नीरज सिसौदिया, बरेली
चाचा-भतीजा के बीच के फासले खत्म होने और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के बाद समाजवादी पार्टी अब विधानसभा के उम्मीदवारों को लेकर फिर से मंथन कर रही है। इसमें सर्वे रिपोर्ट के साथ ही प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के दिग्गजों के नाम भी शामिल किए गए हैं। बताया जाता है कि चाचा शिवपाल यादव के साथ मिलकर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने उम्मीदवारों को लेकर मंथन किया जिसमें बरेली जिले की सीटें भी शामिल हैं। हालांकि आधिकारिक रूप से इसकी घोषणा चुनावी अधिसूचना जारी होने के बाद ही की जाएगी। लखनऊ स्थित पार्टी मुख्यालय के सूत्र बताते हैं कि बरेली जिले की तीन सीटों के उम्मीदवारों के नाम लगभग तय कर लिए गए हैं। इनमें बिथरी चैनपुर विधानसभा सीट से प्रसपा के मुख्य महासचिव वीरपाल सिंह यादव, बहेड़ी विधानसभा सीट से नसीम अहमद और 125 कैंट विधानसभा सीट से इंजीनियर अनीस अहमद खां के नाम शामिल हैं।
प्रसपा के मुख्य महासचिव और पूर्व सांसद वीरपाल सिंह यादव पहले भी दो बार बिथरी से चुनाव लड़ चुके हैं। वह सपा के जिला अध्यक्ष भी रह चुके हैं। उनके प्रसपा में जाने के बाद सपा में संगठनात्मक रूप से बिखराव देखने को मिल रहा था। अब दोनों दलों के गठबंधन के बाद फिर से एकजुटता नजर आने की उम्मीद बढ़ चुकी है। वीरपाल सिंह यादव के अनुभव को देखते हुए उन्हें प्राथमिकता दी गई है। हालांकि, इस सीट से प्रमोद यादव भी मजबूत दावेदार माने जा रहे थे। यादवों का समीकरण साधने के लिए ही पार्टी ने यहां से यादव को लड़ाने का निर्णय लिया है क्योंकि वर्तमान में जिला अध्यक्ष भी यादव नहीं है।
वहीं, बहेड़ी विधानसभा सीट पर नसीम अहमद की साफ-सुथरी छवि और पिछले विधानसभा चुनाव में पूर्व मंत्री अता उर रहमान से ज्यादा वोट हासिल करने का फायदा नसीम अहमद को मिला है। दरअसल, अता उर रहमान और उनके भाईयों पर वर्ष 2005 में नगरपालिका के सरकारी तालाब की जमीन पर अवैध कब्जे और गौकशी कराने का आरोप लगा है। नगरपालिका की ओर से इस संबंध में एक मुकदमा भी न्यायालय में वर्ष 2005 में किया गया था। इस तालाब पर अवैध कब्जा करके न सिर्फ प्लाटिंग की गई थी बल्कि कुछ प्लाटों का सौदा भी कर दिया गया था। यह मामला अभी भी कोर्ट में चल रहा है। इसके अलावा गौकशी का आरोप भी लगा था। साथ ही शिवपाल यादव भी अता उर रहमान से नाराज बताए जाते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में शिवपाल यादव ने अंजुम राशिद को टिकट दे दिया था लेकिन अखिलेश यादव ने उनका टिकट काटकर अता उर रहमान को उम्मीदवार बनाया था। चाचा की बात न मानना उस वक्त अखिलेश यादव को भारी पड़ गया था और बहेड़ी सीट सपा के हाथ से निकल गई। इतना ही नहीं अता उर रहमान उस वक्त दूसरे नंबर पर भी नहीं आ सके थे। नसीम अहमद ने अता उर रहमान से ज्यादा वोट हासिल कर दूसरे नंबर पर कब्जा जमाया था। यही वजह है कि अखिलेश यादव इस बार कोई रिस्क नहीं लेना चाहते और पार्टी नसीम अहमद पर दांव खेलने की तैयारी में है।
वहीं, कैंट विधानसभा सीट पर इंजीनियर अनीस अहमद की मेहनत रंग लाती दिख रही है। पिछले चार माह से जिस तरह इंजीनियर अनीस अहमद खां ने ऐतिहासिक मतदाता जागरूकता एवं वोटरशिप अभियान चलाया है उसकी गूंज लखनऊ तक पहुंच चुकी है। इंजीनियर अनीस अहमद खां जहां इस अभियान को गिनीज बुक और लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराने की तैयारी कर रहे हैं वहीं पार्टी उन्हें कैंट से मैदान में उतारने की तैयारी कर चुकी है। इंजीनियर अनीस अहमद खां के जरिये पार्टी यह संदेश देना चाहती है कि मंडल मुख्यालय मुस्लिम विहीन नहीं होगा और अब भी पार्टी में मुस्लिम हित सुरक्षित हैं। इस सीट से पूर्व मेयर डा. आईएस तोमर का नाम भी चर्चा में था लेकिन आईएस तोमर की निगाहें अभी भी मेयर की ही कुर्सी पर बताई जा रही हैं। यही वजह है कि इन दिनों वह बिल्कुल भी सक्रिय नजर नहीं आ रहे। साथ ही उनका स्वास्थ्य भी उनके शरीर को इतनी मेहनत करने की इजाजत नहीं दे रहा जितनी विधानसभा चुनाव जीतने के लिए उम्मीदवार को करनी होगी।
वहीं, मीरगंज से सुल्तान बेग का नाम फाइनल होने की बात सूत्र कह रहे हैं। बताया जाता है कि सुल्तान बेग के राजनीतिक सफर और सियासी कद को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है।
बहरहाल, टिकट की आधिकारिक तौर पर घोषणा तो चुनावी अधिसूचना जारी होने के बाद होगी लेकिन उम्मीदवार तय कर लिये गए हैं।
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