बोकारो थर्मल, रामचंद्र कुमार ’अंजाना’
जिसने भी देखा उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। सड़क के किनारे जो ठिठक कर खड़ा हुआ तो आंखें फाड़कर देखता रह गया। बहू-बेटियों के कंधे पर गुजर रही थी मां की शव यात्रा। पीछे-पीछे चल रहे थे गांव के सैकड़ों लोग। सभी की जुबां पर बहू-बेटियों की अद्भुत मातृशक्ति की चर्चा। उस पर हैरानी यह कि चार बहुएं भक्ति में बेटियों से कम नहीं। शव के चारों छोर से बारी-बारी बहु-बेटियों ने तीन किमी तक कंधे देकर दुमुहान नदी श्मसान घाट पहुंचायी। सभी शोक में डूबी हुई। श्मसान घाट तक धीरे-धीरे बढ़ती हुई चारों और एक स्वर से बोल रही थी-राम नाम सत्य है। यह घटना है। नावाडीह के पिपराडीह की है। 134 वर्षीय मंजरी देवी अपने चार बेटों के भरा-पूरा परिवार के साथ रहती थी। 23 वर्ष पहले उनके पति नारो महतो का भी 114 वर्ष में देहांत हुआ था। आज चलते-फिरते 134 वर्षीय मंजरी देवी ने अंतिम सांस ली। चार बेटाें में मोती तूरी, लाखो तूरी, पोखलाल तूरी, व एक बेटी दिपनी देवी है। मंजरी देवी के 62 नाती, नतिनी, पोता व पोती है। अति पिछडा क्षे़त्र में रहने के बावजूद इस घर में मां-बाप से मिले संस्कारों का यह नतीजा हैं कि यहां मां-बाप के प्रति संतानों की, बडी दीदियों के प्रति छोटे भाईयों की ओर बड़़ी ननदों से भौजाई के स्नेह बंधन की कड़ी काफी मजबूत रही। यही कारण था कि घर से श्मसान घाट तक की तीन किमी शव यात्रा को जब बेटी-बहूओं ने अपने कंधों पर मां की अर्थी उठायें पूरी करने की मन में गांठ बांधी तो महज सामाजिक वर्जनाओं और रूढ़िवादी मानसिकता के डर से घर के किसी पुरूष सदस्य ने इसका विरोध नहीं किया। तब फिर एक-एक कदम चलकर पूरी हुई बेटियों और बहुओं के कंधे पर मां की शव यात्रा। बेटियों और बहुयों की इस मातृभक्ति को देखते हुए शमसान घाट पर पहुंचे लोगों के जेहन में एक सवाल भी था कि मुखाग्नि कौन देगा? बेटी, बहू या बेटा?
संभवतः बड़ी बहन दिपनी देवी ने लोगों के चेहरे पर उभरते इस सवाल को पढ़ ली थी। तभी उसने साफ किया कि मुखाग्नि की प्रकिया बेटों के हाथों पूरी की जायेगी। शमघाट में चारों बहूओं व बेटी ने चिंता को सजायी। शव पंचतत्व में विलीन हो चुका था। वापस लौटते लोगों के दिलों-दिमाग पर शमसान वैराग्य के भाव नही, बल्कि बेटी-बहुओं की मातृभक्ति की उफनती नदी तैर रही थी। पूरे तीन किमी तक गाजे-बाजे के साथ-साथ पटाखें की गूंज अपनी उफान में थी।
लेडी डॉक्टर के नाम से मशहूर थी मंजरी

पिपराडीह सहित विद्युत नगरी में महिलाओं को मातृत्व सुख की प्राप्ति के लिए ईलाज करती थी। ग्रामीणों का कहना था कि मंजरी देवी के द्वार पर जो महिलाऐं मातृत्व सुख के लिए पहुंचती थी। वह निराश नहीं लौटती थी। जंगली दवाओं से इलाज कर कई परिवारों को मातृत्व सुख दिया। जिसके कारण मंजरी के मौत की सूचना पर दूर-दराज से लोग उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए।