बदलता कश्मीर – 2
जम्मू-कश्मीर से लौटकर नीरज सिसौदिया की रिपोर्ट
जम्मू-कश्मीर के बाशिंदों की दुश्वारियों की सबसे अहम वजह अशिक्षा और बेरोजगारी है। हिन्दुस्तान की आजादी के 70 वर्षों बाद भी कश्मीर के दुर्गम पहाड़ी इलाके शिक्षा से महरूम हैं। कुछ समय पहले तक हालात बेहद दयनीय थे लेकिन अब शिक्षा की बयार बर्फीले पहाड़ों में भी बहने लगी है।
दरअसल, शिक्षा की राह में दो सबसे बड़े रोड़े आतंकवाद और दुर्गम पहाड़ी इलाकों में सड़कों का अभाव थे। कई इलाके आज भी सड़कों से वंचित हैं। आज भी यहां के बाशिंदे पथरीली पगडंडियों से होकर गुजरने को मजबूर हैं। जम्मू और कश्मीर की एक बड़ी आबादी ऐसे ही इलाकों में गुजर-बसर कर रही है। ऐसे ही इलाकों को आतंकी भी अपनी सुरक्षित पनाहगाह मानते हैं। ऐसे विपरीत हालातों में इन इलाकों में शिक्षा का सफर किसी नामुमकिन ख्वाब सरीखा लगता था लेकिन वक्त के मरहम जख्मों को भरने में लगे हैं और नामुमकिन सपना हकीकत की जमीन पर उतरने लगा है।
कुछ इलाके ऐसे भी हैं जहां सड़कें तो नहीं पहुंचीं लेकिन विद्यालय जरूर पहुंच गए। ऐसा ही एक विद्यालय किश्तवाड़ जिले के दच्छन में विद्या भारती की ओर से खोला गया है। लगभग दो दशक से यह विद्यालय शिक्षा का दीप जला रहा है। मुख्य सड़क से विद्यालय की दूरी लगभग बीस किलोमीटर है। यानि अगर इस विद्यालय तक पहुंचना है तो बीस किलोमीटर का फासला पैदल ही तय करना पड़ेगा। यहां कोई वाहन नहीं जा सकता।
विद्या भारती के इस विद्यालय में आसपास के ग्रामीण इलाकों के लगभग साढ़े तीन सौ से अधिक बच्चे पढ़ते हैं। इनमें सिर्फ हिन्दू ही नहीं बल्कि मुस्लिम विद्यार्थी भी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इन साढ़े तीन सौ बच्चों को पढ़ाने के लिए कुल 25 अध्यापक नियुक्त किए गए हैं। यानी औसतन 15 बच्चों पर एक शिक्षक की नियुक्ति की गई है। दिलचस्प बात यह है कि इन शिक्षकों में कुछ विद्या भारती के पूर्व छात्र भी शामिल हैं। ये वो पूर्व छात्र हैं जो घर छोड़कर बाहर नौकरी तलाशने में सक्षम नहीं हैं। हालांकि, इन शिक्षकों को नाममात्र के वेतन में ही संघर्ष करना पड़ रहा है लेकिन उम्मीद की एक किरण जरूर नजर आती है।
विद्या भारती के उत्तर क्षेत्र के सह संगठन मंत्री विजय नड्डा कहते हैं कि दुर्गम इलाकों के बच्चों को बेहद कम शुल्क में शिक्षा मुहैया कराई जा रही है। दुर्गम पहाड़ी इलाकों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जा रही है जिसमें और सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं। विद्यालयों से होने वाली आमदनी से ही शिक्षकों को वेतन दिया जाता है। इसके अलावा समाजसेवियों की ओर से जो सहयोग राशि प्राप्त होती है उसे भी विद्यालयों की व्यवस्था सुधारने पर खर्च किया जाता है। हमारे आचार्य बहुत कम वेतन पर संघर्ष कर रहे हैं। सीमित संसाधनों में विद्यार्थियों को संस्कारयुक्त बेहतर शिक्षा देने का प्रयास किया जा रहा है।
नड्डा आगे बताते हैं कि विद्या भारती की ओर से प्रतिवर्ष एक समर्पण कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इसके तहत विद्या भारती के पांच राज्यों दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, हमिाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के विद्यार्थी, आचार्य, समाजसेवी और अन्य लोग शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए अपने हैसियत के मुताबिक एक सहयोग राशि संस्था को देते हैं। इस सहयोग राशि को जम्मू-कश्मीर के दुर्गम और आतंक एवं आपदा प्रभावित इलाकों में नए विद्यालयों के निर्माण एवं संसाधन बढ़ाने पर खर्च किया जाता है।
नड्डा कहते हैं कि आतंक की आग को शिक्षा की बारिश से ही ठंडा किया जा सकता है। लोग शिक्षित होंगे तो उनके लिए रोजगार के द्वार खुलेंगे। जब रोजगार होगा तो वह सही एवं गलत का फर्क कर सकेंगे और आतंकियों के हाथों की कठपुतली नहीं बनेंगे।
वहीं, रामबन जिले के गांधरी गांव के रहने वाले दिलेर सिंह कहते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव तो आया है लेकिन युवाओं का भविष्य संजोने के लिए यह बदलाव नाकाफी है। शिक्षा व्यवस्था में अभी और सुधार की आवश्यकता है। एक उदाहरण देते हुए वह कहते हैं कि विकास ने कुछ रफ्तार पकड़ी है। नए प्रोजेक्ट भी लग रहे हैं लेकिन उचित शिक्षा के अभाव में स्थानीय युवा इन प्रोजेक्टों में रोजगार पाने में असमर्थ हैं। वह कहते हैं कि जब बगलिहार प्रोजेक्ट शुरू होने वाला था तो स्थानीय युवाओं को इसमें प्राथमिकता के आधार पर नौकरी देने का वादा किया गया था। दुर्भाग्य की बात है कि यहां के युवा प्रोफेशनली क्वालीफाइड नहीं थे जिसके चलते वह रोजगार से वंचित रह गए। दिलेर सिंह कहते हैं कि अब सरकार को एकेडमिक शिक्षा के साथ ही व्यावसायिक शिक्षा पर भी जोर देना होगा। वह कहते हैं कि रामबन में प्रोफेशनल्स तैयार करने वाले अच्छे शिक्षण संस्थान नहीं हैं। कोई निजी संस्थान भी इस ओर आगे नहीं आया है। अत: इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है।
विजय नड्डा कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर के शहरों और कस्बों में व्यावसायिक शिक्षा देने पर भी विद्या भारती विचार कर रही है। कई विद्यालयों में कंप्यूटर लैब भी बनाई गई हैं। भविष्य में और भी सुधार करने का प्रयास किया जा रहा है।
आतंकवाद के चलते बंद हुए विद्यालय खोलने का भी किया जा रहा प्रयास
जम्मू एवं कश्मीर के आतंकवाद प्रभावित इलाकों में आतंकी वारदातों के कारण कई विद्यालय बंद हो चुके हैं। इनमें लगभग एक दर्जन विद्यालय अकेले विद्या भारती के हैं। कारगिल के झंस्कार में स्थित विद्या भारती का एक विद्यालय कुछ वर्ष पूर्व इसी कारण से बंद कर दिया गया था। इस विद्यालय में लगभग 16 सौ बच्चे अध्ययनरत थे। दिलचस्प बात यह है कि जिस मजहबी आतंकवाद की भेंट ये विद्यालय चढ़ गए थे उस विद्यालय में मुस्लिम समाज के लगभग 600 बच्चे भी शिक्षा ले रहे थे। इन सभी बच्चों का भविष्य विद्यालय बंद होने के कारण अधर में लटक गया। विजय नड्डा कहते हैं कि बंद विद्यालयों को दोबारा शुरू करने के लिए विद्या भारती लगातार प्रयास कर रही है। प्रशासन एवं सरकार से भी इस संबंध में बात की जा रही है। हमने अपील की है कि सरकार हमें ऐसा माहौल और ऐसा वातावरण मुहैया कराए ताकि दुर्गम के जो बच्चे शिक्षा से महरूम हो रहे हैं उन्हें शिक्षित किया जा सके।
– क्रमश: