विचार

मतदान का दिन–लोकतंत्र का महापर्व 

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हमारे देश में लोकतंत्र शासन प्रणाली लागू है ।भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है ।लोकतंत्र शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है लोक +तन्त्र । लोक का अर्थ है जनता और तन्त्र का अर्थ है शासन ।इस प्रकार लोकतंत्र जनता द्वारा जनता का शासन है ।लोकतंत्र में जनता अपनी पसंद की सरकार का चुनाव स्वयं करती है ।लोकतंत्र में प्रत्येक मतदाता को अपने मत का प्रयोग करने का अधिकार है ।
लोकतंत्र में एक एक मत महत्वपूर्ण है ।कभी कभी तो एक मत से प्रत्याशी हार जाता है या जीत जाता है ।इतिहास इस बात का साक्षी है कि सदन में शकिती परीक्षण के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार एक मत से गिर गई थी ।इसलिए प्रत्येक मतदाता को अपने मत का प्रयोग अवश्य करना चाहिए ।
फरवरी-मार्च में उत्तर प्रदेश सहित देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इन चुनावों में सभी मतदाता जाति, पंथ, सम्प्रदाय एवं धर्म से ऊपर उठकर निष्पक्ष रूप से अपने मताधिकार का प्रयोग करें इस प्रकार के वातावरण का निर्माण करना आवश्यक है।
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है। मतदान लोकतन्त्र की आत्मा है। इसलिए स्वस्थ लोकतन्त्र के लिए यह आवश्यक है कि चुनाव में मतदान का प्रतिशत बढ़े। इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि सरकार एवं सामाजिक संस्थाओं के तमाम प्रयासों के वाबजूद अभी भी बड़ी संख्या में मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं करते हैं। हैरानी की बात यह है कि मतदान नहीं करने वालों में शिक्षित और अशिक्षित दोनों प्रकार के मतदाता शामिल हैं। अक्सर शहरी क्षेत्रों में मतदान का प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में कम रहता है जो गम्भीर चिन्ता का विषय है।जब शिक्षित और अच्छे लोग मतदान ही नहीं करेंगे तो फिर अच्छी सरकार कैसे बनेगी ।
लोकतन्त्र में जनता का मत ही उसका सबसे बड़ा अस्त्र होता है। चुनाव में मतदाताओं का मत ही तय करता है कि चुनाव के बाद सत्ता की बागडोर किसके हाथ रहेगी। इस सबके बावजूद देश में बड़ी संख्या में लोग.चुनाव के दिन मतदान करने के प्रति उदासीन रहते हैं जिससे किसी भी चुनाव में शत प्रतिशत मतदान का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता है। आंकड़े बताते हैं कि किसी भी चुनाव में मतदान का आंकड़ा 70 प्रतिशत को पार नहीं कर पाता है। इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि मतदान के दिन बहुत सारे लोगों को कोई न कोई आवश्यक कार्य निकल आता है और वे मतदान करने नहीं जाते हैं। बहुत सारे लोग तो मतदान के दिन अवकाश का लाभ उठाकर परिवार सहित घूमने चले जाते हैं। काफी लोग इसलिए मतदान करने नहीं जाते हैं कि कौन मतदान केन्द्र पर वोट डालने के लिए घन्टों लाइन में लगे। वे घर पर रहकर ही आराम फरमाते हैं।
शत प्रतिशत मतदान का लक्ष्य हासिल नहीं कर पाने का एक मुख्य कारण यह भी है कि बहुत सारे लोग रोजगार के सिलसिले में अपने गांव, कस्बों एवं शहरों से दूर रहते हैं। वे चाहते हुए भी मतदान के दिन मतदान करने के लिए अपने घर नहीं आ पाते। इनमें युवा मतदाताओं की बहुत बड़ी संख्या होती है। यदि रोजगार देने वाली संस्थाएं एवं कम्पनियां इन नौजवानों को घर जाकर मतदान करने हेतु कम से कम तीन दिन का विशेष अवकाश देने की व्यवस्था कर दे तो इससे मतदान का प्रतिशत बढ़ सकता है।जिस प्रकार हम होली दीपावली ईद आदि धार्मिक पर्वों पर हम बाहर रह रहे अपने बच्चों को घर बुलाते हैं ठीक उसी तरह लोकतंत्र के इस महापर्व पर मतदान करने के लिए हमें अपने बच्चों को घर बुलाना चाहिए ।
लोकतन्त्र की मजबूती के लिए शत-प्रतिशत मतदान का लक्ष्य हासिल करना आवश्यक है। इसलिए अनिवार्य मतदान का कानून बनाना जरूरी है। जब हमारी सरकार अनिवार्य शिक्षा अधिनियम बना सकती है तो फिर अनिवार्य मतदान कानून क्यों नहीं बन सकता। दुनिया में तमाम ऐसे देश हैं जिनमें अनिवार्य मतदान कानून लागू है । ब्राजील दुनिया का पहला देश है जिसने अपने यहां अनिबार्य मतदान कानून बनाया था। यहां 1892 से अनिवार्य मतदान कानून लागू है। इस समय ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना,आस्ट्रिया , साइप्रस, कोस्टा रिका, बोलीविया, ब्राजील, डोमिनिकन गणराज्य सहित दुनिया के लगभग तीस देशों में अनिवार्य मतदान कानून लागू है। इनमें से अधिकांश देशों में मतदान को नागरिकों का अधिकार माना है। वहीं कुछ देशों ने मतदान को नागरिकों के कर्तव्य से जोड़ दिया है।
इनमें से अधिकांश देशों में मतदान नहीं करने पर सजा का भी प्रावधान है। मतदान के दिन मतदान नहीं, पर जुर्माना लगाया जाता है। जुर्माना नियत अवधि में अदा नहीं करने पर छः माह जेल की सजा भुगतनी पड़ती है। कुछ देशों ने मतदान नहीं करने वाले नागरिकों को कोई सरकारी सहायता नहीं देने का प्रावधान बनाया है। इन सख्त प्रावधानों के कारण यहां मतदान का प्रतिशत अप्रत्याशित रूप से बढ़ा है।
हमारे देश में लगभग हर चुनाव में मतदान 60-70 प्रतिशत के बीच रहता है। ऐसे मंे जिस पार्टी को 30 प्रतिशत या उससे अधिक वोट मिल जाते हैं उसकी सरकार बन जाती है। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि 30 प्रतिशत मतदाताओं की पसन्द वाली सरकार बहुमत की सरकार कहां हुई। इसलिए लोकतन्त्र की मजबूती के लिए मतदान का प्रतिशत बढ़ना आवश्यक है। अनिवार्य मतदान कानून ही वर्तमान परिस्थितियों में एकमात्र विकल्प है जिससे मतदान का प्रतिशत बढ सकता है इसलिए मतदान का प्रतिशत 90 से 95 प्रतिशत तक पहुंचाने के लिए अनिवार्य कानून बनाना आवश्यक है। केन्द्र सरकार और चुनाव आयोग को इस बारे में गम्भीरता पूर्वक विचार करना चाहिए।
डिजिटल मतदान भी मतदान प्रतिशत बढ़ाने में कारगर भूमिका निभा सकता है। हम डिजिटल इण्डिया में रह रहे हैं। सरकार का पूरा फोकस डिजिटल प्लेटफार्म को मजबूत करने पर है। दुनिया के कई देशों में ऑनलाइन मतदान शुरू हो चुका है। भारत में भी डिजिटल मतदान के विकल्प को आजमाया जा सकता है ।जब सभी लोग निष्पक्ष एवं निर्भीक होकर मतदान करेंगे तभी हमारा लोकतन्त्र मजबूत होगा ।इसीलिए मतदान का दिन महापर्व के रुप में मनायें ।
सुरेश बाबू मिश्रा
सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य, बरेली
मोबाइल नं. 9411422735

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