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मुख्यमंत्री के खिलाफ चलेगा भ्रष्टाचार का मुकदमा, राज्यपाल ने दी मंजूरी, जानिये क्या है पूरा घोटाला?

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नई दिल्ली। भ्रष्टाचार निवारण पर 1988 के कानून के तहत किसी मुख्यमंत्री या मंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में जांच और मुकदमा चलाने की मंजूरी देने के लिए राज्यपाल सक्षम प्राधिकारी हैं। कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) भूखंड आवंटन ‘‘घोटाले” के संबंध में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए शनिवार को मंजूरी दे दी। कर्नाटक के राज्यपाल सचिवालय ने कथित अपराधों के लिए भ्रष्टाचार निवारण (पीसी) अधिनियम, 1988 की धारा 17 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023 की धारा 218 के तहत सिद्धरमैया के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी के अनुरोध को स्वीकार कर लिया। कानून के तहत मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने के लिए राज्यपाल सक्षम प्राधिकारी हैं और कानूनी स्थिति के मद्देनजर आरोपी को पद से हटाने के लिए सक्षम प्राधिकारी द्वारा मंजूरी दी जानी चाहिए। एक संशोधन के माध्यम से 2018 में शामिल की गई पीसी अधिनियम की धारा 17ए का उद्देश्य लोकसेवकों को उनके आधिकारिक निर्णयों से संबंधित कथित अपराधों की जांच से बचाना है और एक लोकसेवक पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने के लिए प्रक्रियात्मक विवरण प्रदान करना है। प्रावधान कहता है कि एक पुलिस अधिकारी को ऐसे अपराधों की जांच करने से पहले पूर्वानुमति लेनी होगी। सक्षम प्राधिकारी को जांच एजेंसी से अनुरोध प्राप्त होने के 120 दिन के भीतर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने या अस्वीकार करने का निर्णय लेना होगा। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि पूर्व मंजूरी प्राप्त करने की आवश्यकता का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि लोकसेवकों को परेशान न किया जाए। इसने यह भी कहा है कि पूर्व मंजूरी की आवश्यकता पूर्ण नहीं है और वास्तविक आरोपों की अदालत को पड़ताल करने की अनुमति होनी चाहिए। कर्नाटक के राज्यपाल ने बीएनएसएस की धारा 218 भी लागू की है, जिसने हाल ही में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की जगह ली है। बीएनएसएस प्रावधान लोकसेवकों और न्यायाधीशों पर मुकदमा चलाने की प्रक्रिया प्रदान करता है और कहता है कि कोई भी अदालत अपने आधिकारिक कर्तव्य निर्वहन के दौरान किसी लोकसेवक के खिलाफ कथित अपराध का तब तक संज्ञान नहीं ले सकती जब तक कि सरकार ने पूर्व मंजूरी नहीं दी हो। प्रावधान के अनुसार, सरकार को मंजूरी के अनुरोध पर 120 दिन के भीतर निर्णय लेना होगा और यदि वह ऐसा करने में विफल रहती है, तो मंजूरी प्रदान की गई मानी जाएगी। इसमें यह भी कहा गया है कि सरकार यह निर्धारित कर सकती है कि लोकसेवक पर मुकदमा कौन चलाएगा, अभियोजन कैसे चलाया जाएगा और मुकदमा किस अदालत में होगा।

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