लोग दिल में भी दिमाग लिये घूमते हैं
क्या कहें उजाले में चिराग लिये घूमते हैं
दर्द होता नहीं है सीने में दर्द देख कर
जुबान पर भी अपने आग लिये घूमते हैं
मोहब्बत की तिजारत का करते कारोबार
दिल दिमाग में तो द्वेष राग लिये घूमते हैं
जहर बुझा सा हो गया अब यह आदमी
लगता कि हाथों में नाग लिये घूमते हैं
कुछ को हँसती खेलती जिंदगी रासआती नहीं
जवानी के दिनों में ही वैराग लिये घूमते हैं
खुद का ईमानदारी पर यकीं रहा नहीं उनका
दूसरों की बेईमानी का सुराग लिये घूमते हैं
*हंस* डर तो लगता सफेदपोश खद्दर नशीनों से
तन बदन पर हज़ारों ही दाग लिये घूमते हैं
-एस के कपूर “श्री हंस”
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