सुधीर राघव
बीवी को प्यार से डर लगता है, झगड़े से नहीं! अगर आप चाहते हैं कि आपकी बीवी आपसे डरे तो ताबड़तोड़ प्यार करते रहो! गलती से भी झगड़े का ट्रेक पकड़ा तो आपका बैंड बजना तय है. वह पृथ्वीराज नहीं है कि इक्कीस बार जीतने के बाद बाइसवीं बार हार जाए. बाइसवीं बार भी वही जीतेगी. तब आपको याद आएगा कि पत्नी का एक नाम गोरी भी है.
इतिहासकारों में इस पर मतभेद हो सकते हैं कि पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी को कितनी बार हराया, क्योंकि हम्मीर महाकाव्य बताता है सात बार; पृथ्वीराज प्रबंध आठ बार; पृथ्वीराज रासो इक्कीस बार और प्रबंध चिंतामणि तेईस बार पृथ्वीराज के हाथों गौरी का हारना बताता है… मगर यह तय मान लो कि पत्नी से झगड़ोगे तो हर बार हार तुम्हारी होगी.
हो सकता है बीवी हरदम झगड़े के मूड में दिखे. मगर आपको जाल में नहीं फंसना है. आपको धैर्य से तीखे शब्दों को बिना ढाल के सीने पर लेना है. बिल्कुल वैसे जैसे भीष्म ने अर्जुन के प्रहारों से अपने लिए बाणशैय्या बना ली. आपको चुपचाप पत्नी के शब्दों को शैय्या बना लेना है. यह संसार की सबसे उत्तम कला है. शब्द शैय्या पर लेटकर आपको भी हर बार भीष्म अनुभूति होगी. किंतु धैर्यवान पुरुष ही इस उच्चता तक पहुंच पाते हैं, जबकि कुछ धैर्यहीन पत्नी को छोड़कर भाग जाते हैं और प्रायः नीचता को प्राप्त होते हैं.
कुछ ऐसे विरले उदाहरण भी हैं, जिन्होंने खुद पत्नी से मुक्त होकर पूरे संसार को मुक्ति दिलाने की ठानी और परम उच्चता को प्राप्त हुए. यह और बात है कि सारा संसार कभी मोह माया से मुक्त नहीं हो सका.. मगर पत्नी से मुक्त होने वालों का आत्मविश्वास इतना अवश्य बढ़ जाता है कि वे बहुतों को यकीन दिला देते हैं कि अगर पत्नी मुक्त हुआ जा सकता है तो संसार से मुक्ति भी संभव है.
मुक्ति का मार्ग सब चाहते हैं. सबको मुक्त होना है. कोई फंसना नहीं चाहता. मगर यह पूरी सृष्टि तो फंसे हुए लोग ही चला रहे हैं. अगर ग्रह और सूर्य एक दूसरे के गुरूत्वाकर्षण में न फंसे होते तो क्या यह संसार होता? अगर कर्ता पुरुष को आसक्ति न होती तो क्या संसार की रचना होती. अगर ईव से आदमी ने झगड़ा कर लिया होता और वह फल न खाया होता तो क्या आज धरती पर इतनी रौनक होती.
अतः मुक्ति नहीं आकर्षण ही रचेता का ध्येय है. शायद इसीलिए ईश्वर ने पत्नी को झगड़ालु बनाया है. इस झगड़े में जीत के लिए लड़ना अहंकार है… क्योंकि हार के आगे प्यार है. प्यार से ही संसार है.
#सुधीर_राघव