नीरज सिसौदिया, बरेली
सियासत के खेल में भारतीय जनता पार्टी का कोई तोड़ नहीं है, यह बात अब पूरी तरह साबित होती नजर आ रही है। 125 बरेली कैंट विधानसभा सीट पर इस बार भाजपा ने वह करिश्मा कर दिखाया है जो बरेली कैंट विधानसभा के इतिहास में संभवत: पहले कभी नहीं हुआ। इस बार एक मुस्लिम महिला ने भाजपा उम्मीदवार के चुनाव प्रचार की कमान संभालकर यह साबित कर दिया है कि भाजपा में भी मुस्लिमों के हित सुरक्षित रह सकते हैं।
दरअसल, विरोधी दल यह कहकर भाजपा का विरोध करते रहे हैं कि भाजपा में मुस्लिमों के हित सुरक्षित नहीं रह गए हैं। आम जनता के बीच जिस तरह का माहौल बनाकर मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश की जा रही थी उसका तोड़ भाजपा ने निकाल लिया है। अब हालात यह हैं कि कैंट विधानसभा सीट के मुस्लिम वोटरों का साथ भी भाजपा को मिलने लगा है। बरेली कैंट विधानसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार संजीव अग्रवाल के पक्ष में मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट करने के लिए निदा खान ने कमान संभाल ली है। निदा खान वह शख्सियत हैं जो आला हजरत खानदान की बहू होने के साथ ही बेबस मुस्लिम महिलाओं के हक की आवाज उठाने के लिए जानी जाती हैं। वह खुद भी अपने हक की लड़ाई लड़ रही हैं। भाजपा पर भले ही हिन्दू-मुस्लिम की राजनीति करने के आरोप लगते रहे हों लेकिन मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के अभिशाप से बाहर निकालने के कारण यह पार्टी मुस्लिम महिलाओं के दिलों में कहीं न कहीं अपनी जगह बना चुकी है। सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के नारे के परिप्रेक्ष्य में देखें तो भाजपा यहां कामयाब नजर आती है। निदा खान जैसी मुस्लिम महिला का भाजपा के प्रचार की कमान संभालना इस बात का स्पष्ट रूप से संकेत देता है कि इस बार मुस्लिम महिलाओं का वोट भी भाजपा के खाते में जरूर आएगा।
बात सिर्फ निदा खान की ही नहीं है। डा. हुदा जैसे लोगों का भाजपा के प्रचार की जिम्मेदारी संभालना एक नई तस्वीर पेश कर रहा है। नदीम शम्सी जैसे मुस्लिम समाजसेवी के घर पर इंद्रेश जैसे संघ के पदाधिकारी का जाना यह साबित करता है कि मुस्लिम समाज का एकतरफा वोट समाजवादी पार्टी को नहीं मिलने जा रहा।
रही-सही कसर कांग्रेस उम्मीदवार हाजी इस्लाम बब्बू और निर्दलीय उम्मीदवार नफीस अंसारी की उम्मीदवारी ने पूरी कर दी। बताया जाता है कि नफीस अंसारी समाजवादी पार्टी के एक ऐसे पूर्व पार्षद के रिश्तेदार हैं जो समाजवादी पार्टी से कैंट विधानसभा सीट से टिकट के दावेदार भी थे। अंदरखाने इनका पूरा समर्थन नफीस अंसारी को मिल रहा है जबकि ऊपर से यह सपा प्रत्याशी के साथ नजर आ रहे हैं। कांग्रेस उम्मीदवार हाजी इस्लाम बब्बू और नफीस अंसारी ऐसे चेहरे हैं जिनका सपोर्ट कैंट विधानसभा सीट के कुछ ऐसे मुस्लिम समाजवादी नेता भी कर रहे हैं जो टिकट की दौड़ में भी शामिल थे। इसका उदाहरण कुछ दिन पहले कांग्रेस के प्रदेश सचिव के कार्यालय में देखने को मिला। उस कार्यालय में जब इंडिया टाइम 24 की टीम पहुंची तो कांग्रेस के पर्यवेक्षक के साथ समाजवादी पार्टी के पार्षद जी मीटिंग करते नजर आए। यह मीटिंग कांग्रेस उम्मीदवार हाजी इस्लाम बब्बू के समर्थन में की जा रही थी। वहीं, पूर्व डिप्टी मेयर डा. मोहम्मद खालिद के कांग्रेस में शामिल होने के बाद मुस्लिम वोटरों के ध्रुवीकरण का सपना टूटता नजर आ रहा है। वर्तमान हालात यह स्पष्ट करते नजर आ रहे हैं कि किसी भी दल के पक्ष में मुस्लिम वोटरों का ध्रुवीकरण नहीं होने जा रहा है। चूंकि समाजवादी पार्टी ने इस बार यहां से मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है इसलिए मुस्लिम नेताओं को भी अपना राजनीतिक भविष्य खतरे में नजर आ रहा है। ऐसे में समाजवादी पार्टी यहां से आधा मुस्लिम वोट भी हासिल कर पाएगी, इस पर संशय की स्थिति बनी हुई है। शायद यही वजह है कि इस बार सपा का पूरा फोकस हिन्दू मतदाताओं पर है। अब हिन्दू मतदाता को रिझाने में सपा कितनी कामयाब हो पाएगी, इसका पता तो दस मार्च के चुनाव परिणाम देखने के बाद ही चलेगा। बहरहाल, बरेली कैंट विधानसभा सीट पर मुस्लिम मतदाताओं के बिखराव की जो स्थिति बनी हुई है वह समाजवादी पार्टी के लिए शुभ संकेत नहीं दे रही है।
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