नीरज सिसोदिया, नई दिल्ली
आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने से खफा मोदी सरकार के दो मंत्रियों का इस्तीफा शुक्रवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंजूर कर लिया है। यह दोनों मंत्री तेलुगू देशम पार्टी से ताल्लुक रखते थे। बुधवार रात तेलुगू देशम पार्टी ने केंद्र का साथ छोड़ दिया था जिसके बाद गुरुवार को इन दोनों मंत्रियों ने अपने पद से इस्तीफे की पेशकश की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सलाह के बाद राष्ट्रपति ने शुक्रवार को उनका इस्तीफा मंजूर कर लिया है।
बता दें कि बजट पेश होने के बाद नहीं ऐसे ही तेलुगू देशम पार्टी आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य दर्जा देने की मांग लगातार करती आ रही थी। इसे लेकर पार्टी के सांसदों ने संसद में हंगामा भी किया था। जब केंद्र सरकार ने इस मांग को स्वीकार नहीं किया तो आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और तेलुगू देशम पार्टी के मुखिया एन चंद्रबाबू नायडू के कहने पर नागरिक उड्डयन मंत्री अशोक गजपति राजू और राज्य मंत्री वाईएस चौधरी ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। गुरुवार शाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू से संबंध में बात भी की थी लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकला। इसके बाद राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री की सलाह पर दोनों मंत्रियों का इस्तीफा मंजूर कर लिया है। फिलहाल नागरिक उड्डयन मंत्रालय स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देखेंगे।
वही तेलुगू देशम पार्टी अभी भी खुद को एनडीए का हिस्सा बता रही है। पार्टी की ओर से शुक्रवार को एक बैठक बुलाई गई है जिसमें भविष्य में एनडीए के साथ गठबंधन पर विचार विमर्श किया जाएगा। बता दें कि आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य दर्जा देने की मांग को लेकर पिछले काफी समय से तेलुगू देशम पार्टी आंदोलनरत थी लेकिन उसकी इस मांग को केंद्र सरकार ने स्वीकार नहीं किया। अब अगर तेलुगू देशम पार्टी पूरी तरह से एनडीए का साथ छोड़ देती है तो आगामी लोकसभा चुनाव में एनडीए पर इसका खासा असर पड़ सकता है।
हाल ही में चंद्रबाबू नायडू ने आगामी लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का साथ ना देने के संकेत भी दिए थे। उन्होंने देश हित के लिए सभी विपक्षी दलों से एकजुट होने की अपील की थी। लेकिन इस विपक्षी दलों में उन्होंने कांग्रेस को शामिल नहीं किया था। नायडू का कहना था कि उन्हें कांग्रेस और भाजपा से हटकर जनता को तीसरे मोर्चे के रूप में एक विकल्प देना चाहिए। नायडू की इस बात को ममता बनर्जी समेत कुछ अन्य पार्टी नेताओं का भी समर्थन मिला था। ऐसे में मुमकिन है कि वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में एक तीसरा मोर्चा जनता के सामने विकल्प के तौर पर कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ मैदान में नजर आए।