नीरज सिसौदिया
विजय माल्या के बाद नीरव मोदी द्वारा अरबों रुपए का कर्ज लेकर विदेश फरार होने का मामला मोदी सरकार के गले की फांस बनता जा रहा है। एक तरफ देश में छोटे-मोटे कर्ज अदा ना कर पाने के चलते किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं। तो वहीं दूसरी तरफ अरबों रुपए का कर्ज लेकर नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे कारोबारी आसानी से विदेश फरार हो जाते हैं। इस बार मामला वाकई बेहद गंभीर है। नीरव मोदी के फरार होने के 3 सप्ताह बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी तस्वीर जारी होने को लेकर कई सवाल खड़े हो गए हैं। विजय माल्या और नीरो मोदी का घटनाक्रम वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।
दरअसल, वर्ष 2014 में जब लोकसभा चुनाव होने वाले थे तो भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने कांग्रेस के खिलाफ सबसे बड़े हथियार के रूप में इसे इस्तेमाल किया था वह था कांग्रेस नेताओं कारोबारी घरानों से नज़दीकियां। बिजनेस टाइकून से कांग्रेस के रिश्तों ने ही उसे सत्ता से बाहर करने में भाजपा की मदद की थी। भाजपा ने यूपीए सरकार को पूंजीपतियों की सरकार करार दिया था। चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मुद्दे को जमकर भुनाया था। प्रचार के दौरान मोदी ने यह नारा भी दिया था कि ना खुद खाऊंगा और ना किसी को खाने दूंगा। उनका सीधा सा इशारा कारोबारी घरानों पर था कि वह इन घरानों को किसी भी सूरत में जनता का पैसा नहीं खाने देंगे। इसके उलट नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे कारोबारी देश की गरीब जनता का हजारों करोड़ों रुपयों का लोन लेकर देश से आसानी से फरार हो गए लेकिन सरकार हाथ पर हाथ धरकर बैठी रही।
नीरव मोदी का मामला उछला तो केंद्र सरकार के नुमाइंदे यह कहकर पल्ला झाड़ने लगे कि नीरव का मामला वर्ष 2011 का है और उस वक्त कांग्रेस सरकार सत्ता में थी। यह कहकर मोदी सरकार खुद ही अपने जाल में फंस गई। जब मामला वर्ष 2011 का है तो फिर इतने साल तक मोदी सरकार ने इस पर कोई एक्शन क्यों नहीं लिया? क्यों केंद्र सरकार के नुमाइंदे नीरव मोदी के देश से फरार होने का इंतजार करते रहे? जनवरी के पहले सप्ताह में ही नीरव मोदी अपने पूरे परिवार के साथ देश छोड़कर फरार हो गया। इसके ठीक 3 सप्ताह बाद नीरव मोदी एक तस्वीर में नरेंद्र मोदी के साथ खड़ा नजर आता है। यह तस्वीर एनुअल इकोनॉमिक फोरम, दावोस, स्विट्जरलैंड की है। इस तस्वीर के जारी होने के बाद कई सवाल खुद-ब-खुद खड़े हो जाते हैं। पहला सवाल यह है कि मोदी के साथ नीरव मोदी स्विट्जरलैंड में क्या कर रहे हैं? उनके खिलाफ कोई एक्शन क्यों नहीं लिया जा सका? कुछ ऐसा ही मार्च 2016 में हुआ था जब विजय माल्या 1.4 बिलियन डॉलर का कर्ज लेकर भारत छोड़कर फरार हो गया था।
एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में वर्ष 2000 से अब तक करीब 270000 किसान खुदकुशी कर चुके हैं। इनमें से 80 फ़ीसदी किसानों की खुदकुशी की वजह सिर्फ इतनी सी थी कि वह कुछ छोटे-मोटे कर्ज नहीं चुका पा रहे थे। इन सभी किसानों पर औसतन कर्ज करीब $3000 बनता है। मामूली सा कर्ज ना चुकाने पर यह किसान अपराधी हो जाते हैं लेकिन जो बिजनेस टाइकून अरबों खरबों रुपए का कर्ज लेकर भारत के बैंकिंग सेक्टर की कमर तोड़ देते हैं वह आसानी से लंदन और दुबई चले जाते हैं।
इंडिया स्पेंड रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2016 और 17 में 5200 से भी अधिक ऐसे डिफॉल्टर हैं जिन्होंने जानबूझकर क़र्ज़ अदा नहीं किया है। इन पर करीब 8.65 बिलियन डॉलर का कर्ज बकाया है। यह कर्ज उस राशि से कहीं गुना अधिक है जो सरकार ने भारतीय किसानों और कृषि कार्यों के लिए बतौर लोन दी है।
बहर हाल अगर मोदी सरकार वर्ष 2019 में सत्ता में वापसी का सपना साकार करना चाहती है तो उसे कुछ सख्त कदम उठाने होंगे। मोदी सरकार को नीरव मोदी का कलंक मिटाना होगा। उन्हें इंदिरा गांधी कि उस सोच को आगे बढ़ाना होगा जिसकी शुरुआत इंदिरा गांधी ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण को लेकर 1969 में कर दी थी। क्योंकि जब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाएगा तब तक विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे कारोबारी यूं ही गरीबों का पैसा लेकर फरार होते रहेंगे और देश को कंगाल बनाते रहेंगे।
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