डा. मोहम्मद खालिद बरेली की राजनीति का एक जाना पहचाना चेहरा हैं. एक दर्जी के घर में जन्मे डा. खालिद ने अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर बरेली की सियासत में अपना एक अलग मुकाम बनाया है. कभी मुलायम सिंह यादव के करीबियों में शुमार रहे डा. खालिद बरेली के डिप्टी मेयर भी रह चुके हैं. पार्टी ने उन्हें प्रदेश सचिव के पद से भी नवाजा. डा. खालिद बरेली की एकमात्र ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें दस वर्षों तक सपा के महानगर अध्यक्ष पद पर सुशोभित होने का गौरव हासिल है. लगभग साल भर पहले जब सपा का बिखराव हुआ तो उन्होंने शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को चुना, इसकी क्या वजह रही? अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत उन्होंने कब की? कैंट विधानसभा सीट से वह पहले भी प्रबल दावेदार रह चुके हैं. क्या आगामी विधानसभा चुनाव में वह कैंट सीट से मैदान में उतरेंगे? डा. खालिद पिछले तीन दशक से बरेली की राजनीति का हिस्सा हैं, तब और अब की राजनीति में वह क्या बदलाव महसूस करते हैं? इन सभी पहलुओं पर उनसे खुलकर बात हुई. पेश हैं नीरज सिसौदिया से डा. मोहम्मद खालिद की बातचीत के प्रमुख अंश…
सवाल : राजनीति में आना कब और कैसे हुआ? क्या आपका कोई पॉलिटिकल बैकग्राउंड रहा है?
जवाब : मेरी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं रही है. मेरा पिता एक दर्जी थे और टेलरिंग की दुकान करते थे. मेरा बचपन बेहद गरीबी और अभावों भरा रहा. शायद यही वजह रही कि मैंने राजनीति को चुना और छात्र जीवन से ही अपने राजनीतिक सफर का आगाज किया.
सवाल : राजनीति में आपको कितना समय हो गया? किस तरह से ये सफर आगे बढ़ता गया?
जवाब : मैंने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत बरेली कॉलेज से की थी. उन दिनों आजकल की तरह छात्र संघ चुनाव तो होते नहीं थे तो हमने खुद ही छात्र समितियां बना ली थी और मैं उस समिति का अध्यक्ष बना. ये बात वर्ष 1988 की है. इसके बाद मैं मोमिन कांफ्रेंस से जुड़ा. जनता दल का भी हिस्सा रहा. फिर समाजवादी पार्टी बनी और मैं समाजवादी पार्टी का हिस्सा बन गया.
सवाल : समाजवादी पार्टी को आपने अपनी जिंदगी के लगभग दो दशक दिए. बतौर महानगर अध्यक्ष आपने दस साल तक पार्टी की सेवा की. ऐसे में सपा छोड़कर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में शामिल होने का फैसला क्यों लिया?
जवाब : अखिलेश यादव की नीतियां और उनका स्वभाव स्वीकार योग्य नहीं था. उनके सलाहकार उन्हें गुमराह कर रहे हैं जिसके चलते अखिलेश अपने चाचा का ही विरोध करने लगे. अखिलेश ने मुख्यमंत्री रहते हुए प्रदेश में इतने काम कराए लेकिन फिर भी वह हार गए. इसकी सबसे बड़ी वजह उनका मिस मैनेजमेंट और सलाहकार रहे. अगर वह बड़े बुजुर्गों की सलाह लेकर चुनाव लड़ते तो सपा की आज ऐसी दुर्दशा नहीं होती जो अब हो गई है. अखिलेश ने न तो अपने पिता को सम्मान दिया और न ही अपने चाचा को जबकि इन्हीं दोनों लोगों ने समाजवादी पार्टी बनाई थी और पार्टी को इस मुकाम तक पहुंचाया था. काफी समझौता करने के बाद भी जब शिवपाल जी को वो सम्मान नजर नहीं आया तो उन्होंने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनाई. जो इंसान अपने पिता व चाचा का सम्मान नहीं कर सकता उसे मैं ठीक नहीं मानता. इसलिए मैंने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को चुना. मैंने ही नहीं बल्कि वीरपाल सिंह यादव जैसे बरेली के कई नेता प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का हिस्सा बन गए. प्रदेश के जितने भी वरिष्ठ और दिग्गज नेता थे, वे सभी अब शिवपाल जी के साथ हैं और अखिलेश के साथ बच्चा पार्टी है जिनमें चाणक्य दिमाग नहीं है जो सही से गाइडलाइन दे सकें.
सवाल : आप सपा से चुनाव भी लड़ चुके हैं? डिप्टी मेयर भी रहे?
जवाब : जी बिल्कुल. वर्ष 1990 में मैंने पहली बार सभासद का चुनाव लड़ा. 1992 में जब आईएस तोमर मेयर थे तो मुझे डिप्टी मेयर बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. उस वक्त प्रदेश में सपा की सरकार थी और मैं पार्टी का महानगर अध्यक्ष भी था. नेता जी के सहयोग के कारण मैं शहर का विकास कराने में सक्षम हो पाया.
सवाल : आपने राजनीति को अपनी जिंदगी के 32 साल दिए हैं? क्या आपको लगता है कि शहर का विकास उस स्तर पर किया गया है जिस स्तर पर होना चाहिए था?
जवाब : जी बिल्कुल नहीं. नगर निगम के दायरे में आने वाले इलाकों की बात करें तो बरेली का विकास बेहतर तरीके से किया जा सकता था लेकिन नहीं किया गया. जनप्रतिनिधियों की नाकामी के चलते अफसरशाही हावी होती गई और म्युनिसिपल कारपोरेशन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई. आज पूरा शहर बदहाल है.
सवाल : 1992 के बाद आपने कोई चुनाव लड़ा या नहीं? आप कैंट विधानसभा सीट से सपा के प्रबल दावेदार रह चुके हैं. क्या वर्ष 2022 में विधानसभा के चुनावी मैदान में उतरेंगे?
जवाब : वर्ष 1992 के बाद मैंने कोई चुनाव नहीं लड़ा लेकिन मैं राजनीति में हमेशा सक्रिय रहा. उसके बाद मैंने मेयर का टिकट मांगा लेकिन महिला सीट होने के कारण मैं चुनाव नहीं लड़ सका. फिर मैंने कैंट विधानसभा सीट से दावेदारी की. सबकुछ फाइनल हो चुका था. माननीय मुलायम सिंह जी ने मुझे भरोसा भी दिलाया लेकिन ऐन वक्त पर किसी ने पार्टी हाईकमान को गुमराह कर दिया और बहुजन समाज पार्टी से आए फहीम साबिर साहब को टिकट दे दिया गया. वह भी बड़ा दुर्भाग्य पूर्ण दिन था कि साबिर साहब के पिता अशफाक साहब भोजीपुरा से बसपा से चुनाव लड़ रहे थे और साबिर यहां सपा से चुनाव लड़ रहे थे. इसका नतीजा यह हुआ कि जनता ने उन्हें वोट नहीं दिया. वह चुनाव हार गए और हम चुनाव लड़ नहीं सके. अब पार्टी में संघर्षशील हूं और जब भी पार्टी मौका देगी तो कैंट विधानसभा से चुनाव लड़ूंगा और जनता मौका देगी तो जनता के लिए काम करूंगा.
सवाल : कैंट विधानसभा सीट से आप चुनाव लड़ना चाहते हैं. यहां से अब जो विधायक चुुने गए उनके बारे में क्या कहेंगे? आपको विधायक बनने का मौका मिलेगा तो आपकी प्राथमिकता क्या होगी?
जवाब : देखिये, कैंट विधानसभा क्षेत्र का यह दुर्भाग्य रहा कि अब तक यहां से जो भी प्रत्याशी लड़ा या विधायक बना तो उसने सिर्फ धर्म की राजनीति की. हिन्दू हुआ तो उसने हिन्दुओं की बात की और मुस्लिम हुआ तो उसने सिर्फ मुस्लिमों की बात की. विकास उनकी प्राथमिकता में कभी शामिल नहीं हुआ. यही वजह रही कि हमारा कैंट क्षेत्र विकास की दौड़ में बहुत पीछे रह गया. वर्तमान में यहां से भाजपा के विधायक हैं जो मंत्री भी रहे लेकिन बाद में उन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया. फिर पार्टी का कोषाध्यक्ष बना दिया गया जिसके कारण अब वह इलाके की बदहाली पर ध्यान नहीं दे पाते. यहां के सुभाष नगर इलाके में लड़कियों के लिए कॉलेज की बेहद जरूरत थी, यह चुनावी मुद्दा भी बना लेकिन कोई भी जनप्रतिनिधि यहां कालेज खुलवाना तो दूर अच्छे स्कूल तक नहीं खुलवा सका. इसी तरह पुराने शहर की बात करें तो जगतपुरा में भी एक कॉलेज बेहद जरूरी है. यहां की लड़कियां मजबूरन इस्लामियां जाती हैं लेकिन इस तरफ किसी का ध्यान नहीं है. सड़क, अतिक्रमण, नालियां जैसे कई मुद्दे हैं जिनके लिए मैं प्रयासरत हूं.
सवाल : शहर का सबसे बड़ा मुद्दा आप किसे मानते हैं?
जवाब : मेरी नजर में सबसे बड़ा मुद्दा बदहाल यातायात व्यवस्था है. शहर के प्रमुख चौराहों को देख लीजिए. कुतुबखाना हो, चौपुला हो, रोडवेज हो या कोई और, यातायात व्यवस्था का बुरा हाल है. अगर आगे आप बढ़ते हैं डीडीपुरम की तरफ भी तो वहां भी बुरा हाल होने लगा है. अगर यातायात व्यवस्था अच्छी कर दी जाए. शहर की सड़कें अच्छी कर दी जाएं तो हमारा बरेली सबसे अच्छा शहर हो सकता है. प्रदेश और देश की राजधानी के बीच होने के नाते बरेली का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए था जो कि नहीं दे पा रही है.
सवाल : आपने राजनीति को अपनी जिंदगी की 32 कीमती साल दिए है. तब और अब की राजनीति में क्या फर्क महसूस करते हैं?
जवाब : तब और अब की राजनीति में बहुत बदलाव आ चुका है. आज की राजनीति में पैसा हावी हो चुका है जबकि पहले डिगनिटी को महत्व दिया जाता था. पदाधिकारी को महत्व दिया जाता था. आज अगर कोई छोटा नेता भी है और उसके पास पैसा है तो वह पैसे के दम पर टिकट भी ले आता है, अपनी बात भी मनवा लेता है. राजनीतिक मूल्य अब खत्म होते जा रहे हैं.