नीरज सिसौदिया
नई दिल्ली। अन्ना हजारे के आंदोलन से जन्मी आम आदमी पार्टी की मुश्किलें अब बढ़ती जा रही हैं। पहले हमसफर छूटे और अब 20 विधायक अयोग्य करार दे दिए गए। केजरीवाल सरकार पर सीसी का है यह वार भारी पड़ गया है। उपराज्यपाल की जंग और सियासी हमलों के बीच अरविंद केजरीवाल के लिए विधायकों का अयोग्य करार दिया जाना एक बहुत बड़ा झटका माना जा रहा है। कहीं ना कहीं अरविंद केजरीवाल अब कमजोर नजर आने लगे हैं।
ईमानदारी की बात कर दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने वाले अरविंद केजरीवाल पहले अपने ही साथियों की बेईमानी के चलते फजीहत खेलते रहे और जब उन्होंने कड़ा एक्शन लिया तो पार्टी गुटबाजी की भेंट चढ़ गई। कहीं बगावत बुलंद हुई तो कहीं अपनों ने ही केजरीवाल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसका असर आगामी लोकसभा चुनाव पर तो पड़ेगा ही साथ ही दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव पर भी दिखाई देगा।
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता वाली कहावत अरविंद केजरीवाल पर एकदम फिट बैठ रही है। लाख कोशिशों के बावजूद अरविंद केजरीवाल अपनी पार्टी की साख बचाने में नाकाम रहे हैं। हालांकि, केजरीवाल का कोई भी बड़ा घोटाला सामने नहीं आया लेकिन उनके मंत्री इससे अछूते नहीं रह सके।
अभी भी अरविंद केजरीवाल के पास काफी समय है पार्टी को संभालने और अपनी खोई हुई साख को वापस सहेजने का। बिजली हाफ और पानी माफ की अरविंद केजरीवाल की स्कीम तो काम कर गई लेकिन सिर्फ इतने से ही क्रांतिकारी बदलाव नहीं होने वाला। बदलाव का सफर अभी लाखों मीलों का है और केजरीवाल तो चंद कदमों का फासला ही तय कर पाए हैं।
पिछले दिनों गुरु तेग बहादुर अस्पताल के दौरे के दौरान अरविंद केजरीवाल ने वहां की जो दयनीय हालत देखी वह सरकारी व्यवस्था को मुंह चिढ़ा रही थी। यानी यह साफ है कि केजरीवाल ने योजनाएं तो बनाई लेकिन उन पर पूरी तरह से अमल करा पाने में नाकाम रहे हैं। जीटीबी अस्पताल के दौरे के दौरान केजरीवाल ने खुद कहा था कि यहां के डॉक्टरों को योजनाओं का ही पता नहीं है। यानी केजरीवाल खुद भी यह मानते हैं कि सिस्टम में कहीं ना कहीं अभी कमी रह गई है जिसे सुधारने की जरूरत है। मसला सिर्फ एक जीटीबी अस्पताल का नहीं है अन्य मोर्चों पर भी काफी सुधार की जरूरत अब भी है। सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार में कुछ कमी भले ही आ गई हो लेकिन वह खत्म नहीं हुआ है। नगर निगम पर भाजपा का बीज है और दिल्ली की सत्ता पर केजरीवाल। वही केंद्र पर मोदी सरकार। केजरीवाल कुछ करें तो LG का रोड़ा सामने आ जाता है और कुछ ना करें तो जनता के निशाने पर आ जाते हैं। इधर कुआं उधर खाई केजरीवाल जाएं तो कहां जाएं। राज्यसभा चुनाव हुए तो राज्यसभा में जाने को लेकर कुमार विश्वास दुखड़ा रोने लगे। गुप्ता बिरादरी के 2 लोगों को राज्यसभा का टिकट देने पर उन्होंने मीडिया के सामने अपना दर्द बयां कर डाला। मनीष सिसोदिया को छोड़ दें तो कोई भी शुरुआती नामी चेहरा जो आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के साथ था वह अब साथ खड़ा नजर नहीं आ रहा। यकीनन अब आम आदमी पार्टी बिखरने लगी है। हालांकि केजरीवाल पर गरीब और मध्यम वर्गीय तबके को आज भी विश्वास है और उनसे काफी उम्मीदें भी हैं लेकिन 867 उम्मीदों पर नहीं टिकती। केजरीवाल का सियासी सफर किस मोड़ पर जाएगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव और दिल्ली विधानसभा चुनाव केजरीवाल के सियासी भविष्य का फैसला अवश्य कर देंगे।