नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
राजधानी के राजघाट पर सोमवार को कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी दलितों के आरक्षण के मुद्दे पर उपवास पर बैठे। सुबह 10:00 बजे से लेकर शाम 4:00 बजे तक राहुल गांधी का उपवास कार्यक्रम देशभर में सुर्खियां बटोर रहा है। महात्मा गांधी की समाधि स्थल से दलितों के हक के लिए राहुल गांधी के विरोध का यह नया तरीका सुर्खियां बटोरने के लिए तो अच्छा है लेकिन क्या वाकई कांग्रेस दलित हितैषी हो गई है या फिर यह पूरी कवायद सिर्फ मौके काे भुनाने के लिए की जा रही है।
कांग्रेस ने साठ वर्षों तक देश की सत्ता पर राज किया। इसके बावजूद दलित आरक्षण का लाभ ज्यादातर उन्हीं दलित परिवारों को मिला है जो आर्थिक रुप से या तो संपर्क में हैं या फिर अपना गुजारा करने में सक्षम हैं. यह कैसा आंदोलन है जिसके आगाज से चंद मिनटों पहले छोले और भटूरे की पार्टी की जाती है। कांग्रेस नेताओं की यह तस्वीर वायरल होने के साथ ही कांग्रेस का सच भी वायरल हो गया। अगर वाकई राहुल गांधी दलितों के हितैषी हैं तो महज चंद घंटों का उपवास नहीं बल्कि आमरण अनशन शुरू करें. जब तक दलितों को उनका कथित तौर पर उनका वाजिब हक ना मिले तब तक राहुल गांधी का अनशन भी चलता रहे। सुबह 10:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक का उपवास आंदोलन कम और दलितों का उपहास ज्यादा नजर आता है। कांग्रेस के ज्यादातर जिला मुख्यालयों में भी इस उपवास का कुछ ऐसा ही हाल हुआ। सुबह 10:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक भले ही कांग्रेस से उपवास पर बैठे रहे लेकिन 4:00 बजे के बाद होटलों में कांग्रेसियों की भीड़ दिखाई दी। कुछ जगह तो ऐसी भी थी जहां दफ्तर में ही खाने के पैकेट मंगाए गए थे।
दरअसल, मजहबी और जाति सियासत की दूरी दलित वोट बैंक ही है.
बात अगर यूपी की करें तो यहां मायावती ने अनुसूचित जाति वोट बैंक और मुलायम सिंह ने यादव वोट बैंक के सहारे जाने कितनी बार उत्तर प्रदेश की सत्ता पर कब्जा जमाया।
दरअसल, प्रदेश के 20 से भी अधिक राज्यों में सत्ता से बाहर होने के बाद कांग्रेस के पास सत्ता में वापसी का कोई रास्ता नहीं बचा है। एक तरफ नरेंद्र मोदी और भाजपा का विजय रथ़ है तो दूसरी तरफ विभिन्न राजनीतिक दल कांग्रेस को दरकिनार कर महागठबंधन की तैयारी कर रहे हैं। कुछ दिन पहले चंद्रबाबू नायडू ने सार्वजनिक रूप से विभिन्न सियासी दलों को एकजुट होने का आह्वान भी किया था। ममता बनर्जी समेत कुछ अन्य सियासी दलों के नेताओं ने उनके इस आह्वान का समर्थन भी किया था। उत्तर प्रदेश में अब बसपा और सपा एक साथ आ गई हैं। ऐसे में कांग्रेस की चिंता लाजमी है। यही वजह है कि राहुल गांधी कभी मंदिरों में नजर आते हैं तो कभी दलित का मुद्दा लेकर बैठ जाते हैं।
निश्चित तौर पर दलित आरक्षण एक बहुत बड़ा मुद्दा है। लेकिन इसका समर्थन या विरोध करने से पहले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि क्या यह इस आरक्षण का लाभ उन लोगों को वास्तव में मिल रहा है जो उसके असल हकदार हैं। इसका एक बेहतर विकल्प गरीबी के आधार पर आरक्षण हो सकता है।
क्योंकि वर्तमान में देश की कुल BPL आबादी में करीब 50% से भी अधिक आबादी सामान्य वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग से जुड़े गरीबों की है। अगर आर्थिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था होती है तो इन सभी गरीबों की दशा सुधर सकती है लेकिन वोट बैंक की राजनीति में उलझी कांग्रेस को यह दिखाई नहीं दे रहा। वह तो किसी न किसी रूप में सिर्फ मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलना चाहती है।
राहुल गांधी को यह समझना चाहिए कि मुद्दों का भटकाव उन्हें दिन-ब-दिन सत्ता से दूर करता जा रहा है। अपने आंदोलन के लिए राहुल को ऐसे मुद्दे चुनने चाहिए जो देश हित में हो ना कि देश को बांटने वाले। अस्तित्व बचाने में जुटी कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की कवायद में कहीं राहुल गांधी उसे अंत की ओर ना धकेल दें। हिंदू मुसलमान के बाद अब दलित और सामान्य वर्ग मैं हिंदुस्तान को ना बांटें तो बेहतर होगा। वर्षों पहले राहुल गांधी रायबरेली में गरीब महिला को ₹500 का नोट लेकर आए थे और उसके घर भोजन भी किया था। राहुल गांधी के जाने के बाद उस महिला का एक बयान दिया में आया था जिसमें उसने कहा था कि वह ₹500 का नोट वह किसी को नहीं देगी क्योंकि उसको यह राहुल गांधी ने दिया है। तब उस महिला को यह उम्मीद थी कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो निश्चित तौर पर लोकसभा चुनाव के बाद उसकी भी तकदीर बदलेगी। कांग्रेस सत्ता में आई और चली गई लेकिन BPL का आंकड़ा कम नहीं हुआ। उल्टा कांग्रेस के राज में गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर करने वालों का आंकड़ा और बढ़ गया. ऐसे में राहुल गांधी का दलितों के लिए 1 दिन का उपवास रखना मात्र उपहास ही नजर आता है। अभी वक्त है अगर राहुल गांधी सही रास्ते पर ना चले तो वह दिन दूर नहीं जब भारत में कांग्रेस को अतीत के पन्नों तक सिमट कर रह जाएगी।
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