नीरज सिसौदिया, बरेली
समाजवादी पार्टी की हाल ही में लखनऊ में हुई समीक्षा बैठक में बरेली के नए जिला अध्यक्ष को लेकर भी चर्चा हुई। बैठक में यह स्पष्ट हो गया कि समाजवादी पार्टी के मौजूदा जिला अध्यक्ष शिवचरण कश्यप की विदाई तय है और जल्द ही बरेली सपा को नया जिलाध्यक्ष मिलने वाला है। लेकिन अगला जिला अध्यक्ष कौन होगा, किस जाति-बिरादरी का होगा, इसे लेकर फिलहाल संशय की स्थिति बनी हुई है।
सूत्र बताते हैं कि पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने समीक्षा बैठक के दौरान जिलाध्यक्ष की दौड़ में शामिल नेताओं को स्पष्ट रूप से कह दिया है कि आप लोग आपसी सहमति से जिला अध्यक्ष चुन लो। अगर ऐसा नहीं कर सकते हो तो फिर जिसे मैं जिला अध्यक्ष बनाऊं उसे स्वीकार करो। मुझे बाद में पार्टी में कोई युद्ध या बगावत नहीं चाहिए।

पार्टी सुप्रीमो के इस फरमान के बाद बरेली में जिलाध्यक्ष की जंग और तेज हो गई है। इस दौड़ में चार प्रमुख चेहरे नजर आ रहे हैं जिनमें तीन पुराने दिग्गज और एक युवा चेहरा शामिल है।
पुराने दिग्गजों में सबसे अधिक चर्चा पूर्व जिलाध्यक्ष और पूर्व राज्यसभा सांसद वीरपाल सिंह यादव की हो रही है। हालांकि, कुछ लोगों का यह मानना है कि लगभग 25 साल तक जिला अध्यक्ष रहने वाले वीरपाल सिंह यादव अब राष्ट्रीय सचिव बन चुके हैं और उनकी उम्र भी अब ऐसी नहीं रही कि वो जिलाध्यक्ष जैसे पद पर पहले की तरह सक्रिय भूमिका निभा सकें। साथ ही पूर्व डिप्टी मेयर डॉ मोहम्मद खालिद जैसे नेता भी अब उनके साथ नहीं रहे। उनका इंतकाल हो चुका है।

दूसरा चेहरा अरविंद यादव का है। अरविंद यादव पूर्व जिला उपाध्यक्ष और मौजूदा राज्य कार्यकारिणी के सदस्य हैं। साफ -सुथरी छवि वाले अरविंद यादव एक दौर में वीरपाल यादव की जिला टीम का हिस्सा थे। बाद में वीरपाल से अनबन होने के कारण उन्हें हटा दिया गया। पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने वीटो पावर का इस्तेमाल कर अरविंद यादव को पार्टी उपाध्यक्ष बनाया था।

अरविंद यादव उस दौर में मुलायम सिंह यादव से जुड़े थे जब समाजवादी पार्टी अस्तित्व में भी नहीं आई थी। वह समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य भी हैं। पार्टी में अपने जीवन के लगभग 32 साल समर्पित करने वाले अरविंद यादव निर्विवाद व्यक्तित्व वाले नेता हैं। उनके खिलाफ कोई आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं है। यादव होने के नाते उनकी दावेदारी मजबूत नजर आती है। इतिहास गवाह है कि जब यादव ने जिले की कमान संभाली थी तो पार्टी जिले की नौ में से सात सीटें जीती थी और जब गैर यादव ने कमान संभाली तो पार्टी नौ में से सात सीटें हारकर दो सीटों पर ही सिमट गई है।

हालांकि, यादवों में वीरपाल सिंह के बाद शुभलेश यादव को जिला अध्यक्ष पद की कमान सौंपी गई थी लेकिन उनके कार्यकाल में पार्टी कोई करिश्मा नहीं दिखा पाई और उन्हें पद से हटा दिया गया था। अब शुभलेश यादव एक बार फिर इस दौड़ में हिस्सा ले रहे हैं।
तीसरा नाम पूर्व मंत्री भगवत सरन गंगवार का है। कुशल नेतृत्वकर्ता भगवत सरन गंगवार की कमजोर कड़ी यह है कि वह पिछले दो बार से लगातार विधानसभा चुनाव हार रहे हैं और दो बार लोकसभा चुनाव भी हार चुके हैं।

सूत्र बताते हैं कि हाल ही में लखनऊ में आयोजित सपा की समीक्षा बैठक में अखिलेश यादव मजाकिया लहजे में भगवत सरन गंगवार से यहां तक कह चुके हैं कि ‘कितनी बार चुनाव हारोगे, क्या हारने का रिकॉर्ड बनाओगे।’ ऐसे में अखिलेश यादव उन्हें जिला अध्यक्ष जैसे जिम्मेदार पद की जिम्मेदारी देंगे, ऐसा मुमकिन नहीं लगता। कुछ सियासी जानकारों का कहना है कि भगवत सरन गंगवार राजनीति का अतीत हो चुके हैं। उन्हें कमान सौंपने से पार्टी में वो उत्साह नहीं आएगा जिसकी आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा से युद्ध के लिए जरूरत है। कुछ नेताओं का कहना है कि जो शख्स अपनी सीट दो बार से लगातार हारता आ रहा है उसे पूरे जिले की सीटें जिताने की जिम्मेदारी सौंपना कहीं से भी समझदारी का फैसला नहीं होगा। सर्वविदित है कि बरेली जिले में जिन नेताओं के नाम पर सियासी गुट चल रहे हैं उनमें से एक भगवत सरन गंगवार भी हैं।
बता दें कि जिले में समाजवादी पार्टी वीरपाल सिंह यादव, भगवत सरन गंगवार, अता उर रहमान और सुल्तान बेग के खेमे में बंटी हुई है।
अब बात करते हैं युवा चेहरे की तो ये चेहरा है युवा नेता कमल साहू का। साहू राठौर समाज के इस तेज तर्रार युवा चेहरे ने ग्रामीण क्षेत्र की राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। वर्ष 2010 से समाजवादी पार्टी में सक्रिय भूमिका निभा रहे कमल साहू सपा सरकार में मुख्यमंत्री के कार्यालय अधिकारी रहे जगजीवन प्रसाद साहू उर्फ बाबूजी के करीबी माने जाते हैं।

बरेली के पूर्व जिला महासचिव और पुराने दिग्गजों में शुमार सपा नेता महेश पांडेय का वरदहस्त भी इन पर है। युवा होने के चलते इनकी सक्रियता अन्य नेताओं की तुलना में कहीं अधिक है लेकिन अनुभव के मामले में ये औरों से कुछ कमजोर नजर आते हैं।
यादव और साहू समाज की जिलाध्यक्ष पद पर दावेदारी इसलिए भी अधिक मजबूत नजर आती है क्योंकि इन दोनों ही समाज से जिले की नौ विधानसभा सीटों में से किसी भी सीट पर टिकट नहीं दिया गया और न ही लोकसभा चुनाव में प्रतिनिधित्व दिया गया। चूंकि यादव समाजवादी पार्टी का पूरे प्रदेश में सबसे बड़ा वोट बैंक है और लगातार 25 वर्षों तक एक यादव ने बरेली जिले में पार्टी को एकजुट रखने का काम किया था। इसलिए यादवों को उम्मीद है कि अपने कोर वोटर्स को मुस्लिमों की तरह मजबूती से साधने के लिए इस बार पार्टी यादव चेहरे को जिले की कमान सौंप सकती है। अब इस बार वीरपाल यादव फिर वापसी करते हैं या फिर अरविंद यादव का 32 साल का संघर्ष रंग लाता है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन एक बात स्पष्ट है कि अखिलेश यादव ने आपसी सहमति से जिला अध्यक्ष चुनने का जो अवसर बरेली के सियासतदानों को सौंपा था, वो आम सहमति तो किसी भी सूरत में बनती नहीं दिख रही। जिला अध्यक्ष का चयन तो खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष को ही करना होगा।
दलितों को भी जिला अध्यक्ष बनने की आस
इस बार बरेली के नए जिला अध्यक्ष का घमासान इस बार बेहद दिलचस्प होने जा रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव का पीडीए का नारा है। पीडीए यानि पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक। अब पीडीए में ‘पी’ और ‘ए’ को तो जिले में बनता सम्मान कई बार मिल चुका है लेकिन ‘डी’ की बारी नहीं आ पाई है। ऐसे में बरेली के दलित नेताओं में भी जिला अध्यक्ष बनने की चाह जन्म लेने लगी है।
