नीरज सिसौदिया, बरेली
उत्तर प्रदेश चुनाव में अभी डेढ़ साल का समय है, लेकिन बरेली कैंट की गलियों में राजनीतिक हलचल पहले ही चरम पर है। कोई दीपावली गिफ्ट के जरिए दिल जीतने में लगा है, तो कोई सामाजिक सर्वे के माध्यम से अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत कर रहा है। भाजपा में जहां मौजूदा विधायक संजीव अग्रवाल और मेयर उमेश गौतम के बीच टिकट को लेकर अप्रत्यक्ष मुकाबला दिख रहा है, वहीं समाजवादी पार्टी में डॉ. अनीस बेग, इं. अनीस अहमद खां और राजेश अग्रवाल तीनों अपने-अपने मिशन को अंजाम देने में जुटे हैं।
वर्ष 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के लिए करो या मरो की स्थिति वाले होने वाले हैं। ऐसे में बरेली कैंट विधानसभा सीट भी अब सियासी गर्मी महसूस करने लगी है। यहां मुकाबला केवल दलों के बीच नहीं, बल्कि दलों के अंदर भी सघन होता जा रहा है। भाजपा और सपा दोनों ही दलों के भीतर टिकट को लेकर खींचतान तेज है और हर कोई अपने-अपने मिशन में पूरी ताकत झोंक चुका है। भाजपा खेमे से मौजूदा विधायक संजीव अग्रवाल, मेयर उमेश गौतम और उनके पुत्र पार्थ गौतम चुनावी जमीन तैयार करने में लगे हुए हैं, तो समाजवादी पार्टी की ओर से डॉ. अनीस बेग, इंजीनियर अनीस अहमद खां और पार्षद राजेश अग्रवाल अपनी-अपनी सियासी सक्रियता से जनता का दिल जीतने की कोशिश में हैं।
दीपावली का त्योहार नजदीक है और यह त्योहार केवल रोशनी का नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से जनसंपर्क का भी अवसर बन चुका है। हिंदू समाज को साधने का इससे बेहतर मौका फिलहाल किसी के पास नहीं है। यही वजह है कि बरेली कैंट सीट के संभावित उम्मीदवार गरीबों, जरूरतमंदों और मध्य वर्ग के लोगों तक पहुंच बनाने के लिए दीपावली के बहाने सेवा और उपहार वितरण के अभियान में जुट गए हैं।
पिछले कुछ दिनों में कई नेताओं ने दीपावली की खुशियां साझा की हैं। इनमें भाजपा विधायक संजीव अग्रवाल, सपा के डॉ. अनीस बेग, राजेश अग्रवाल, भाजपा के मेयर उमेश गौतम और उनके पुत्र पार्थ गौतम शामिल हैं। इन नेताओं ने अपने-अपने तरीके से गरीबों तक पहुंचने का प्रयास किया है, कहीं मिठाइयां बांटी जा रही हैं, कहीं कपड़े, कहीं दीपक और सजावट का सामान।
भाजपा खेमे में हालात दिलचस्प हैं। मौजूदा विधायक संजीव अग्रवाल लगातार क्षेत्र में सक्रिय हैं और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है। उनके समर्थकों का दावा है कि पार्टी आलाकमान किसी भी सूरत में उनका टिकट नहीं काटेगा।

दूसरी ओर, बरेली के मेयर उमेश गौतम की महत्वाकांक्षा भी किसी से छिपी नहीं है। वह कैंट या बिथरी चैनपुर सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि उनके बेटे पार्थ गौतम भी अब सक्रिय राजनीति में कदम बढ़ा चुके हैं। पार्थ एक एनजीओ चलाते हैं जो शिक्षा, स्वच्छता और महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों पर काम करता है। उनके अधिकतर सामाजिक कार्य इसी एनजीओ के बैनर तले आयोजित किए जाते हैं। हाल ही में उन्होंने एक पॉडकास्ट में कहा था कि “अगर जनता की मांग होगी तो मैं चुनाव जरूर लड़ूंगा, भले ही निर्दलीय ही क्यों न लड़ना पड़े।” यह बयान सियासी गलियारों में हलचल पैदा कर गया था।

पार्थ गौतम की लोकप्रियता युवा वर्ग में बढ़ रही है और दीपावली के मौके पर वह गरीबों के बीच जाकर उपहार वितरण कर रहे हैं। उनके ये कदम यह संकेत दे रहे हैं कि वह राजनीतिक पिच पर उतरने की पूरी तैयारी में हैं। पार्टी में यह चर्चा आम है कि मेयर और पार्थ मिलकर दो मोर्चों पर काम कर रहे हैं- एक तरफ संगठन में पकड़ मजबूत करना और दूसरी तरफ जनसंपर्क के माध्यम से व्यक्तिगत तौर पर जनता का समर्थन हासिल करना।
उधर, कांग्रेस के दिग्गज नेता और नेशनल शूटिंग चैंम्पियन नवाब मुजाहिद हसन खां अपने अंदाज में सियासी बंदूक चलाते नजर आ रहे हैं। वह अंदरखाने खामोशी से तैयारी में जुटे हुए हैं। बरेली कैंट सीट पर वह सबसे बड़ा राजनीतिक मुस्लिम चेहरा हैं।

समाजवादी पार्टी के लिए बरेली कैंट विधानसभा सीट पर स्थिति बेहद दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण दोनों है। यहां तीन प्रमुख चेहरे तेजी से उभर रहे हैं- डॉ. अनीस बेग, इंजीनियर अनीस अहमद खां और राजेश अग्रवाल। तीनों की अपनी-अपनी पकड़, अपनी शैली और अपनी सोच है। डॉ. अनीस बेग पिछले लगभग तीन साल से लगातार हिन्दू समाज में अपनी पकड़ मजबूत करने की दिशा में काम कर रहे हैं। उनका मकसद यह साबित करना है कि सपा के मुस्लिम चेहरे भी सबके नेता हैं, केवल किसी विशेष समुदाय के नहीं। वह हर साल दीवाली मेले में स्टॉल लगाते हैं, गरीबों को दीपावली गिफ्ट देते हैं और इस बार तो सुभाष नगर में रामलीला के मंच पर भी दिखे थे।

भगवान वाल्मीकि शोभायात्रा में उनकी मौजूदगी ने भी दलित समाज के बीच उनकी लोकप्रियता को नई ऊंचाइयां दीं। डॉ. बेग का संदेश साफ था, “मैं केवल एक समुदाय नहीं, पूरे समाज का प्रतिनिधि हूं।” उनके करीबी बताते हैं कि दीपावली पर भी वह दलित और पिछड़े वर्ग के इलाकों में पहुंचकर खुशियां बांटने की योजना बना रहे हैं। अनीस बेग का फोकस इस समय “समाजवादी सेक्युलर छवि” को ज़मीन पर उतारने पर है, ताकि विरोधियों द्वारा मुस्लिम नेताओं के खिलाफ फैलाए गए भ्रम को तोड़ा जा सके।
इंजीनियर अनीस अहमद खां भी कैंट क्षेत्र में चुनाव की तैयारियों में लगे हैं।

सपा के पार्षद और शहर विधानसभा सीट से पूर्व प्रत्याशी राजेश अग्रवाल भी मैदान में पूरी मजबूती से डटे हैं। उनकी छवि धर्मनिरपेक्षता के साथ-साथ आंदोलनकारी और धार्मिक आयोजनों में बढ़-चढ़कर भागीदारी निभाने वाले नेता की है। वह रामलीला मंचन, भंडारे और वाल्मीकि शोभायात्रा जैसे आयोजनों में हर साल सक्रिय रहते हैं। हाल ही में उन्होंने भगवान वाल्मीकि शोभायात्रा के दौरान भव्य भंडारे का आयोजन किया था।

बरेली में हाल में हुई हिंसा के बाद सामाजिक माहौल कुछ संवेदनशील हुआ था। इस बीच सपा के मुस्लिम नेताओं के लिए चुनौती यह बन गई कि वे अपनी छवि हिन्दू विरोधी होने के आरोपों से बाहर निकालें। डॉ. अनीस बेग जैसे नेताओं ने इस चुनौती को सहर्ष स्वीकार किया और मोहब्बत एवं भाईचारे का संदेश दिया है। उन्होंने मंदिरों, रामलीला आयोजनों और दलित बस्तियों में जाकर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। इस रणनीति से न केवल सपा के भीतर उनकी स्वीकार्यता बढ़ रही है, बल्कि आम जनता के बीच भी उनका प्रभाव बढ़ा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर सपा 2027 में बरेली कैंट से कोई मजबूत हिन्दू-मुस्लिम संयोजन वाला प्रत्याशी उतारती है, तो भाजपा को कड़ी टक्कर मिल सकती है।
टिकट से पहले अंदरूनी जंग
हालांकि, यह भी सच है कि अभी तक चुनावी मैदान में उतरने से पहले इन सभी नेताओं को टिकट की लड़ाई लड़नी होगी। भाजपा और सपा दोनों में टिकट का समीकरण केवल लोकप्रियता पर नहीं, बल्कि जातीय और संगठनात्मक समीकरणों पर भी निर्भर करता है। भाजपा में यह माना जा रहा है कि अगर पार्टी ने संजीव अग्रवाल को दोबारा मौका दिया, तो उमेश गौतम और पार्थ गौतम को फिलहाल इंतजार करना पड़ सकता है। वहीं, अगर भाजपा शीर्ष नेतृत्व किसी बदलाव पर विचार करता है, तो पार्थ या मेयर उमेश गौतम के नाम भी गंभीरता से देखे जा सकते हैं।
सपा में भी टिकट की लड़ाई रोचक होगी। अनीस बेग के पास संगठन और जनसंपर्क दोनों की मजबूती है, जबकि इंजीनियर अनीस अहमद खां का भी अपना आधार मजबूत करने में लगे हैं। वहीं, राजेश अग्रवाल का फायदा यह है कि वह लगातार क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं के साथ जुड़े हुए हैं और पार्टी के विश्वसनीय चेहरे हैं।
कुल मिलाकर, यह तय है कि 2027 के चुनाव में बरेली कैंट विधानसभा सीट पर मुकाबला बेहद दिलचस्प और कांटे का होने जा रहा है। विरोधी पार्टियों के बीच जंग से पहले, यह जंग अपने-अपने दलों के अंदर ही तय करेगी कि किसे जनता के बीच जाने का टिकट मिलेगा और कौन केवल उम्मीदों तक सीमित रह जाएगा।





