बबलू सिंह।, रांची
झारखंड में 1932 खतियान नीति को हरी झंडी देने के बाद हेमंत सोरेन सरकार पर मंडराने वाले संकट के बादल अब छंटते नजर आ रहे हैं। कैबिनेट के इस फैसले को सरकार का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। निश्चित तौर पर आदिवासी एवं झारखंड मूल के लोग सरकार के इस फैसले से प्रसन्न हैं। इस फैसले के बाद न सिर्फ भाजपा बल्कि कांग्रेस पर भी काफी असर पड़ सकता है। दरअसल, अब तक झारखंड मुक्ति मोर्चा को सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के साथ की जरूरत थी। यह जरूरत तब तक बरकरार रहेगी जब तक कि विधानसभा चुनाव नहीं होंगे लेकिन खतियान संबंधी फैसले ने आदिवासी वोट बैंक पर असर दिखाना शुरू कर दिया है। अब अगर राज्यपाल चुनाव आयोग का मंतव्य सार्वजनिक करते हैं या भाजपा महाराष्ट्र की तरह जोड़-तोड़ की नीति अपनाती है तो भी फिलहाल चुनाव नहीं कराए जा सकते हैं क्योंकि हेमंत सरकार हाल ही में विधानसभा में विश्वासमत हासिल कर चुकी है। इन परिस्थितियों में अगर चुनाव होते भी हैं तो आदिवासी और झारखंड मूल का वोट बैंक झारखंड मुक्ति मोर्चा के पाले में जाना तय है। हेमंत के प्रति सहानुभूति की एक लहर भी देखने को मिलेगी। सिर्फ खतियान नीति ही नहीं वरन् हाल में कैबिनेट ने जिस तरह से पुलिस कर्मियों की छुट्टी और आंगनबाड़ी सेविका-सहायिकाओं का मानदेय बढ़ाने जैसे फैसले लिए हैं, उसने एक बड़े वर्ग को प्रभावित किया है। ऐसे में फिलहाल भगवा दल का सत्ता पर काबिज होने का अरमान पूरा होता दिखाई नहीं दे रहा।