पंजाब

जालंधर में ये फैक्टर ले डूबेंगे कांग्रेस के चौधरी संतोख सिंह को, पढ़ें क्यों हार सकते हैं चौधरी

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नीरज सिसौदिया, जालंधर
जालंधर लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी चौधरी संतोख सिंह का सियासी महल धराशायी होता नजर आ रहा है. सियासी जानकारों की मानें तो इस बार चौधरी संतोख सिंह को तीन फैक्टर ले डूबेंगे. पहला बहुजन समाज पार्टी का बढ़ता जनाधार, दूसरा आम आदमी पार्टी का मौजूदा उम्मीदवार और तीसरा रिपब्लिक भारत टीवी चैनल द्वारा किया गया वह स्टिंग ऑपरेशन जिसमें वह चुनावी फंड के बदले काम कराने का ठेका लेते नजर आ रहे हैं. इन सबके अलावा एक और फैक्टर अकाली भाजपा उम्मीदवार चरणजीत सिंह अटवाल का चुनावी मैदान में उतरना है जो कि मजहबी वोट काटने में पूरी तरह सफल नजर आ रहे हैं. साथ ही दलित नेता चंदन ग्रेवाल प्रकरण को लेकर कांग्रेस की जो फजीहत हुई उससे भी कांग्रेस का ग्राफ काफी नीचे आया है.
दरअसल, पिछले दिनों जब बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी बलविंदर सिंह नामांकन करने डीसी दफ्तर पहुंचे थे तो उनके रोड शो में जो जनसैलाब उमड़ा था वह किसी भी दल की नींदें उड़ाने वाला था. अगर बसपा का यह जलवा मतदान तक बरकरार रहता है और बसपा उम्मीदवार का चुनाव प्रचार और व्यापक रूप लेता है तो निश्चित तौर पर बसपा की झोली में वाे वोट आकर गिरेंगे जो कांग्रेस उम्मीदवार चौधरी संतोख सिंह की जीत की पटकथा लिख सकते थे. पंजाब का इतिहास रहा है कि जब भी बसपा का वोट बढ़ा है तो उसका नुकसान कांग्रेस को हुआ है. ऐसे में अगर इस बार बसपा का वोट बैंक बढ़ता है तो इसका सीधा सा फायदा अकाली दल को होगा. हालांकि, जालंधर लोकसभा सीट हमेशा से ही कांग्रेस का गढ़ रही है लेकिन इस बार परिस्थितियां कांग्रेस के उलट नजर आ रही हैं. चौधरी संतोख इस बार भ्रष्टाचार के स्टिंग में घिर चुके हैं. बसपा और आम आदमी पार्टी भी उनका वोट काटेंगी. स्थानीय दलित नेता चंदन ग्रेवाल को जिस तरह से कैप्टन से मिलवाया गया और उसके बाद चंदन ग्रेवाल ने सार्वजनिक मंच से यह ऐलान किया कि वह कांग्रेस में शामिल ही नहीं हुए. इससे भी कांग्रेस की काफी फजीहत हुई और आम जनता में यह संदेश गया कि कांग्रेस की पतली हालत के चलते चंदन ग्रेवाल ने कैप्टन की मौजूदगी को भी नजरअंदाज करते हुए कांग्रेस से किनारा कर लिया.
वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस की अंदरूनी कलह भी चौधरी की नैय्या डुबोने को तैयार बैठी है. तेजिंदर बिट्टू गुट हो या सुशील रिंकू समर्थक दोनों ही चौधरी के लिए नुकसानदायक नजर आ रहे हैं.
सुशील रिंकू समर्थक तो पहले ही चौधरी का विरोध कर रहे थे रही सही कसर चौधरी ने रिंकू के धुर विरोधी बलदेव सिंह देव को जिला प्रधान बनवाकर पूरी कर ली. देव को बिना सेना का सेनापति बनाकर चौधरी ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है. देव के जिला प्रधान बनने से चुनिंदा पार्टी कार्यकर्ताओं को छोड़कर पूरी शहरी जिला कांग्रेस खफा है. ऐसे में अगर चौधरी चुनाव जीतते हैं तो देव की प्रधानगी में भी चार चांद लग सकते हैं. यही वजह है कि बड़ी संख्या में कांग्रेसी खुद ही चौधरी की हार सिर्फ इसलिए सुनिश्चित करना चाहते हैं ताकि देव की प्रधानगी चुनावी दरिया में ही डूब जाये. शायद यही वजह है कि देव को जिला प्रधान तो बना दिया गया लेकिन वह अपनी टीम के खुद ही जिला प्रधान हैं, खुद ही कार्यकर्ता हैं और खुद ही पदाधिकारी भी हैं. हालांकि, उनकी टीम की लिस्ट पूरी तैयार है लेकिन हाईकमान ने उसे अभी तक मंजूरी ही नहीं दी है. इससे उनकी टीम भी मायूस है और काम करने को तैयार नहीं. इसकी पुष्टि सूत्र करते हैं.
पिछले पांच वर्षों में चौधरी ने संसदीय क्षेत्र जो विकास करवाया है वह जनता खुद ही देख रही है.
ये कुछ ऐसे कारण हैं जो चौधरी संतोख सिंह की हार की पटकथा लिखने के लिए काफी हैं. बहरहाल, चुनावी ऊंट किस करवट बैठता है यह तो आने वाला वक्त ही तय करेगा. लेकिन फिलहाल चौधरी की चौधराहट खतरे में नजर आ रही है.

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