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कैंट सीट : आखिर ढाई हजार का आंकड़ा भी क्यों नहीं छू सके इस्लाम बब्बू, मौलाना तौकीर का भी नहीं चला जादू, क्या हो गए थे मैनेज?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
विधानसभा चुनाव में वैसे तो जिले में ही नहीं प्रदेश भर में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा लेकिन 125 बरेली कैंट विधानसभा सीट को लेकर तरह-तरह की चर्चाओं का बाजार गर्म है। यहां कांग्रेस उम्मीदवार मो. इस्लाम अंसारी उर्फ हाजी इस्लाम बब्बू महज 23 सौ वोट ही हासिल कर सके। आईएमसी प्रमुख मौलाना तौकीर रजा का साथ भी उन्हें ढाई हजार के आंकड़े तक नहीं पहुंचा सका। ऐसे में बब्बू के मैनेज होने की चर्चाओं का बाजार एक बार फिर गर्म हो गया है।
दरअसल, हाजी इस्लाम बब्बू जब नवाबगंज से पीस पार्टी से चुनाव लड़े थे तो लगभग 40 हजार से भी अधिक वोट ले गए थे जबकि जिस पार्टी से वह चुनाव लड़े थे उसका कोई वजूद नवाबगंज में नहीं था और हाजी इस्लाम बब्बू भी नवाबगंज के लिए बाहरी उम्मीदवार होने के साथ ही पहली बार विधानसभा के मैदान में किस्मत आजमा रहे थे। इस बार बब्बू जिस कैंट विधानसभा सीट से चुनाव लड़े थे उसी सीट के अंतर्गत वह वार्ड भी आता है जहां से वर्तमान में बब्बू की पत्नी पार्षद हैं और बब्बू भी कई बार पार्षद रह चुके हैं। उनके साथ आईएमसी प्रमुख मौलाना तौकीर रजा भी थे। मौलाना ने कई जगहों पर बब्बू के समर्थन में बैठकें कर वोट देने की अपील भी की लेकिन मुसलमानों पर मौलाना का जादू भी नहीं चला। पार्टी सूत्र बताते हैं कि हाजी इस्लाम बब्बू मतदान से पूर्व ही सरेंडर कर चुके थे। शुरू में तो वह भाजपा उम्मीदवार के प्रभाव में आकर धुआंधार प्रचार करते नजर आ रहे थे लेकिन बाद में सपा उम्मीदवार के प्रभाव में आकर शांत हो गए। जिसका फायदा सपा को मिला और जो मुस्लिम वोट बब्बू हासिल कर सकते थे वह भी हासिल नहीं कर सके। यही वजह रही कि जिस मौलाना तौकीर रजा की एक आवाज पर हजारों मुस्लिमों का हुजूम उमड़ पड़ता था उस मौलाना की दमदार तकरीरों का उनके गृह क्षेत्र के मुसलमानों पर भी कोई असर नहीं पड़ा। मौलाना ने जहां भी चुनाव प्रचार किया वहां कांग्रेस को कोई लाभ नहीं हो सका। यह सच है कि इस बार मुस्लिम वोट एकतरफा सपा के खाते में गया लेकिन कुछ उम्मीदवारों के आत्मसमर्पण की वजह से कांग्रेस उतने वोट भी हासिल नहीं कर सकी जितने हासिल कर सकती थी। इनमें से एक सीट बरेली कैंट विधानसभा सीट भी है।
चुनावी नतीजे आने के बाद सियासी गलियारों में यह चर्चा आम हो गई है कि हाजी इस्लाम बब्बू समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के प्रभाव में आ गए थे जिस वजह से उनकी इतनी बुरी स्थिति हुई है। पार्टी नेता तो यहां तक कहने से नहीं चूक रहे कि हाजी इस्लाम बब्बू तौकीर आलम को मोटी रकम देकर कांग्रेस का टिकट लाए थे जिसकी वसूली उन्होंने विपक्षी उम्मीदवारों से की और चुनाव में वह सक्रियता नहीं दिखाई जो दिखाई जानी चाहिए थी।
मतगणना के दिन हाजी इस्लाम बब्बू की बयानबाजी इस बात की पुष्टि भी करती है कि वह समाजवादी पार्टी के प्रभाव में थे। कांग्रेस नेताओं के साथ मतगणना स्थल पर बातचीत के दौरान बब्बू स्पष्ट रूप से यह कहते नजर आए थे कि वह कांग्रेस में दोबारा शामिल ही नहीं हुए और वह तो अभी भी समाजवादी पार्टी में ही हैं। कांग्रेस ने तो उन्हें सिर्फ टिकट दिया था इसलिए वह चुनाव लड़ गए। बब्बू तो यहां तक कह गए कि अगर किसी को लगता है कि वह कांग्रेस में दोबारा शामिल हुए हैं तो उसका कोई प्रमाणिक दस्तावेज दिखाएं जिससे यह साबित होता हो कि वह कांग्रेस में दोबारा शामिल हुए थे।
बहरहाल, हाजी इस्लाम बब्बू की करारी हार और सपा उम्मीदवार के प्रभाव में आकर सरेंडर करने की चर्चाओं का बाजार गर्म है। इन चर्चाओं में कितनी सच्चाई है यह तो सपा नेता और बब्बू ही जानें मगर कांग्रेस की इस खेल में फजीहत जरूर हो गई है।

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