विचार

डॉ. नूपुर गोयल की कविताएं -2, मुलाकात को…

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मुलाकात को तरसता है मन…

लोगों से मुलाकात को, तरसता है मन,
पर
उनकी बातों के बाणों से, डरता है मन।

जाने कौन-कौन से बाण चलाएंगे,
जाने कौन-कौन से जख्म छेड़ जाएंगे।

कहां पर छुपा के, रखते हैं बाणों को,
जरूरत के मुताबिक, निकालते हैं बाणों को।

कोई पुराने जख्मों को, गहरा है कर जाता,
कोई नए जख्मों के, उपहार है दे जाता।

ये हमारी जिंदगी है, युद्ध की भूमि नहीं,
तीर कमान है हाथों में, क्यों गुलाब की कली नहीं.

काश यह बोझ हम, जीवन से उतार पाते,
जीवन को सबके हम, कुछ और मधुर कर पाते।

सोने-चांदी, हीरे जड़ित, उपहार तुमने बांटे हैं,
पर उनमें तो सिर्फ, दंभ के कांटे हैं।

देना ही है गर तो, फूलों का उपहार दो,
जख्मों पर उसके तुम, मुस्कुराहट का मरहम दो।

हो सके तो हंसी का, उपहार मेरे यार दो,
इस बेरंग जिंदगी में, कुछ रंग तो निखार दो।

फिर किसी से मिलने को, कोई मन न तरसेगा,
इस भरी भीड़ में, कोई मन न अकेला होगा।

मुस्कुराकर मिलो, जिससे भी तुम मिलो,
उसके और अपने, दुख को कुछ तो कम करो।
उसके और अपने, दुख को कुछ तो कम करो।

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