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टिकट बेच-बेच कर पार्टी को कमजोर कर रहे सपा अध्यक्ष शमीम खां सुल्तानी, नगर निगम से बीडीए चुनाव तक बेचे टिकट, सपा पार्षद राजेश अग्रवाल ने खोले कई राज, पढ़ें पूरा इंटरव्यू

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समाजवादी पार्टी के पार्षद राजेश अग्रवाल ने हाल ही में बरेली विकास प्राधिकरण के चुनाव में जीत हासिल की है। वर्ष 2006 से लगातार यह चुनाव जीतते आ रहे राजेश अग्रवाल को इस बार निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा। इसकी क्या वजह रही? समाजवादी पार्टी के महानगर अध्यक्ष शमीम खां सुल्तानी पर उन्होंने टिकट बेचने के आरोप लगाए हैं, इसका क्या आधार है? बहेड़ी विधायक और पार्टी के प्रदेश महासचिव अता उर रहमान और नगर निगम में सपा पार्षद दल के नेता गौरव सक्सेना के हर बार निर्दलीय चुनाव लड़ने को लेकर वह क्या सोचते हैं? बीडीए चुनाव में सपा के प्रत्याशी अब्दुल कय्यूम खां मुन्ना की हार और उनकी योग्यता को लेकर राजेश अग्रवाल का क्या कहना है? राजेश अग्रवाल के लिए बीडीए मेंबर बनना इतना जरूरी क्यों था कि इसके लिए उन्हें पार्टी से बगावत करनी पड़ी? ऐसे कई मुद्दों पर पूर्व विधानसभा प्रत्याशी और सपा पार्षद राजेश अग्रवाल ने इंडिया टाइम 24 के संपादक नीरज सिसौदिया से खुलकर बात की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश…
सवाल : बरेली विकास प्राधिकरण के सदस्य का जो चुनाव हुआ इस बार, इसे किसी नजरिये से देखते हैं आप? पार्टी के तौर पर और व्यक्तिगत तौर पर जो आपको जीत मिली है, कितना आसान या मुश्किल था यह चुनाव?

जवाब : देखिए बीडीए में मेरा अनुभव बहुत लंबा है। मैं वर्ष 2006 से बीडीए का मेंबर हूं। पार्टी ने हर बार मुझे खुद इस पद के लिए भेजा है। मेरे अनुभव को देखते हुए, मेरी कार्यशैली को देखते हुए लगातार पार्टी ने मुझ पर भरोसा जताया लेकिन इस बार न जाने पार्टी को मुझमें क्या कमी दिखी, जब मुझे अखिलेश जी ने विधानसभा चुनाव लड़वाया तो कोई योग्यता देखी होगी मुझमें और वह योग्यता भी महानगर अध्यक्ष शमीम खां सुल्तानी ने इस बार दरकिनार कर दी। नगर निगम के चुनाव के दौरान टिकट वितरण में भी मुझे इग्नोर किया गया। फिर नेता सदन के चयन में भी मुझे इग्नोर किया और अब बीडीए मेंबर के चुनाव में भी मुझे इग्नोर कर रहे थे। अच्छा लगता कि मेरी जगह कोई योग्य व्यक्ति भेजते लेकिन ऐसा कुछ नहीं था। फिर पार्षदों की मर्जी के बगैर महानगर अध्यक्ष शमीम खां सुल्तानी ने टिकट वितरण किया। पार्षदों की राय मेरे पक्ष में थी। हमारी समाजवादी पार्टी के 14 सभासद थे और जीत के लिए कुल 21 वोटों की आवश्यकता थी। वोट भी पूरे नहीं थे समाजवादी पार्टी के।समाजवादी पार्टी के आठ पार्षदों ने पार्टी के प्रत्याशी को वोट भी नहीं दिया, उन्होंने मुझे वोट किया। निश्चित तौर पर जब समाजवादी पार्टी के आठ पार्षद मुझे वोट दे सकते हैं तो उन्होंने टिकट देने के लिए भी मेरा ही नाम प्रिफर किया होगा। सपा के पांच दावेदार थे जिनमें से सिर्फ एक पार्षद ने मेरे लिए नहीं कहा। इसके बावजूद महानगर अध्यक्ष ने मुझे इग्नोर किया और टिकट नहीं दिया। मैं समझता हूं कि उन्होंने यह अच्छा निर्णय नहीं लिया। इसी तरह कार्यकारिणी के चुनाव में उन्होंने कार्यालय में एसी लगेंगे, कॉफी मशीन लगेगी, कहकर लोगों के टिकट काट दिए। शमीम खां सुल्तानी इतने बड़े नेता हो गए कि बीडीए के चुनाव से एक दिन पहले रात को 9:30 बजे टिकट की घोषणा करते हैं। जिस प्रत्याशी को सात पार्षदों के वोट जुटाने हैं क्या वह रातों-रात सात पार्षदों के वोट जुटा पाएगा? शमीम खां सुल्तानी ऐसा इसलिए करते हैं कि किसी तरह से नगर निगम में सांठगांठ कर निर्विरोध चुनाव करा दिया जाए। पार्षदों को वोट डालने का आदेश दे दिया जाए और इन्हें जो प्राप्त करना है वह ये प्राप्त कर ले।

सवाल : कितने वोट मिले आपको बीडीए मेंबर के चुनाव में?
जवाब : मुझे 22 वोट मिले।

सवाल : यानि भाजपा के पार्षदों ने भी सपोर्ट किया आपको?
जवाब : देखिए निर्दलीय और समाजवादी पार्टी के पार्षदों ने बहुत जबरदस्त सपोर्ट किया मुझे। कांग्रेस के पार्षदों ने भी बहुत सहयोग दिया। मुझे लगभग 12 निर्दलीय, आठ मेरी समाजवादी पार्टी के और तीन कांग्रेस के पार्षदों ने वोट किया। जिनमें से एक वोट निरस्त हो गया। इस तरह मुझे 22 वोट मिले।

सवाल : आपको यह नहीं लगता कि हर बार पार्टी एक ही आदमी को क्यों भेजे? क्या दूसरे कार्यकर्ता को मौका नहीं मिलना चाहिए?

जवाब : बिल्कुल मिलना चाहिये। लेकिन अगर ऐसी बात है तो एमएलए का टिकट काट देना चाहिए। एमएलए का टिकट दोबारा नहीं देना चाहिए, तिबारा नहीं देना चाहिए, चौबारा नहीं देना चाहिए। किसी व्यक्ति को अगर टिकट मिलता है तो उसमें कोई स्पेशियलिटी होती है। अगर हम नगर निगम में बिना किसी व्यक्तिगत लालच के, बीडीए में बिना व्यक्तिगत लालच के कम कर रहे हैं और योग्यता के आधार पर कर रहे हैं, एक्ट के साथ कर रहे हैं और एक-एक मीटिंग को लेकर 8 दिन पहले से तैयारी करते हैं जबकि हमारी पार्टी के कुछ लोग एजेंडा तक उलट कर नहीं देखते हैं तो क्या जरूरी है कि दूसरे को भेजा जाए? हां, अगर योग्यता है तो भेजा जाए लेकिन अगर योग्यता नहीं है तो क्यों भेजा जाए उसे?

सवाल : पार्टी से बगावत करके आप निर्दलीय चुनाव लड़े। ऐसी क्या जरूरत पड़ गई थी कि आपको बीडीए का मेंबर बनने के लिए पार्टी से बगावत करनी पड़ी? क्या बीडीए का मेंबर बनना इतना ज्यादा जरूरी था?

जवाब : सवाल इस बात का नहीं है, सवाल यह है कि अगर मुझे भी निर्दलीय लड़ने का शौक होता तो मैं भी गौरव सक्सेना की तरह रामपुर बाग से साइकिल के चुनाव चिन्ह पर न लड़कर निर्दलीय लड़कर भारी वोटों से जीतता। मेरी किस्मत अच्छी है, मेरी वर्किंग ऐसी है कि मैं 576 वोटों से जीत गया लेकिन मैंने रिस्क तो लिया। पिछली बार गले तक आ गई थी लड़ाई, मैं सिर्फ 76 वोटों से जीता था लेकिन मैंने साइकिल नहीं छोड़ी। मैं भी गौरव सक्सेना की ‌तरह चुनाव जीतने के लिए साइकिल छोड़ सकता था। जब मैं साइकिल नहीं छोड़ रहा और निरंतर पार्टी के सभी कार्यकलापों में शामिल रहता हूं। मैं विधानसभा का चुनाव लड़ा हूं और मुझे पहली बार के पार्षद की तरह ट्रीट कर लिया गया। क्या मेरी हैसियत इतनी गिर गई? लोग अगर विधानसभा चुनाव लड़ लेते हैं तो पार्टी उसे प्रमोट करती है पार्टी के लोग उसका सम्मान बढ़ाते हैं न कि उसे नीचे लाते हैं।

सवाल : यह जो पूरा घटनाक्रम हुआ है, आपकी नजर में संगठन पर इसका क्या असर पड़ेगा?

जवाब : देखिए, संगठन बहुत बड़ा है और इस घटनाक्रम का संगठन पर कोई असर इसलिए भी नहीं पड़ेगा क्योंकि हम भी अल्टीमेटली समाजवादी के ही सिपाही हैं। और हम जो यह चुनाव जीते हैं वह समाजवादी पार्टी की हैसियत से ही जीते हैं, कोई भारतीय जनता पार्टी से तो जीते नहीं हैं।

सवाल : बीडीए के चुनाव में पार्टी के प्रत्याशी की जो अस्वीकार्यता है, इसे आप पार्टी की अस्वीकार्यता कहेंगे या पर्टिकुलर किसी व्यक्ति विशेष की अस्वीकार्यता?

जवाब : देखिए, महानगर अध्यक्ष शमीम खां सुल्तानी की जो कार्यशैली है, हम इस अस्वीकार्यता को उसकी कमी मानते हैं। क्योंकि जब भी नगर निगम या बरेली विकास प्राधिकरण से संबंधित कोई भी चुनाव होता है तो महानगर अध्यक्ष पार्षदों को बुलाते भी हैं और उनकी राय भी लेते हैं लेकिन जब पार्षद किसी एक व्यक्ति के लिए राय देते हैं तो महानगर अध्यक्ष उस पर अमल नहीं करते हैं। इसके अलावा पहले जो परंपरा थी, मैं सभासद दल का नेता था तो दो दिन या तीन दिन पहले हम बीडीए चुनाव के प्रत्याशी की घोषणा कर देते थे और पार्षद जाकर अपनी तैयारी करता था क्योंकि वोट कभी पूरे नहीं होते हैं। ऐसे ही नगर निगम के चुनाव में महानगर अध्यक्ष ने किया, जो सिटिंग पार्षद थे उनके टिकट काट दिए गए। इसका नतीजा यह हुआ कि जो कांग्रेस कहीं नजर भी नहीं आ रही थी वह महानगर अध्यक्ष की कार्यशैली से मजबूत हो गई।

सवाल : आपने कहा कि महानगर अध्यक्ष ने सिटिंग पार्षदों के टिकट काट दिये। कोई ऐसा उदाहरण है आपके पास जिनके टिकट काट दिए गए?

जवाब : रेहान, कइया, और यामीन खान ऐसे सिटिंग पार्षद थे जिनका टिकट काट दिया गया। यामीन खान टेक्नोलॉजी के मामले में बहुत आगे थे। रेहान पुराना शहर के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे लेकिन उनकी जगह एक ऐसे व्यक्ति को टिकट दे दिया गया जो नौकरी छोड़कर आया था। यामीन खान अब कांग्रेस में चले गए और तीन-चार और नेताओं को भी साथ ले गए। वहां से सादिक जीते जो यामीन के कारण ही जीते। इसके अलावा भी कई और नेताओं के साथ भी यही हुआ। जिस कांग्रेस को मेयर के चुनाव में वोट नहीं मिलता था उसे मेयर के चुनाव में 25 – 26 हजार वोट मिल गए। तो महानगर अध्यक्ष ने पार्टी कमजोर कर दी। इन्होंने लगातार टिकट बेच- बेच कर पार्टी को खत्म होने के कगार पर ला दिया है। हालांकि, पार्टी खत्म तो नहीं होगी लेकिन महानगर अध्यक्ष की वजह से बरेली के कार्यकर्ताओं में निराशा आ गई है।

 

सवाल : अब लोकसभा चुनाव आ रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न विपक्षी दलों का इंडिया गठबंधन बन चुका है। अगर बरेली में इसी तरह की स्थिति रही तो संगठन कैसे एकजुट होकर भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला कर पाएगा?

जवाब : बरेली में माननीय बहेड़ी विधायक अता उर रहमान साहब ने संगठन को एकजुट करने की दिशा में बहुत अच्छा प्रयास किया है। हम भी थे उसमें। उन्होंने सबके गिले शिकवे दूर कराए। देखिए, लोकल बॉडी के चुनाव में और लोकसभा चुनाव में बहुत बड़ा अंतर होता है। लोकल बॉडी के चुनाव में टिकट स्थानीय स्तर पर वितरित किए जाते हैं। इसके बारे में न राष्ट्रीय अध्यक्ष को पता होता है और न ही प्रदेश अध्यक्ष को पता होता है। उनकी आंखें, नाक कान सब महानगर अध्यक्ष ही होते हैं और उन्हीं की बात माननी पड़ती है। लेकिन लोकसभा के चुनाव में राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वयं इनवॉल्व रहते हैं। वह दसियों एजेंसियों से जांच करते हैं क्योंकि टिकट उन्हें करना होता है। लोकसभा के चुनाव में कार्यकर्ता भले ही निराश बैठा हो लेकिन वह बाहर निकलता है और गठबंधन होने से सभी दलों के कार्यकर्ता मिलकर काम करेंगे तो और अच्छी तरह से कम होगा।

सवाल : बड़े चुनाव को लेकर अक्सर एक सवाल और उठता है, खास तौर पर समाजवादी पार्टी जब प्रत्याशी मैदान में उतरती है तो हिंदू और मुस्लिम का मुद्दा उठता है। आपकी नजर में कौन बेहतर प्रत्याशी हो सकता है बरेली लोकसभा सीट पर?

जवाब : देखिए लोकसभा का विषय बहुत बड़ा है। वरुण गांधी आ जाते हैं पीलीभीत से लड़ने के लिए, रुचि वीरा आ गई थीं आंवला से लड़ने के लिए तो लोकसभा में यह नहीं पता होता है कि कौन क्रिकेटर आ जाए, कौन स्टार आ जाए, यह राष्ट्रीय अध्यक्ष के स्तर का मामला है। हिंदू मुस्लिम कोई विषय नहीं होता है यह तो अब गंदा माहौल हो गया है। इसी माहौल में मैं अभी चुनाव जीता हूं। अभी बरेली विकास प्राधिकरण के चुनाव में महानगर अध्यक्ष ने मुस्लिम पार्षदों को कसमें खिलाईं कि राजेश अग्रवाल को मत ज़िताओ, अपने मुस्लिम भाई को ज़िताओ। लेकिन फिर भी मुस्लिम पार्षदों ने मुझे जिताया। तो हिंदू मुस्लिम कुछ विषय है नहीं लेकिन पार्टी के बड़े फाेरम पर उसे मुद्दा बना दिया गया है।

सवाल : तो हिंदू मुस्लिम आपकी नजर में कोई मुद्दा नहीं है?
जवाब : नहीं, राजनीतिक रूप से है लेकिन वास्तविकता में नहीं है। जब लोग एक- दूसरे के साथ आते हैं तो दोनों समुदायों के लोग एक-दूसरे को सहयोग भी करते हैं। तो यह कोहरा छंटेगा और चेहरे पर चुनाव निर्भर करेगा। कोई अच्छा चेहरा आएगा तो वह सबके लिए स्वीकार्य होगा।

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