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उन्नाव और कठुअा गैंग रेप कांड ले डूबेंगे भाजपा को

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नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
नोटबंदी और जीएसटी के कारण फजीहत झेल रही भाजपानीत नरेंद्र मोदी सरकार के लिए उन्नाव और जम्मू कश्मीर के कठुआ में हुए गैंगरेप कांड गले की फांस बन गए हैं। इन दोनों मामलों को लेकर पूरे देश में भगवा दल की थू-थू होने लगी है। वहीं, विपक्षी सियासतदानों ने इन मामलों पर सरकार पर जमकर निशाना साधा है। वह इन मामलों को सरकार के खिलाफ एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।
दरअसल, मोदी सरकार के सत्ता में आपने किस वक्त देश की जनता ने जो सपने संजोए थे उन्हें केंद्र सरकार पूरा नहीं कर सकी है। जनता के ऊपर एक के बाद एक कड़े फैसलों का बोझ इस तरह से डाला गया कि उसे संभलने का कोई मौका ही नहीं मिला।
आधार कार्ड लिंक कराना हो या जनधन खाता खुलवाने हो या फिर नोटबंदी हो आम आदमी परेशान हो चुका है। सरकारी कार्यों का जो पौध केंद्र सरकार ने आम आदमी के ऊपर डाला है उस पुलिंदे को तैयार करने में ही जनता को नाकों तले चने चबाने पड़ रहे हैं। अर्थव्यवस्था में सुधार के नाम पर कड़े फैसले चलता भी चाहती थी लेकिन इस तरीके से नहीं जिस तरीके से मोदी सरकार ने उस पर अमल किया है।
मोदी सरकार ने सत्ता में आने से पहले देश की जनता को जिस तरह से गरीबी मिटाने और रोजगार के सपने दिखाए थे उनमें से कोई भी सपना सरकार पूरा नहीं कर पाई। न रोजगार मिला और ना ही गरीबी खत्म हुई। विदेशी निवेश के नाम पर और मेक इन इंडिया के नाम पर रोजगार दिलाने का दावा करने वाली केंद्र सरकार इस मोर्चे पर भी फेल साबित हुई। नोटबंदी की मार से कई जिंदगियां छीन लीं और जीएसटी तो ऐसा जिंद बन गया जिसके नाम पर छोटे-मोटे कारोबारी आम जनता को और ज्यादा लूटने लगे हैं।
कानून व्यवस्था के नाम पर अब तक मोदी सरकार बची हुई थी लेकिन कठुआ गैंगरेप और उन्नाव गैंगरेप कांड इस सरकार के माथे का कलंक बन चुके हैं। जिस तरह निर्भया कांड कांग्रेस को ले डूबा था और बदायूं कांड समाजवादी पार्टी की अखिलेश सरकार की गले की फांस बन गया था ठीक उसी तरह से उन्नाव और कठुआ गैंग रेप कांड भारतीय जनता पार्टी के गले की फांस बन गया है। निर्भया कांड के आरोपी किसी सियासी दल से ताल्लुक नहीं रखते थे और ना ही बदायूं कांड के आरोपी समाजवादी पार्टी से ताल्लुक रखते थे लेकिन कठुआ गैंगरेप कांड और उन्नाव गैंगरेप कांड दोनों ही मामलों में आरोपी भारतीय जनता पार्टी से ताल्लुक रखते हैं। उन्नाव कांड में खुद भाजपा विधायक का शामिल होना यह साबित करता है कि सत्ता का नशा उस पर किस कदर हावी हो गया था। आखिर भारतीय जनता पार्टी ने अपने विधायकों को इतनी छूट क्यों दे दी कि वह खुद को ही सर्वोपरि समझने लगे। बात सिर्फ उन्नाव की ही नहीं है, कई जगहों पर भाजपा विधायक तानाशाह बन कर बैठ गए हैं। यूपी हो या उत्तराखंड विधायकों की मनमानी पर कोई अंकुश नहीं है। सरकारी तंत्र तो जैसे विधायकों का गुलाम बनकर रह गया है। अब वक्त आ गया है कि पुलिस को कम से कम इतनी आजादी तो दी जानी चाहिए कि वह किसी विधायक के हाथों की कठपुतली ना बन सके। उन्नाव और कठुआ गैंगरेप के मामले अगर इतना तूल ना पकड़ते तो शायद पीड़िताओं को इंसाफ मिलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता। वर्तमान में भी जो सलूक पीड़िताओं के साथ हो रहा है वह हैरान करने वाला है। विधायक का रसूख कहीं ना कहीं पीड़िता को इंसाफ दिलाने के आड़े आ रहा है। विपक्षी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा रहे हैं और आगे भी उठाते रहेंगे। जीएसटी और नोटबंदी जैसे मसलों पर तो केंद्र सरकार के पास अपने तर्क हैं लेकिन महिलाओं और बच्चियों से गैंगरेप के मामले में कोई तर्क काम नहीं करता यह बात भाजपानीत सरकार को समझनी होगी।
कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है। निश्चित तौर पर इतिहास खुद को एक बार फिर दोहरा रहा है। वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव से ठीक 1 साल पहले 2013 में जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मीडिया ने हाईलाइट करना शुरू किया था। कांग्रेस विरोधी खबरों के सहारे मोदी सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने लगे थे। ठीक उसी तरह अब कांग्रेस और विपक्षी पार्टियां मोदी सरकार के खिलाफ मीडिया में ही आल्सो गलती नजर आ रही है। विपक्षी जिन मुद्दों पर सरकार को घेर रहे हैं वह निश्चित तौर पर आम जनता के मुद्दे हैं। महिला सुरक्षा के यह मुद्दे कभी भाजपा जोर शोर से उठाती थी और आज पक्षी उसे भाजपा के खिलाफ ही हथियार बना चुके हैं। नोटबंदी और जीएसटी के मुद्दों पर तो भाजपा ने विपक्षियों के मुंह बंद कर दिए लेकिन महिला सुरक्षा का मुद्दा भाजपा के गले की फांस बन गया है। अगर इस मसले पर भाजपा कोई कार्रवाई करती है तो भी वह विपक्षियों के वार से नहीं बच सकती और अगर कार्रवाई नहीं करती है तो विपक्षियों के लिए यह सोने पर सुहागा जैसा होगा। फिलहाल भाजपा भंवर में है और महिलाओं और बच्चियों से सामूहिक बलात्कार के मामले उसकी नाव डूबने की तैयारी में हैं। वर्ष 2019 में अगर भाजपा से सत्ता छिनेगी तो इन्हीं मुद्दों के दम पर।

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