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प्रदेश में सबसे ज्यादा वोटों से जीती थीं सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा की पत्नी, पहली बार में ही बना दिया था जीत का रिकॉर्ड, जानिये कब?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
नगर निगम चुनाव में अब ज्यादा वक्त नहीं रह गया है। दिसंबर में चुनाव होने की उम्मीद जताई जा रही है। ऐसे में हर पार्टी जिताऊ उम्मीदवार की तलाश में जुट गई है क्योंकि ये चुनाव लोकसभा चुनाव के सेमीफाइनल के रूप में देखे जा रहे हैं इसलिए सबकी निगाहें भाजपा पर टिकी हुई हैं। इन दिनों भाजपा पार्षद सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा काफी चर्चा में हैं। इसकी वजह है कि उनके वार्ड में विरोधी दलों को मजबूत उम्मीदवार तलाशने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। वजह यह है कि इस वार्ड को मौजूदा भाजपा पार्षद सतीश कातिब मम्मा आज तक नगर निगम का कोई चुनाव हारे ही नहीं और न ही उनकी पत्नी कभी चुनाव हारी हैं।

सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा

नगर निगम चुनाव में अपने साढ़े तीन दशक से भी अधिक समय के राजनीतिक सफर में एक भी निकाय चुनाव न हारने वाले वार्ड 23 के भाजपा पार्षद सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा की पत्नी ने भी प्रदेश में नया कीर्तिमान स्थापित किया था। यह वह दौर था जब मम्मा के वार्ड को महिला आरक्षित कर दिया गया था। उस वक्त मम्मा ने अपनी पत्नी माया सक्सेना को चुनावी मैदान में उतारा था। माया सक्सेना का यह पहला चुनाव था। इसके बावजूद उन्होंने न सिर्फ जीत हासिल की बल्कि पूरे प्रदेश में सबसे अधिक 5228 वोटों से जीतने का रिकॉर्ड भी अपने नाम दर्ज किया था। उस वक्त मुस्लिम समुदाय के लोगों ने एक बैठक की थी। जिसमें कहा गया था कि मम्मा दंपति सर्व समाज की सेवा करता आ रहा है इसलिए इनके खिलाफ कोई मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा नहीं किया जाएगा। उस वक्त यह वार्ड 41 बजरिया पूरनमल हुआ करता था जहां हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय के मतदाताओं की संख्या निर्णायक थी। यह वार्ड मिश्रित आबादी वाला वार्ड था।
उस दौर में पहली बार चुनावी मैदान में उतरी माया सक्सेना ने जीत का जो रिकॉर्ड बनाया था उसे आज तक कोई नहीं तोड़ सका। खुद उनके पति भी आज तक उनकी बराबरी नहीं कर सके। माया सक्सेना भाजपा महानगर महिला मोर्चा बरेली की निवर्तमान महानगर मंत्री हैं।

साथ ही कायस्थ चेतना मंच बरेली की महिला मोर्चा की जिला अध्यक्ष भी हैं।

इंडिया टाइम 24 से खास बातचीत में माया ने बताया, ‘वर्ष 1995 की बात है। पहली बार नगर निगम चुनाव होने जा रहे थे। हमारा वार्ड महिला आरक्षित हो गया था। मेरे पति सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा इसी वार्ड से पार्षद रह चुके थे। इस बार सीट महिला आरक्षित हो चुकी थी। समाजसेवा के क्षेत्र में मैं पहले से ही सक्रिय भूमिका निभाती रहती थी। पति के साथ उनके चुनाव में मैंने कदम से कदम मिलाकर उनका साथ दिया था। अब चूंकि वार्ड महिला आरक्षित हो चुका था इसलिए पति अब चुनाव नहीं लड़ सकते थे। लोगों के कहने पर उन्होंने मुझे चुनाव मैदान में उतार दिया। मेरा यह पहला चुनाव था। पति ने मुझे चुनाव में तो उतार दिया था पर आगे का सफर मुझे अकेले ही तय करना था। पति ने मुझे मोरल सपोर्ट तो दिया पर बात जब कैंपेनिंग की आती थी तो वह दूरी बना लेते थे। वह चाहते थे कि कल को अगर मैं चुनाव जीतूं तो कोई यह न कह सके कि पति की मेहरबानी की वजह से मैंने यह मुकाम हासिल किया है। मैं कुछ घबराई हुई तो थी मगर एक मौका भी था खुद को साबित करने का। मुझे यहां के हर समुदाय का पूरा साथ मिला।’ माया बताती हैं, ‘जब मुझे भाजपा प्रत्याशी घोषित किया गया था तो मैं समझ नहीं पा रही थी कि यह सफर कैसे तय कर पाऊंगी। मेरे प्रत्याशी घोषित होते ही वार्ड के लोगों ने एक मीटिंग की। जिसमें यह निर्णय लिया गया कि मेरे विरोध में कोई भी मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा नहीं होगा। उसी साल वार्ड का भी विभाजन हो चुका था। पहले जहां हमारे वाार्ड में 38 हजार वोटर थे, वहीं अब मात्र 12 हजार ही रह गए थे। मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा नहीं होने का नतीजा यह हुआ कि मैं 52 सौ से भी अधिक वोटों से चुनाव जीत गई।’

रिकॉर्ड तोड़ जीत हासिल करने के बाद दोबारा कभी चुनावी मैदान में न उतरने का कारण पूछने पर माया बताती हैं, ‘दोबारा चुनाव लड़ने की इच्छा तो हुई पर पार्टी ने मौका ही नहीं दिया। इसलिए पार्टी ने जिसे चुना मैंने उसी को जिताने का पूरा प्रयास किया। एक बार मेयर की सीट महिला आरक्षित हुई तो मन हुआ चुनाव लड़ने का लेकिन उस वक्त भाजपा ने संजना जैन पर भरोसा जताया। मैं पार्टी के निर्णय के खिलाफ कैसे जा सकती थी।
ऐसे में मैंने संजना जी की जीत सुनिश्चित कराने का प्रयास किया।’
माया सक्सेना वर्तमान में संगठन में अहम भूमिका निभा रही हैं। पूछने पर कहती हैं, ‘पार्टी ने भले ही मुझे दोबारा चुनाव लड़ने का मौका न दिया हो लेकिन सम्मान पूरा दिया। मैं आभारी हूं कि पार्टी ने मुझे एक बार चुनाव में उतारा और मैं जीत का रिकॉर्ड बनाने में सफल रही। मैं बीडीए की सदस्य भी रही। भविष्य में पार्टी मौका देगी तो जरूर चुनाव लड़ूंगी। ‘

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