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बुलडोजर न्याय पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कहा-किसी का मकान पर सिर्फ इसलिए कैसे बुलडोजर चला सकते हैं कि वो आरोपी है, मोदी सरकार से पूछा- कोरोना में रोजगार गंवाने वाले प्रवासी श्रमिकों के लिए क्या किया?

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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि किसी भी व्यक्ति का मकान सिर्फ इसलिए कैसे ढहाया जा सकता है कि वह एक आरोपी है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि वह इस मुद्दे पर दिशानिर्देश निर्धारित करने का प्रस्ताव रखती है। न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने ध्वस्तीकरण कार्रवाई के खिलाफ दायर याचिकाओं पर कहा, “भले ही वह दोषी हो, फिर भी कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना ऐसा नहीं किया जा सकता।” हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि वह किसी भी अनधिकृत निर्माण को संरक्षण नहीं देगा। पीठ ने कहा, “हम अखिल भारतीय आधार पर कुछ दिशा-निर्देश निर्धारित करने का प्रस्ताव करते हैं, ताकि उठाए गए मुद्दों के संबंध में चिंताओं का समाधान किया जा सके।” पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 17 सितंबर के लिए तय कर दी।
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्र सरकार से प्रवासी श्रमिकों के लिए कल्याणकारी उपायों के संबंध में अपने 2021 के फैसले और उन्हें राशन कार्ड व अन्य कल्याणकारी सुविधाएं प्रदान करने से जुड़े बाद के दिशा-निर्देशों के अनुपालन के बारे में विवरण देते हुए एक हलफनामा दाखिल करने को कहा। शीर्ष अदालत ने 29 जून 2011 के अपने फैसले और उसके बाद के आदेशों में प्राधिकारियों के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिनमें उनसे ‘ई-श्रम’ पोर्टल पर पंजीकृत और कोविड-19 महामारी के दौरान मुश्किलों का सामना करने वाले सभी प्रवासी श्रमिकों को राशन कार्ड देने सहित अन्य कल्याणकारी उपाय करने को कहा गया था। ‘ई-श्रम’ केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की ओर से शुरू किया गया असंगठित श्रमिकों का एक व्यापक राष्ट्रीय डेटाबेस (एनडीयूडब्ल्यू) है, जिसका प्राथमिक उद्देश्य देशभर में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को कल्याणकारी योजनाओं और सामाजिक सुरक्षा उपायों का लाभ पहुंचाने की सुविधा प्रदान करना है। न्यायमूर्ति सीटी रवि कुमार और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने कहा, “भारत संघ को 29 जून, 2021 के फैसले और उसके बाद के अन्य आदेशों के अनुपालन में उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी देते हुए एक व्यापक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है। इस तरह के हलफनामे में मुख्य निर्णय और उसके बाद के आदेशों के माध्यम से जारी किसी भी निर्देश पर उठाए गए कदमों का पूरा विवरण शामिल होगा। यह हलफनामा तीन सप्ताह के भीतर दायर किया जाना चाहिए।” शीर्ष अदालत ने अपनी स्वत: संज्ञान याचिका तीन सप्ताह बाद सूचीबद्ध करने का आदेश दिया, जो कोविड-19 महामारी के प्रकोप के चरम पर होने के दौरान शुरू की गई थी, ताकि संकटग्रस्त प्रवासी श्रमिकों के कल्याण को सुनिश्चित किया जा सके, जो लॉकडाउन के दौरान दिल्ली और अन्य स्थान छोड़कर जाने के लिए मजबूर हुए थे। वकील प्रशांत भूषण और न्यायमूर्ति करोल के बीच तीखी बहस हुई, जब वकील को यह सुझाव दिया गया कि चूंकि महामारी खत्म हो गई है, इसलिए याचिका पर सुनवाई बंद की जा सकती है। न्यायमूर्ति करोल ने कहा, “सुनिए… कोविड खत्म हो गया है। हम इसे बंद करने जा रहे हैं। यदि किसी को राशन कार्ड जारी किए जाने के संबंध में कोई समस्या है, तो वह संबंधित उच्च न्यायालय का रुख कर सकता है। कृपया बताएं कि इसे बंद क्यों नहीं किया गया। हम इस मामले को इसी निर्देश के साथ बंद कर देंगे।” इससे खफा प्रशांत भूषण ने कहा, “कृपया ऐसा मत कहें। कार्यवाही का दायरा पहले ही बढ़ाया जा चुका है। यदि माननीय न्यायमूर्ति कहते हैं कि यह मामला बंद कर दिया जाएगा, तो यह न्यायिक अनुशासन के खिलाफ है… आप ऐसा नहीं कर सकते।” जवाब में पीठ ने कहा, “कृपया आवाज ऊंची न करें… हम हमेशा दोनों पक्षों को सुनते हैं। हम भी उस पक्ष में थे… हम केवल यह बताने के लिए कह रहे हैं कि हमें इस मामले को बंद क्यों नहीं कर देना चाहिए।” भूषण ने कहा, ‘‘आपके न्यायमूर्ति ने अभी जो कहा, उससे मैं बहुत नाराज हूं।” भूषण ने बाद में अपना आपा खो देने के लिए माफी मांगी। शुरुआत में भूषण ने कहा था कि केंद्र फैसले और उसके बाद के आदेशों में जारी निर्देशों का पालन नहीं करके अवमानना ​​कर रहा है। उन्होंने कहा, जनगणना 2021 में की गई थी और तदनुसार केंद्र ने जनसंख्या सर्वेक्षण किया और पाया कि एक करोड़ से अधिक लोग राशन कार्ड के लिए पात्र थे, लेकिन सरकार कह रही है कि वह आगे राशन कार्ड जारी नहीं कर सकती। पीठ ने कहा कि चूंकि, कोविड खत्म हो गया है, इसलिए मामले को बंद करना होगा और पीड़ित व्यक्ति उच्च न्यायालय जा सकते हैं। उसने कहा, “सम्मान देने और लेने, दोनों की ही चीज है। हम बार से कभी नाराज नहीं हो सकते, क्योंकि हम वहीं से हैं।” इस पर भूषण ने कहा, ‘‘मुझे खेद है। मुझे गुस्सा नहीं होना चाहिए था और इस तरह का व्यवहार नहीं करना चाहिए था।” केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी ने कहा कि सरकार वर्तमान में उन सभी लोगों को राशन प्रदान कर रही है, जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत पात्र हैं। इसके बाद पीठ ने केंद्र से फैसले और उसके बाद के निर्देशों के अनुपालन का विवरण देते हुए एक हलफनामा दाखिल करने को कहा।

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