उत्तराखंड देश

कहीं हरीश रावत को दरकिनार करने की तैयारी तो नहीं?

Share now

नीरज सिसौदिया
उत्तराखंड कांग्रेस की गुटबाजी दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। हरीश रावत के मुख्यमंत्री रहते हुए यह चरम पर थी। जिसका उदाहरण प्रदेश वासियों ने 9 विधायकों की बगावत के रूप में देखा था। पहले सतपाल महाराज ने भाजपा का दामन थामा फिर विजय बहुगुणा, यशपाल आर्य और अन्य दिग्गज भगवा रंग में रंग गए। उस वक्त भले ही हरीश रावत ने अपनी सूझबूझ से मोर्चा फतह कर लिया था लेकिन अब एक बार फिर उन्हें अपनी ही पार्टी में शीत युद्ध का शिकार होना पड़ रहा है। कांग्रेस की राजनीति का एक बार फिर ध्रुवीकरण शुरू हो गया है। इस बार मोर्चा कुमाऊं की ही तेज तर्रार नेत्री इंदिरा हृदयेश ने संभाला है। उन्हें अंदरखाते किशोर उपाध्याय और प्रीतम सिंह जैसे नेताओं का भी समर्थन मिल रहा है। साथ ही नेता प्रतिपक्ष होने के नाते इंदिरा के साथ कांग्रेस के विधायक भी हैं। वहीं वर्तमान में जितने भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रदेश में सक्रिय नजर आ रहे हैं उनमें से ज्यादातर इंदिरा के समर्थक ही हैं। हरीश रावत के करीबी माने जाने वाले राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा ने लोकसभा चुनाव में हार के बाद भी सबक लेना जरूरी नहीं समझा। तमता के लोकसभा चुनाव में हारने की एक मुख्य वजह यह भी थी कि जनता ने उन्हें अपने से काफी दूर पाया था। लोकसभा सांसद होने के बावजूद टम्टा अपने क्षेत्र में इतने सक्रिय नहीं रहे थे। वहीं कुछ इलाके तो ऐसे भी थे जहां टम्टा ने चेहरा दिखाना तक मुनासिब नहीं समझा था। हालांकि, हरीश धामी और कुछ अन्य नेता पहाड़ों में हरीश रावत का पुरजोर समर्थन कर रहे हैं लेकिन इंदिरा का नेतृत्व हरीश रावत पर भारी पड़ सकता है।
ताजा उदाहरण मंगलवार को उस समय देखने को मिला जब इंदिरा हृदयेश के आवास पर विधायक दल की बैठक का आयोजन किया गया जिसमें पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय और वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह भी शामिल हुए लेकिन हरीश रावत शहर में होने के बावजूद इसमें नजर नहीं आए।
बात अगर गत लोकसभा चुनाव की करें तो हरीश का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा था। उस वक्त प्रदेश में हरीश रावत की सरकार थी लेकिन हरीश रावत पार्टी को एक भी सीट नहीं जिता पाए थे। यहां तक की अल्मोड़ा की अपने गृह क्षेत्र की सीटी हरीश रावत ने गंवा दी थी। उनकी पत्नी भी चुनाव नहीं जीत सकी थीं। ऐसे में पार्टी हाईकमान इस बार हरीश रावत को कितनी तवज्जो देगा यह कहना फिलहाल मुश्किल है।
हरीश रावत की नाकामियां और कांग्रेस के दिग्गजों का पार्टी से बाहर जाना इंदिरा हृदयेश के लिए वरदान साबित हो सकता है। बात अगर प्रदेश कांग्रेस के आला नेताओं की करें तो इंदिरा को छोड़कर कोई भी ऐसा दिग्गज नजर नहीं आता जो मुख्यमंत्री पद की दावेदारी जता सके। ऐसे में मुकाबला सिर्फ हरीश रावत से ही है। वर्तमान में मौका भी है और दस्तूर भी अगर इंदिरा हृदेश इस समय अपनी पकड़ संगठन में मजबूत बना लेती हैं तो प्रदेश की कमान आने वाले समय में उनके हाथ हो सकती है। मंगलवार को हुई प्रेस वार्ता में जिस तरह से कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने इंदिरा के साथ मंच साझा किया उससे स्पष्ट है कि दोनों का समर्थन इंदिरा के साथ है। अगर यह गुट वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में कोई करिश्मा कर दिखाता है तो निश्चित तौर पर यह उपलब्धि इंदिरा के खाते में ही दर्ज होगी। मुमकिन है कि इस बार कांग्रेस से लोकसभा जाने वालों की सूची में इंदिरा हृदयेश का नाम भी दर्ज हो। अगर ऐसा हुआ तो भाजपा के लिए यह खतरे की घंटी साबित होगा। बहरहाल हरीश रावत अब प्रदेश में कमजोर पड़ते जा रहे हैं। अब देखना यह है कि प्रदेश में कांग्रेस की अगली रणनीति क्या होगी।

Facebook Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *