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सेना की इस अधिकारी ने तबाही के बाद महज 31 घंटे में तैयार कर दिया ब्रिज, जानिए आपदा की कहानी मेजर सीता की जुबानी

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वायनाड। केरल के वायनाड में भूस्खलन से तबाह हुए चूरलमाला गांव में नवनिर्मित ‘बेली ब्रिज’ की रेलिंग पर खड़ी भारतीय सेना की एक महिला अधिकारी की तस्वीर त्रासदी की विभिन्न भयानक तस्वीरों के बीच संतुष्टि और गर्व का एहसास कराती है। सोशल मीडिया पर इस तस्वीर के वायरल होने के बाद लोगों ने भारतीय सेना और अधिकारी को उनकी बहादुरी एवं प्रतिबद्धता के लिए सलाम करते हुए बधाई दी। यह तस्वीर मेजर सीता अशोक शेलके की है, जो भारतीय सेना की उस इकाई की एकमात्र महिला अधिकारी हैं जिसने दूरदराज के इलाकों में फंसे ग्रामीणों को बचाने के लिए ‘बेली ब्रिज’ का निर्माण पूरा किया है। मद्रास इंजीनियर ग्रुप (एमईजी) ने मलबे, उखड़े हुए पेड़ों और तेज बहती नदी की बाधाओं को पार करते हुए मात्र 31 घंटों में पुल का निर्माण पूरा कर लिया और शेलके वहां सैनिकों के समूह का नेतृत्व कर रही थीं। थकी हुई दिख रहीं शेलके ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मैं खुद को यहां अकेली महिला नहीं मानती; मैं एक सैनिक हूं। मैं यहां भारतीय सेना की प्रतिनिधि के तौर पर हूं और इस टीम का हिस्सा बनने पर मुझे बहुत गर्व है।” शेलके और उनके एमईजी सहयोगियों के प्रयासों से अब वायनाड के भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में बचाव प्रयासों को काफी बढ़ावा मिला है। महाराष्ट्र के अहमद नगर के गाडिलगांव की निवासी शेलके पुल के सफल निर्माण को केवल सेना की सफलता की कहानी नहीं मानतीं। उन्होंने कहा, ‘‘मैं सभी स्थानीय अधिकारियों, राज्य के अधिकारियों और उन सभी लोगों का आभार व्यक्त करना चाहती हूं जिन्होंने अलग-अलग जगहों से हमारी मदद की है। स्थानीय लोगों, ग्रामीणों और राज्य के अधिकारियों का विशेष आभार।” वह सेना में अपने वरिष्ठों की भी आभारी हैं, जिन्होंने उन पर विश्वास जताया और उन्हें वायनाड में अपना काम जारी रखने की अनुमति दी। उन्होंने कहा, ‘‘मैं अपने सभी वरिष्ठ अधिकारियों को धन्यवाद देना चाहती हूं। यह हमारे जवानों का प्रयास है।” मेजर शेलके आपदा प्रभावित क्षेत्रों में लगातार काम कर रही हैं। उन्हें भारी वर्षा और पुल निर्माण के लिए सीमित स्थान के कारण निर्माण कार्य में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इन बाधाओं के बावजूद, मेजर शेलके और उनकी टीम पुल का सफल निर्माण सुनिश्चित करने में सफल रही।

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