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उमेश गौतम ही होंगे मेयर पद के उम्‍मीदवार, सपा को दमदार मुस्लिम का इंतजार

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नीरज सिसौदिया, बरेली
उत्‍तर प्रदेश नगर निकाय चुनावों की अधिसूचना जारी होने के बाद विभिन्‍न सियासी दल अपने-अपने उम्‍मीदवारों के नामों की सूची को अंतिम रूप देने में जुट गए हैं। बात अगर बरेली नगर निगम की करें तो यहां एक बार फिर मुख्‍य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच ही है। इस बार के चुनावों में दोनों ही दल कोई रिस्‍क नहीं लेना चाहते। यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी का पूरा फोकस फिलहाल सिटिंग मेयर उमेश गौतम पर ही है। चूंकि यह पार्टी हाईकमान भी जान चुका है कि उमेश गौतम की जितनी पकड़ अपनी पार्टी के छोटे नेताओं के बीच है, उतनी ही पकड़ विपक्षी दलों के नेताओं पर भी है। यही वजह है कि समाजवादी पार्टी के कुछ पार्षद सह पार्टी पदाधिकारी खुलेआम सोशल मीडिया पर विकास कार्यों के लिए उमेश गौतम की तारीफों के पुल बांधते रहते हैं। वैसे तो उमेश गौतम का पत्‍ता साफ कराने में कुछ भाजपा नेताओं ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन पार्टी के कुछ आला पदाधिकारियों का यह मानना है कि डॉ. विनोद पागरानी जैसे नए चेहरे को इन परिस्थितियों में मैदान में उतारना ठीक नहीं होगा। हालांकि, अभी मेयर पद के उम्‍मीदवार का नाम घोषित नहीं किया गया है। ऐसे में ऐन वक्‍त पर बदलाव की संभावनाओं को भी नकारा नहीं जा सकता। ठीक उसी तरह जिस तरह पिछले निगम चुनाव में डॉ. प्रमेंद्र माहेश्‍वरी की नाक के नीचे से उमेश गौतम मेयर पद का टिकट लेकर आ गए थे। लेकिन फिलहाल जो हालात बन रहे हैं वे यही इशारा देते हैं कि भाजपा से मेयर पद के उम्‍मीदवार उमेश गौतम ही होंगे।
वहीं, दूसरी ओर समाजवादी पार्टी ने अभी तक नाम तो फाइनल नहीं किया है लेकिन पार्टी के कई दिग्‍गज नेता चाहते हैं कि इस बार बरेली मेयर के लिए किसी साफ सुथरी छवि वाले मुस्लिम चेहरे को मैदान में उतारा जाए। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि विगत विधानसभा चुनाव में कैंट या शहर विधानसभा सीट में से किसी भी सीट पर मुस्लिम उम्‍मीदवार न उतारना समाजवादी पार्टी को भारी पड़ गया था। निराश मुस्लिम मतदाता पोलिंग बूथों तक भी नहीं पहुंचे। नतीजतन कैंट विधानसभा सीट महज आठ हजार वोटों से सपा को गंवानी पड़ी। जानकारों का कहना है कि उस वक्‍त समाजवादी पार्टी ने दोनों सीटों से वैश्‍य उम्‍मीदवार को मैदान में उतारा जो अपनी बिरादरी का वोट भी नहीं ला सके थे। अगर उस वक्‍त समाजवादी पार्टी ने इंजीनियर अनीस अहमद खां या डॉ. अनीस बेग जैसे साफ-सुथरी छवि वाले मुस्लिम नेताओं में से किसी एक पर भी भरोसा जताया होता तो आज कैंट विधानसभा सीट पर भाजपा की जगह सपा काबिज होती। राजनीतिक विश्‍लेषकों को उम्‍मीद है कि सपा इस बार विधानसभा वाली गलती बिल्‍कुल भी नहीं दोहराएगी। क्‍योंकि उसे न सिर्फ मेयर का चुनाव जीतना है बल्कि आगामी लोकसभा चुनावों के लिए मुस्लिम मतदाताओं का विश्‍वास भी जीतना है। विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा को यह अहसास हो चुका है कि अगर मुस्लिम एकजुट हो गए तो उसकी हार निश्चित है। यही वजह है कि पूरे प्रदेश के मुस्लिमों को छोड़ बरेली के मुसलमानों को राष्‍ट्रीय मुस्लिम मंच में अहम पदों पर सुशोभित किया जा रहा है। फिर चाहे वह भोजीपुरा के गुड्डू खान हों या फिर पुराना शहर के डॉ. तस्‍लीम कुरैशी। निदा खान तो पहले से ही भाजपा के पाले में हैं। साफ सुथरी छवि वाले डॉ. अनीस बेग इस बार भी मेयर पद का टिकट मांग रहे हैं। निश्चित तौर पर डॉ. अनीस बेग से बेहतर अन्‍य कोई मुस्लिम उम्‍मीदवार समाजवादी पार्टी के लिए नहीं हो सकता। न तो वह दबंग हैं और न ही हिन्‍दू विरोधी। दोनों ही वर्गों में उनकी गहरी पैठ है। अगर सपा डॉक्‍टर अनीस बेग को मैदान में उतारती है तो उसे मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण का फायदा तो मिलेगा ही, साथ ही जातिवादी राजनीतिक विरोध का सामना भी नहीं करना पड़ेगा। क्‍योंकि अगर वैश्‍य को टिकट मिलेगा तो ब्राह्मण नाराज हो जाएंगे, यादव नाराज हो जाएंगे, दलित नाराज हो जाएंगे यानि जिस किसी भी बिरादरी के नेता को टिकट मिलेगा उसे छोड़कर बाकी सभी बिरादरी के लोग नाराज हो जाएंगे लेकिन मुस्लिम को टिकट मिलेगा तो बिरादरी के इस बंटवारे को आसानी से रोका जा सकेगा क्‍योंकि सपा के पास यह तर्क होगा कि विधानसभा चुनाव में उसने हिन्‍दुओं को मौका दिया था, इसलिए अबकी बार टिकट पर मुस्लिम का हक बनता है। बहरहाल, टिकट की घोषणा अगले दो-तीन दिनों के भीतर हो जाएगी।

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