दिल्ली देश

क्या केजरीवाल करेंगे कांग्रेस मुक्त महागठबंधन का नेतृत्व?

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नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी दलों में जोड़तोड़ का सिलसिला तेज हो गया है| एक तरफ भारतीय जनता पार्टी ने जम्मू कश्मीर में अप्रत्याशित तरीके से महबूबा मुफ्ती की पीडीपी के साथ गठबंधन तोड़ दिया है तो वहीं दूसरी तरफ मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने हर सीट पर अपना अलग उम्मीदवार उतारने का निर्णय लिया है| ममता बनर्जी, एन. चंद्रबाबू नायडू, जनता दल यूनाइटेड और केसीआर भी कांग्रेस से दूरियां बना रहे हैं| जनता दल सेकुलर ने कर्नाटक में कांग्रेस के साथ गठबंधन तो कर लिया लेकिन मुख्यमंत्री कांग्रेस नहीं बना सकी जबकि कांग्रेस को जनता दल सेकुलर से अधिक सीटें प्राप्त हुई थीं| दिल्ली में आम आदमी पार्टी पहले ही अकेले मोर्चा संभाले हुए है| ऐसे में कांग्रेस मुक्त महागठबंधन की संभावनाएं और प्रबल होती जा रही हैं|
दरअसल, आजादी से लेकर अब तक देश की सत्ता पर सिर्फ कांग्रेस और भाजपा का ही राज रहा है| अब इन दोनों दलों में से कांग्रेस बहुत ही दयनीय स्थिति में पहुंच चुकी है| गिनी-चुनी राज्यों को छोड़ दें तो कांग्रेस विपक्ष में बैठने के लायक भी नहीं रह सकी है| वक्त के साथ राजनीतिक परिस्थितियां भी बदल रही हैं| पश्चिम बंगाल में वाम दल का 34 वर्षों का शासन खत्म कर ममता बनर्जी एक बार सत्ता में आई तो दूसरी बार भी सत्ता हासिल करने में कामयाब रहीं| देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश से भी कांग्रेस का लगभग सफाया हो चुका है| दिल्ली में आम आदमी पार्टी में तो कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ कर दिया| मध्यप्रदेश में भी डेढ़ दशक से कांग्रेस सत्ता से बाहर है| और राजस्थान में भी विपक्ष में ही बैठी है| दक्षिण में कांग्रेस अंतिम सांसें गिन रही है| वहीं, पूर्वोत्तर और उत्तर भारत में भी उसकी स्थिति बेहद खराब है|
पिछले दिनों देश की राजधानी में एक नया सियासी समीकरण देखने को मिला| दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल एलजी हाउस पर धरने पर बैठे थे और केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन, कर्नाटक के मुख्यमंत्री HD कुमार स्वामी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने अरविंद केजरीवाल को समर्थन देने का ऐलान करते हुए उनके धरने को जायज बताया| यह सभी वह राजनीतिक दल हैं जो कांग्रेस मुक्त महागठबंधन अथवा तीसरा मोर्चा चाहते हैं| बात अगर बिहार की करें तो सदियों पहले ही महागठबंधन का हिस्सा ना बने लेकिन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन जरूर इसका हिस्सा बन सकता है| इन चार मुख्य मंत्रियों द्वारा केजरीवाल को समर्थन देना एक नए सियासी बदलाव की ओर इशारा करता है| केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखिया होने के साथ ही साफ सुथरी छवि वाले नेता भी हैं| महागठबंधन को जिस सर्वसम्मत नेतृत्व की जरूरत है अरविंद केजरीवाल वह नेतृत्व दे सकते हैं| वही उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन ने नए समीकरणों को जन्म दिया है| अलग-अलग भले ही यह दोनों सियासी दल सत्ता की सीढ़ियां ना चढ़ सकें लेकिन हाथी अगर साइकिल की सवारी करने लगे तो दिल्ली दूर नहीं| पिछले दिनों हुए उपचुनाव में दोनों की जुगलबंदी नहीं यह साबित भी कर दिया है|


संसद का रास्ता जिन राज्यों से होकर गुजरता है उनमें सबसे अहम उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और राजस्थान हैं| इनमें यूपी-बिहार और पश्चिम बंगाल में कांग्रेस नाम मात्र की रह गई है| मध्यप्रदेश में वह डेढ़ दशक से सत्ता से बाहर है और राजस्थान में भी विपक्ष में ही बैठी हुई है| ऐसे में अगर कांग्रेस महागठबंधन का हिस्सा नहीं बनती है तो भी महागठबंधन को कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला| अगर अरविंद केजरीवाल महागठबंधन का नेतृत्व करते हैं तो निश्चित तौर पर भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं क्योंकि केजरीवाल की खामियां गिनाना के लिए भाजपा के पास कुछ नहीं है| उपलब्धियों के नाम पर केजरीवाल ने दिल्ली में बहुत कुछ हासिल किया है और दिल्ली को बहुत कुछ दिया है| बिजली हाफ और पानी माफ केजरीवाल का सबसे बड़ा हथियार है| लोकसभा चुनाव आते आते उम्मीद की जा रही है कि केजरीवाल के खाते में स्टेप टू डोर राशन डिलीवरी सिस्टम भी आ जाएगा| दिल्ली के सरकारी स्कूलों की व्यवस्था में जो सुधार हुआ है उसकी गवाही गत दिनों आए CBSE बोर्ड के 10वीं और 12वीं के परीक्षा परिणाम चीख-चीखकर दे रहे हैं| दिल्ली के सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था निजी स्कूलों से भी बेहतर हो चुकी है| अब दिल्ली सरकार इनमें अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं प्रदान करने की तैयारी कर रही है| जिन कार्यों में केजरीवाल नाकाम हुए उनकी नाकामियां भी केंद्र सरकार की ही देन हैं| ऐसे में महागठबंधन अगर अरविंद केजरीवाल को नेतृत्व सौंपता है तो गठबंधन की जीत की राह आसान हो सकती है| इससे एक तीर से दो निशाने साधे जा सकते हैं| पहला यह कि आजादी से लेकर अब तक देश की सत्ता पर दो दलों का वर्चस्व खत्म हो जाएगा| दूसरा यह कि केंद्र पर काबिज सरकार हर राज्य के प्रति जवाबदेह होगी| तीसरा जनता को भी कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी का विकल्प मिल जाएगा| इस गठबंधन में सबसे अहम रोल मायावती और मुलायम सिंह का होगा क्योंकि मायावती पहले भी प्रधानमंत्री बनने की अपनी महत्वकांक्षा जाहिर कर चुकी है और समाजवादी पार्टी के मुखिया भी इसमें पीछे नहीं रहे| अगर निजी महत्वाकांक्षा से ऊपर उठकर यह दोनों दल महागठबंधन का हिस्सा बनते हैं तो निश्चित तौर पर 2019 में अरविंद केजरीवाल देश का नेतृत्व करते नजर आएंगे|

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