समाज को दिशा देने में साहित्य की भूमिका बेहद अहम होती है. कभी कविताओं से, कभी कहानियों से तो कभी साहित्य की अन्य विधाओं के माध्यम से एक साहित्यकार अपनी बात को बड़ी ही सहजता से दुनिया को समझाता है और सही व गलत का फर्क भी बताता है. बात जब किसी अहम मसले पर कटाक्ष की आती है तो हास्य व्यंग्य के आगे सारी विधाएं बौनी नजर आती हैं. विरले ही होते हैं जो इस विधा में पारंगत होते हैं. ऐसी ही एक शख्सियत हैं हास्य कवि उमेश त्रिगुणायत. जिन्हें साहित्य जगत में ‘अंकल’ के नाम से भी जाना जाता है. त्रिगुणायत का जन्म-ग्राम माधोटांडा, जनपद-पीलीभीत में 4 मई वर्ष 1976 को पिता राम सेवक त्रिगुणायत ‘सेवक’ एवं माता राजरानी के मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ।
अपनी शिक्षा पूरी करने के पश्चात वह सनातन धर्म बांके बिहारी राम इंटर कॉलेज, पीलीभीत में वर्तमान में लिपिक पद पर सेवारत हैं।
इनके पिता ख्याति प्राप्त साहित्यकार रहे। इन्हें लेखन की प्रेरणा पिता से ही प्राप्त हुई और अनेक विधाओं में साहित्यिक सृजन किया है। इनकी रचनाओं का प्रकाशन अनेक स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में हो चुका है।
त्रिगुणायत को राजभाषा सम्मान, काव्य गौरव सम्मान एवं काव्य श्री सम्मान के साथ ही अनेक साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा विभिन्न उपाधियों से भी अलंकृत किया जा चुका है।
साहित्यिक क्षेत्र में ‘अंकल’ के नाम से प्रसिद्ध उमेश त्रिगुणायत नियमित तीन वर्षों से काव्य मंचों पर अपनी बेहतरीन प्रस्तुति से स्थान बना चुके हैं। साथी कवियों ने उन्हें ‘अंकल’ उपनाम दिया क्योंकि वह अपने साथियों का समय-समय पर मार्गदर्शन करते रहते थे। इनकी हास्य रस प्रधान रचनाएं आज के भौतिकवादी युग में प्रतिस्पर्धा के बीच अनेक समस्याओं से ग्रसित आम जनमानस के लिए आनंददायक पल प्रदान करने का कार्य करती हैं। अपने हास्य व्यंग्य से वह सामाजिक विसंगतियों पर कुठाराघात करने में सिद्धहस्त हैं। इसके लिए साहित्य साधना ही सच्ची मानव सेवा है।
वर्तमान में वह बरेली की स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कालोनी में निवास कर रहे हैं। प्रस्तुत है इनकी ही एक रचना-
घनाक्षरी छंद
मास्क लगाने के हैं फायदे अनेक यार,
फ़ालतू की नापसंद यारी से बचाएगा।
पान, पीले दांत, सूजे गाल को छुपाए और,
पिछली उधारी देनदारी से बचाएगा।
प्रेयसी से बेहिचक होगा प्यार इज़हार,
प्यार की तमाम दुश्वारी से बचाएगा।
और इसका है एक अंतिम विशेष लाभ,
कोविड सी इस महामारी से बचाएगा।
प्रस्तुति -उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट, साहित्यकार