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जमीन आवंटन घोटाले में पुलिस ने मुख्यमंत्री पर दर्ज की एफआईआर, जानिये क्या है पूरा मामला?

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बेंगलुरु/मैसूरू। लोकायुक्त पुलिस ने शुक्रवार को मैसूरू शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) भूखंड आवंटन मामले में अदालत के आदेश के बाद मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की। आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी। इस बीच, कांग्रेस अध्यक्ष एम मल्लिकार्जुन खरगे ने सिद्धरमैया का बचाव करते हुए कहा कि पार्टी उनके साथ खड़ी है और उनका समर्थन करेगी। अपने गृह जिले मैसूरू से तीन दिवसीय दौरे की शुरुआत करने वाले सिद्धरमैया ने दावा किया कि एमयूडीए मुद्दे में उन्हें निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि विपक्ष उनसे “डरा हुआ” है और कहा कि यह उनके खिलाफ इस तरह का पहला “राजनीतिक मामला” है। उन्होंने यह भी दोहराया कि मामले में उनके खिलाफ अदालत द्वारा जांच के आदेश दिए जाने के बाद भी वह इस्तीफा नहीं देंगे, क्योंकि उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया है। उन्होंने कहा कि वह कानूनी रूप से मामला लड़ेंगे। इस मामले में सिद्धरमैया को आरोपी नंबर एक (ए1) बनाया गया है, जबकि उनकी पत्नी बी.एम. पार्वती (ए2), उनके साले मल्लिकार्जुन स्वामी (ए3), देवराजू (ए4) – जिनसे मल्लिकार्जुन स्वामी ने जमीन खरीदकर पार्वती को उपहार में दी थी – और अन्य के नाम मैसूरू में लोकायुक्त पुलिस की प्राथमिकी में दर्ज हैं। बेंगलुरू की एक विशेष अदालत ने बुधवार को इस मामले में सिद्धरमैया के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस जांच का आदेश दिया, जिससे उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की भूमिका तैयार हो गई। विशेष अदालत के न्यायाधीश संतोष गजानन भट का यह आदेश उच्च न्यायालय द्वारा राज्यपाल थावरचंद गहलोत के सिद्धरमैया के खिलाफ जांच करने की मंजूरी को बरकरार रखने के एक दिन बाद आया है। सिद्धरमैया पर एमयूडीए द्वारा उनकी पत्नी बी.एम. पार्वती को 14 स्थलों के आवंटन में अनियमितता के आरोप हैं। पूर्व एवं निर्वाचित सांसदों/विधायकों से संबंधित आपराधिक मामलों से निपटने के लिए गठित विशेष अदालत ने मैसूरू में लोकायुक्त पुलिस को आरटीआई कार्यकर्ता स्नेहमयी कृष्णा द्वारा दायर शिकायत पर जांच शुरू करने का निर्देश देते हुए आदेश जारी किया। न्यायालय ने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 156 (3) (जो मजिस्ट्रेट को संज्ञेय अपराध की जांच का आदेश देने की शक्ति प्रदान करती है) के तहत जांच करने और 24 दिसंबर तक जांच रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश जारी किए। अदालत ने कहा था, “दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) के तहत कार्रवाई करते हुए, क्षेत्राधिकार प्राप्त पुलिस अर्थात पुलिस अधीक्षक, कर्नाटक लोकायुक्त, मैसूरू को मामला पंजीकृत करने, जांच करने और आज से 3 महीने की अवधि के भीतर सीआरपीसी की धारा 173 के तहत अपेक्षित रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है।” इसमें धारा 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र की सजा), 166 (किसी व्यक्ति को चोट पहुंचाने के इरादे से लोक सेवक द्वारा कानून की अवहेलना), 403 (संपत्ति का बेईमानी से दुरुपयोग), 406 (आपराधिक विश्वासघात के लिए सजा), 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति का वितरण), 426 (शरारत के लिए सजा), 465 (जालसाजी के लिए सजा), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), 340 (गलत तरीके से कारावास), 351 (हमला) और भारतीय दंड संहिता की अन्य प्रासंगिक धाराओं के तहत दंडनीय अपराधों को सूचीबद्ध किया गया था। अदालत ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 9 और 13 तथा बेनामी संपत्ति लेनदेन निषेध अधिनियम, 1988 की धारा 3, 53 और 54 तथा कर्नाटक भूमि अधिग्रहण निषेध अधिनियम, 2011 की धारा 3, 4 के तहत दंडनीय अपराधों को भी सूचीबद्ध किया था। स्नेहमयी कृष्णा ने मैसुरू के लोकायुक्त एसपी उदेशा टी जे की ओर से प्राथमिकी दर्ज करने में “देरी” पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि यह उनकी लड़ाई की एक और जीत है। उन्होंने कहा कि वे इस मामले को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे। उन्होंने कहा, “प्रारंभिक चरण में ही प्राथमिकी दर्ज करने में देरी हो जाती है…क्या यह माना जा सकता है कि मुख्यमंत्री के खिलाफ ईमानदार जांच होगी? नहीं। इसलिए हम इस मामले को सीबीआई को सौंपने के लिए लड़ेंगे।” सिद्धरमैया तीन दिवसीय दौरे पर मैसूरू पहुंचे जहां पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने शक्ति और समर्थन प्रदर्शित करते हुए उनका भव्य स्वागत किया। विपक्षी भारतीय जनता पार्टी ने उनके इस्तीफे की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया; कई भाजपा कार्यकर्ताओं को पुलिस ने तब खदेड़ दिया जब वे उस बैठक स्थल की ओर मार्च करने की कोशिश कर रहे थे जिसमें मुख्यमंत्री भाग लेने वाले थे। इस्तीफे की मांग को लेकर भाजपा के प्रदर्शन के बारे में मुख्यमंत्री ने कहा, “मैं क्यों इस्तीफा दूं? अगर किसी ने कुछ गलत किया है तो उसे इस्तीफा देना चाहिए। जब हम कह रहे हैं कि कुछ गलत नहीं हुआ है तो फिर इस्तीफे का सवाल कहां उठता है?” खरगे ने भी सिद्धरमैया के इस्तीफे की भाजपा की मांग को खारिज करते हुए कहा कि ‘‘ना तो आरोपपत्र दाखिल किया गया है और ना ही उन्हें दोषी ठहराया गया है। कानून को अपना काम करने दीजिए और जब कोई स्थिति आएगी तो पार्टी उस समय इसकी समीक्षा करेगी।” खरगे ने भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री के पद पर बने रहने के सिद्धरमैया के नैतिक अधिकार पर सवाल उठाए जाने के संबंध में कहा, ‘‘जब गोधरा कांड हुआ था, तो क्या (नरेन्द्र) मोदी जी ने (गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री के पद से) इस्तीफा दे दिया था? उस समय उनके खिलाफ भी कई मामले लंबित थे, यहां तक ​​कि शाह (केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह) के खिलाफ भी।” उन्होंने कहा कि कानून को अपना काम करने दीजिए। खरगे ने कहा, ‘‘अब वहां कुछ भी नहीं है, (लेकिन) हर दिन मैं देख रहा हूं कि एमयूडीए, एमयूडीए। करोड़ों रुपये कई उद्योगपति निगल गए, उनके 16 लाख करोड़ रुपये के कर्ज माफ कर दिए गए और अब आप एक छोटे से मुद्दे को लेकर लड़ रहे हैं। इसके अलावा न तो आरोपपत्र दाखिल किया गया है और ना ही वह दोषी ठहराए गए हैं। प्रतिदिन यही खबर है। मैं इन सब चीजों को देखकर तंग आ चुका हूं। एमयूडीए भूखंड आवंटन मामले में, यह आरोप लगाया गया है कि सिद्धरमैया की पत्नी को मैसुरु के एक पॉश इलाके में प्रतिपूरक भूखंड आवंटित किया गया जिसका मूल्य एमयूडीए द्वारा अधिग्रहीत की गई उनकी भूमि की तुलना में अधिक था।

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