नीरज सिसौदिया, बरेली
विधानसभा चुनावों में कुछ गलतियों के कारण समाजवादी पार्टी बरेली जिले में उम्मीद के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सकी। हालांकि, पार्टी ने दो सीटों पर कब्जा जमाया है। मुस्लिम दावेदारों की अनदेखी के चलते सपा को काफी नुकसान भी उठाना पड़ा। अब सवाल 2024 में प्रस्तावित लोकसभा चुनाव को लेकर है। विधानसभा चुनाव में जो परिणाम आए उनसे यह साबित हो गया है कि सपा का बेड़ा मुस्लिम ही पार लगा सकते हैं लेकिन इस मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने का काम कई अन्य पार्टियां भी कर रही हैं। बरेली जिले की नौ विधानसभा सीटों पर तीन संसदीय क्षेत्रों का हिस्सा आता है। इनमें पहला बरेली संसदीय क्षेत्र, दूसरा आंवला और तीसरा पीलीभीत संसदीय क्षेत्र पड़ता है। इनमें बरेली संसदीय सीट पर लगभग आठ लाख मुस्लिम वोटर हैं और 2024 के चुनावों तक यह आंकड़ा और बढ़ेगा। अब तक समाजवादी पार्टी बरेली में हिन्दू नेता को जिला अध्यक्ष और मुस्लिम को महानगर अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपती आ रही है। चूंकि महानगर की दो विधानसभा सीटों में हिन्दुओं का वर्चस्व है, ऐसे में भाजपा की यहां पर मजबूत पकड़ बनती जा रही है। महानगर अध्यक्ष मुस्लिम होने की वजह से पार्टी से उस तादाद में हिन्दुओं को जोड़ने में कामयाबी नहीं मिल पा रही है जिस तादाद में एक हिन्दू महानगर अध्यक्ष प्रभावी हो सकता था। ऐसे में सपा युद्ध से पहले ही मैदान से बाहर हो रही है। यही वजह है कि चाहे डॉ. मोहम्मद खालिद का महानगर अध्यक्ष का कार्यकाल रहा हो, कदीर अहमद का कार्यकाल रहा हो, जफर बेग का कार्यकाल रहा हो या फिर निवर्तमान अध्यक्ष शमीम खां सुल्तानी का कार्यकाल रहा हो, सपा कभी भी शहर की कोई भी सीट नहीं जीत सकी है। व्याहारिक तौर पर इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि एक मुस्लिम महानगर अध्यक्ष अगर मंदिर जाता है तो उसके नाम पर फतवे जारी होने लगते हैं। साथ ही कर्मकांडी ब्राह्मणों को पारिवारिक स्तर पर जोड़ने में उसे कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में मुस्लिम महानगर अध्यक्ष उस कट्टर हिन्दू खेमे में अपनी पकड़ बनाने में नाकामयाब साबित होता है और इसका नुकसान पार्टी को उठाना पड़ता है। इसके उलट जिला अध्यक्ष हिन्दू होने के नाते सपा का कोर वोट बैंक कहा जाने वाला मुस्लिम समाज जिला स्तर पर एकजुट नहीं हो पाता जिसका फायदा मौलाना तौकीर रजा की पार्टी आईएमसी को लोकसभा चुनावों में मिलता है और मुस्लिम वोटों के बिखराव के कारण भाजपा हमेशा जीत जाती है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों का कभी बिखराव नहीं हुआ लेकिन लोकसभा में हमेशा ये वोट बिखरते रहे।
वर्तमान में बरेली जिले से सपा के जो दो विधायक बने हैं वह भी मुस्लिम समाज से हैं। वहीं, विधानसभा चुनाव के बाद मुस्लिमों का बिखराव फिर शुरू हो गया है। भोजीपुरा के कद्दावर सपा नेता हाजी तसव्वर खां जैसे कई नेता दूसरे दलों का दामन थाम चुके हैं। इधर, बिहार में भाजपा को झटका मिलने के बाद मुस्लिम समुदाय का रुझान कांग्रेस की तरफ बढ़ा है। इन सब परिस्थितियों में फिलहाल मुस्लिम जिला अध्यक्ष बरेली में सपा के लिए फायदेमंद हो सकता है। लेकिन सपा को एक ऐसे चेहरे को यह जिम्मेदारी सौंपनी होगी जिसका राजनीतिक कद भले ही बहुत बड़ा न हो पर उसकी छवि साफ सुथरी और निर्विवादित हो। वह कार्यकर्ताओं के बीच सहज रूप से स्वीकार्य हो और वर्तमान विधायक का उसे समर्थन भी प्राप्त हो। तभी लोकसभा चुनाव और निकाय चुनावों में सपा बेहतर प्रदर्शन कर सकती है अन्यथा पार्टी का संघर्ष और अधिक मुश्किल हो सकता है।
लोकसभा का चुनावी रण जीतना है तो इस बार समाजवादी पार्टी को नया प्रयोग करना होगा। उसे पार्टी परंपरा से ऊपर उठकर महानगर की कमान एक हिन्दू को और जिला अध्यक्ष की कमान एक मुस्लिम को सौंपनी होगी