दिल्ली

केजरीवाल के महिला प्रेम पर हंगामा है क्यों बरपा? क्या मेट्रो में मुफ्त सफर की हकदार नहीं हैं महिलाएं?

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नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जनता का दिल जीतना जानते हैं. यही वजह है कि उनके ज्यादातर फैसले आम आदमी को ध्यान में रखकर लिये जाते हैं. हैरानी की बात तो यह है कि उनके हर फैसले पर ऊल- जुलूल और कुतर्क भरी बातें सुनने को मिलती हैं. ये बातें अक्सर वो लोग करते नजर आते हैं जो खुद कभी आम आदमी के लिए कुछ नया या राहत दिलाने वाला नहीं कर पाए. ये बात सही है कि केजरीवाल के फैसलों के पीछे कहीं न कहीं सियासी लाभ की चाहत भी छुपी रहती है लेकिन जब तक आम आदमी को लाभ नहीं होगा तो वह सरकारें क्यों चुनेगी? ताजा मामला महिलाओं को लेकर लिये गए एक फैसले को लेकर है. अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में दिल्ली मेट्रो में महिलाओं को मुफ्त यात्रा की सुविधा उपलब्ध कराने का ऐलान किया था. इस घोषणा के बाद कुछ विरोधियों और सोशल मीडिया के तीरंदाजों ने इसे मुफ्त खोरी का नाम देना शुरू कर विरोध तेज कर दिया. बिना दिल्ली का दर्द समझे बे सिर पैर की पोस्टें डालनी शुरू कर दीं. इतना भी नहीं सोचा कि वह विरोध केजरीवाल का नहीं बल्कि अपनी मां बहनों का कर रहे हैं. दिल्ली मेट्रो में मुफ्त सफर से दो सबसे बड़े फायदे महिलाओं को होने जा रहे हैं. पहला महिला सुरक्षा को लेकर और दूसरा आर्थिक स्तर पर.
दरअसल, दिल्ली का दायरा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है. हर साल यहां पर लाखों लोग रोटी की तलाश में आते हैं और यहीं के होकर रह जाते हैं. इसके अतिरिक्त यहां पढ़ाई एवं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए आने वाले विद्यार्थियों की संख्या भी हजारों में होती है. इनमें एक बड़ी तादाद छात्राओं एवं कामकाजी महिलाओं की होती है. यहां छोटे-छोटे उद्यमों में महिलाएं पांच से दस हजार रुपये तक की नौकरी कर या तो अपनी पढ़ाई का खर्च निकालती हैं या फिर अपना परिवार पालती हैं. ये महिलाएं दिल्ली ही नहीं बल्कि दूर दराज एनसीआर के क्षेत्रों में भी काम करने जाती हैं. ऐसी कामकाजी महिलाओं के वेतन और छात्राओं की पॉकेटमनी किराए पर ही खर्च हो जाती है. साथ ही बसों में यात्रा के दौरान उनके समय की बर्बादी के साथ ही छेड़छाड़ और धक्का मुक्की जैसी घटनाओं का भी सामना करना पड़ता है. अगर ये मेट्रो में सफर करें तो आधी तनख्वाह किराये पर ही खर्च हो जाती. केजरीवाल चाहते तो सिर्फ गरीब महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा सुविधा शुरू कर सकते थे लेकिन तब उनसे गरीबी का प्रमाण पत्र मांगा जाता. कागजी कार्रवाई में ये योजना भी उलझ कर रह जाती और वास्तविक जरूरत मंद लोगों महिलाएं इससे वंचित रह जातीं. अब जबकि सभी महिलाओं के लिए यह सुविधा दी जा रही है तो सभी को इसका लाभ मिलेगा. कोई घालमेल नहीं और कोई घोटाला नहीं. महंगाई के इस दौर में मेट्रो के इस किराये से महिलाओं की बचत इतनी जरूर हो जाएगी कि वह एक वक्त की रोटी खा सकें.

याद करें जब बिहार की बेटियां स्कूल से दूर गांव होने के कारण पढ़ाई से वंचित हो जाती थीं. तब नीतीश कुमार ने उन बेटियों के लिए मुफ्त साइकिल की व्यवस्था करवाई थी. क्या नीतीश कुमार बेटियों को मुफ्त खोर बना रहे थे? या उनकी मदद कर रहे थे? परिस्थितियों के अनुसार केजरीवाल सरकार ने भी कुछ ऐसा ही कदम बड़े पैमाने पर उठाया है. अत: इसकी जितनी सराहना की जाए वह कम है.
केजरीवाल सरकार पहली बार मुफ्त सुविधा देने नहीं जा रही है बल्कि पहले भी बिजली हाफ और पानी माफ जैसी सुविधाओं से जनता को बड़ा लाभ पहुंचाया है. इसका सबसे ज्यादा फायदा आम आदमी को हुआ. गरीब परिवारों ने केजरीवाल की इन स्कीमों से साल भर में इतनी रकम बचा ली कि वह अपने बच्चे के खर्च निकाल सकें.हैरानी की बात है कि पहले की सरकारें हमेशा खजाना खाली होने का रोना रोती रहीं और केजरीवाल सरकार जनता को मुफ्त में सुविधाएं उपलब्ध करा रही है. निश्चित तौर पर पिछली सरकारों में इच्छा शक्ति का अभाव था. तब नेताओं ने सिर्फ अपने घर भरे. अब जब सरकार जनता की झोली में कुछ डाल रही है तो विरोधी नेताओं को अपनी सियासी जमीन धंसती नजर आ रही है. यही वजह है कि केजरीवाल के हर उस काम का विरोध किया जा रहा है जिससे आम जनता काे लाभ हो. बहरहाल, जनहित की योजनाओं का विरोध केजरीवाल की सियासी जमीन को और भी मजबूत बनाएगा.

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