तो आम कार्यकर्ता के बीच यह संदेश जाएगा कि अब युवाओं का दौर आ चुका है और पार्टी में काम के दम पर भी आगे बढ़ा जा सकता है।

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